कब तक चलेगा यूक्रेन युद्ध, रूस को जीत से कम कुछ भी मंजूर नहीं
एक समय पश्चिमी देशों का पूरा ध्यान यूक्रेन पर था लेकिन अक्टूबर में इजरायल पर हमास के हमले के बाद उन्हें रणनीति बदलनी पड़ी। अब उन्हें पश्चिम एशिया में भी अपने संसाधन झोंकने पड़े हैं। लाल सागर से लेकर फारस की खाड़ी में पश्चिम को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह बदला हुआ अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य भी रूस के अनुकूल है।
दिव्य कुमार सोती। दो साल पहले जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तब यही सोचा गया था कि कुछ ही दिनों में यूक्रेन घुटने टेक देगा, लेकिन यह लड़ाई दो साल से अधिक लंबी खिंच गई और अभी इस पर विराम के भी कोई आसार नहीं दिख रहे। अमेरिका के नेतृत्व में नाटो देशों ने यूक्रेन को जो आर्थिक एवं सामरिक सहायता पहुंचाई, उसने इस युद्ध के समीकरण बदलकर रख दिए। रूसी सेना को यूक्रेन में कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा और कीव के मोर्चे से पीछे भी हटना पड़ा।
पश्चिम की रणनीति यही थी कि रूस को उसी तरह युद्ध में फंसाया जाए, जैसा कभी अफगानिस्तान में किया गया था, जिसमें रूसी सेना को भारी क्षति उठानी पड़े। पश्चिम का यह भी मानना था कि आर्थिक प्रतिबंधों के चलते रूसी अर्थव्यवस्था पर बुरे असर से रूसी समाज में इस युद्ध को लेकर सवाल उठने लगेंगे। जन असंतोष से राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपनी गद्दी छोड़ने पर विवश हो जाएंगे और उनकी जगह लेने वाला नेता युद्ध से पीछे हट जाएगा।
पश्चिमी देशों की यह व्यूह रचना निराधार नहीं थी, क्योंकि रूसी इतिहास में पहले ऐसा हुआ है। प्रथम विश्वयुद्ध के बीच रूस में हुई कम्युनिस्ट क्रांति को मिले समर्थन के पीछे एक कारण यही माना जाता है कि रूसी जनता जार के विस्तारवादी युद्धों से आजिज आ चुकी थी। यह भी ध्यान रहे कि सोवियत संघ के विघटन का एक मुख्य कारण अफगान युद्ध में अमेरिका-पाक समर्थित जिहादियों के हाथों उसकी हार को माना जाता है।
अतीत से सबक लेते हुए पुतिन लंबे संघर्ष के लिए शायद पहले से तैयार थे। उन्होंने न केवल सामरिक तैयारी रखी, बल्कि रूसी अर्थव्यवस्था को बचाने की वैकल्पिक योजनाएं भी बनाईं। उन्होंने घरेलू राजनीतिक परिदृश्य और आंतरिक सुरक्षा पर भी मजबूत पकड़ बनाए रखी। जार और सोवियत संघ के पतन के समय ऐसा नहीं था। जब सोवियत संघ का विघटन हुआ, तब पुतिन खुफिया एजेंसी केजीबी में काम करते थे। वह इससे अवगत रहे होंगे कि तब क्या कमी रह गई थी। जब पुतिन सत्ता में आए तब रूस का मुस्लिम बाहुल्य चेचेन्या भारत में कश्मीर की भांति जिहादी आतंक से बुरी तरह ग्रस्त था।
चेचेन आतंकियों ने 2002 में मास्को के एक थियेटर में 850 लोगों को बंधक बना लिया। बंधक छोड़ने के बदले आतंकियों ने अपने साथियों की रिहाई की मांग की। पुतिन ने उनकी मांग मानने के बजाय कमांडो आपरेशन का आदेश दिया। उस अभियान में आतंकियों के साथ-साथ 172 बंधकों की जान गई। फिर 2004 में रूस के बेसलान शहर के एक स्कूल में 777 बच्चों सहित 1,100 लोगों को आतंकियों ने बंधक बना लिया। आतंकियों का मानना था कि बच्चों को लेकर उठे भावनात्मक ज्वार के आगे पुतिन को झुकना पड़ेगा और उनकी मांगें माननी पड़ेंगी।
