रंगनाथ द्विवेदी। हम सभी को यह बखूबी पता है कि किसी भी कार्यक्रम का प्राण तत्व और प्राण सेतु उसका मुख्य अतिथि ही होता है। पहले के समय में बड़ी मुश्किल से पूरे क्षेत्र में एकाध मुख्य अतिथि हुआ करते थे। उन्हीं को मुख्य अतिथि बनाकर सारे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का काम चला लिया जाता था। आज के समय में कार्यक्रम बहुत अधिक होने लगे हैं। इसलिए मुख्य अतिथि खोजने में मुश्किल होने लगी है।

इसलिए और भी, क्योंकि मुख्य अतिथियों में एक-दूसरे से ज्यादा कार्यक्रम में मुख्य अतिथि होने की होड़ सी लगी रहती है। पहले के मुख्य अतिथि काफी संभ्रांत, शालीन और क्षेत्र के सम्मानित लोग हुआ करते थे, लेकिन आज के मुख्य अतिथि में ये गुण होना बहुत आवश्यक नहीं है। उनकी सबसे बड़ी योग्यता है उनके पास पैसे के साथ ही उसी स्तर का भौकाल होना और अपने गले में मालाएं डलवाने के लिए तत्पर रहना।

अब मुख्य अतिथि किसे चुनना है, यह आयोजनकर्ता के चातुर्य पर निर्भर करता है। वांछित मुख्य अतिथि को निमंत्रण पत्र देते समय आयोजनकर्ता के पास ऐसे लोग भी होने जरूरी हैं, जो मुख्य अतिथि को इसके लिए राजी कर सकें कि वह कार्यक्रम के लिए कुछ सहयोग राशि देने को तैयार हो जाए। ऐसे मुख्य अतिथि आसानी से मिल भी जाते हैं।

तमाम मुख्य अतिथियों के साथ समस्या यह होती है कि यदि उन्हें कार्यक्रम में दस बजे पहुंचना होता है तो वह 11 बजे के बाद ही पहुंचते हैं। देर से पहुंचने वाले मुख्य अतिथियों का कहना होता है कि इससे वहां बैठे लोगों की उत्कंठा बनी रहती है और संचालक भी कई बार उनके नाम का उद्घोष कर पाता है। इससे उन्हें प्रचार मिलता है।

कार्यक्रम में जाने से पहले ऐसे मुख्य अतिथि अपने चेलों से खुद द्वारा प्रायोजित साज-सज्जा का अच्छे से निरीक्षण कराते हैं। इस प्रायोजित साज-सज्जा के अलावा चार-पांच लग्जरी कारें, साथ में कुछ असलहा और दो-तीन फोटोग्राफर भी चाहिए होते हैं। दो-तीन लोग मोबाइल पकड़ने वाले भी चाहिए होते हैं, ताकि वे पल-पल की जानकारी इंटरनेट मीडिया पर दे सकें।

कार्यक्रम स्थल के पास जब मुख्य अतिथि की कार रुकती है तो आयोजनकर्ताओं के साथ उनके चेले ही उन्हें रिसीव करने के लिए ऐसे दौड़ पड़ते हैं, जैसे वे मुख्य अतिथि से पहली बार मिल रहे हों। मुख्य अतिथि के साथ आए लोग उनके पीछे-पीछे कदमताल मिलाते हुए ऐसे चलते हैं, जैसे इससे पहले सेना में रहे हों। मुख्य अतिथि के मंच पर पहुंचते ही उन्हें बुलाने वालों के साथ उनके चेले उन्हें मालाएं पहुंचाने में जुट जाते हैं।

इसी के साथ कुछ लोग उनकी जय-जयकार करने में लग जाते हैं। मुख्य अतिथि की कुर्सी पर बैठने से पहले अपने दोनों हाथ ऐसे जोड़ते हैं कि कोई अपने सगे संबंधियों को भी नहीं जोड़ता होगा। उनके आसन ग्रहण करते ही उनकी व्यस्तता का जिक्र कार्यक्रम के आयोजक ऐसे करते हैं, जैसे उनसे व्यस्त और कोई नहीं। और यदि वह कुछ और देर ठहर गए तो देश-दुनिया के सारे काम रुक जाएंगे। उनकी अति व्यस्तता के झूठ का उद्देश्य उनके व्यक्तित्व का बेवजह बखान करने के लिए ही किया जाता है।

आज अधिकतर मुख्य अतिथि ऐसे होते हैं कि उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता कि किस विषय पर क्या बोलना है। वह जयवायु परिवर्तन से लेकर गिरते भूजल तक पर बोलने में सक्षम होते हैं। वह जब संबोधन करने के लिए माइक हाथ में थामकर मुश्किल से दो शब्द ही कहते हैं कि अचानक कहीं से तालियां बजने लगती हैं। तालियां सुनकर सामने बैठे श्रोता भी अचकचाकर तालियां बजाने लगते हैं।

हालांकि ऐसा करते हुए वह अपने आप से यह सवाल भी करते हैं कि मुख्य अतिथि ने ऐसी क्या बात कह दी कि लोग तालियां बजा रहे हैं और उन्हें समझ नहीं आई? संबोधन समाप्त होने के बाद कुछ लोग उनके साथ सेल्फी लेने में जुट जाते हैं। यह देखकर कुछ और लोग भी यह मानकर उनके साथ सेल्फी लेने लगते हैं कि हो न हो, यह कोई बड़ी हस्ती हैं।