पुतिन ने पुन: कड़ा फैसला लेते हुए कमांडो कार्रवाई का आदेश दिया। सभी आतंकी मार गिराए गए, लेकिन 186 बच्चों सहित 334 लोगों की जान भी गई। इस पर रूसी सरकार की कुछ आलोचना हुई, लेकिन एक कड़ा संदेश भी गया कि विघटन के बाद रूस को कमजोर समझने की भूल न करें। आतंकियों को भी समझ आ गया कि बंधक बनाकर रूसी सरकार से मांगें नहीं मनवाई जा सकतीं। फिर ऐसी कोई घटना नहीं हुई। इससे रूसी समाज राष्ट्रीय स्वाभिमान और सुरक्षा की दृष्टि से लंबे संघर्ष एवं बलिदान के लिए तैयार हुआ। समय के साथ पुतिन ने लंबे सैन्य अभियान के बाद चेचेन आतंकवाद को पूरी तरह कुचल दिया।
यूक्रेन के मामले में पश्चिम को लगा था कि धन और हथियारों की आपूर्ति से युद्ध को लंबा खींचकर रूस को हताश किया जा सकता है, लेकिन जो देश अपने स्वाभिमान के लिए नागरिकों की जान भी दांव पर लगा दे, उसे तोड़ना इतना आसान नहीं। यूक्रेन युद्ध नाटो की सदस्यता और नाटो सेनाओं की यूक्रेन में तैनाती की अटकलों को लेकर आरंभ हुआ, लेकिन नाटो अभी तक यूक्रेन को सदस्यता देने की हिम्मत नहीं जुटा सका है।
यूरोपीय और अमेरिकी नेता भी अपनी सेनाओं को यूक्रेन भेजने का साहस नहीं जुटा पाए हैं। उलटे यूक्रेन के कई क्षेत्र रूस का हिस्सा बन गए हैं। मोलदोवा के एक हिस्से ट्रांसनिस्टीरिया के भी अलग होकर रूस में मिलने की चर्चा जोरों पर हैं। रूसी जनता की नजर में ये बड़ी सफलताएं हैं, क्योंकि वर्तमान में न तो सोवियत काल की तरह रूस के पास उतना बड़ा साम्राज्य है और न ही उतने मित्र देश। इसके बावजूद रूस पश्चिमी देशों की साझा शक्ति का पुरजोर मुकाबला कर रहा है। अब तो पश्चिमी मीडिया और विश्लेषक भी यह मानने लगे हैं कि उन्होंने रूस की लंबा युद्ध लड़ने की क्षमता को कमतर आंका था।
एक समय पश्चिमी देशों का पूरा ध्यान यूक्रेन पर था, लेकिन अक्टूबर में इजरायल पर हमास के हमले के बाद उन्हें रणनीति बदलनी पड़ी। अब उन्हें पश्चिम एशिया में भी अपने संसाधन झोंकने पड़े हैं। लाल सागर से लेकर फारस की खाड़ी में पश्चिम को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह बदला हुआ अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य भी रूस के अनुकूल है। अमेरिकी रक्षा उत्पादन तंत्र एक साथ इतने मोर्चों पर आपूर्ति करने की स्थिति में नहीं दिखता, जबकि रूस अपने संसाधन न सिर्फ यूक्रेन पर केंद्रित रखे हुए है, बल्कि अपना रक्षा उत्पादन निरंतर बढ़ा रहा है, जो अब रूसी जीडीपी के लगभग एक तिहाई के बराबर पहुंच गया है।
केवल फरवरी में ही रूसी रक्षा उत्पादन क्षेत्र में पांच लाख से अधिक रोजगार सृजित हुए। रूसी हथियार कारखानों में लोग डबल ओवरटाइम कर रहे हैं। सोवियत संघ के विघटन के बाद से अपमानित महसूस कर रहे रूसी समाज को पुतिन पुरातन रूसी स्वाभिमान की याद दिला रहे हैं। अमेरिकी पत्रकार कार्लसन को दिए एक हालिया साक्षात्कार में पुतिन यही सिद्ध करते दिखे कि किस प्रकार यूक्रेन सदा से रूस का हिस्सा या प्रभाव क्षेत्र रहा है।
वह अपने भाषणों में आर्थोडाक्स क्रिश्चियनिटी को मानने वाले रूसी समाज को यह भी बताते हैं कि किस तरह यह युद्ध सिर्फ रूस को नाटो के सैन्य खतरे को लेकर नहीं, बल्कि रूस के जीवन मूल्यों को अमेरिकी सोशल इंजीनियरिंग और वोक एजेंडे से जुड़ी विकृतियों से बचाने को लेकर भी लड़ा जा रहा है। यदि पुतिन रूसी सत्ता और समाज पर पकड़ बनाए रहते हैं तो देर से ही सही, रूस की ही विजय होगी।
(लेखक काउंसिल आफ स्ट्रैटेजिक अफेयर्स से संबद्ध सामरिक विश्लेषक हैं)
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