[ अवधेश कुमार ]: बीते दिनों उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद और दिल्ली का जयप्रकाश नारायण अस्पताल यकायक सुर्खियों में आया। मुरादाबाद का नवाबपुरा इलाका कोरोना हॉटस्पॉट बन गया है। वहां कोरोना से एक व्यक्तिकी मृत्यु हो गई। उसके भाई को भी कोरोना हो गया। जाहिर है डॉक्टरों-स्वास्थ्यकर्मियों की टीम वहां लोगों को क्वारंटाइन करने पहुंची। इस टीम पर भीड़ ने चारों ओर से भीषण हमला कर दिया। छतों से पत्थरों-ईटों की बरसात हुई। एंबुलेंंस से खींचकर स्वास्थ्यकर्मियों को पीटा गया। इस हमले में एक डॉक्टर सहित पांच स्वास्थ्यकर्मी घायल हुए। कुछ किसी तरह जान बचाकर भागे। दूसरी घटना का गवाह बना दिल्ली का जेपी अस्पताल। यहां कोरोना मरीजों ने नर्सों और महिला डॉक्टरों के साथ अभद्रता की और जब उनके पुरुष साथी डॉक्टर बीच में आए तो मरीजों ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि उन्हें ड्यूटी कक्ष में घुसकर जान बचानी पड़ी। वे अंदर बंद थे और मरीज मिलकर दरवाजे को धक्का दे रहे थे। इस तरह की घटनाएं देश के कुछ और हिस्सों में हो चुकी हैं। आखिर कौन भूल सकता है इंदौर की घटनाओं को?

कोरोना प्रकोप से जान बचाने वालों के खिलाफ हिंसक प्रवृत्तियां

आखिर जान बचाने वालों के खिलाफ इस तरह की हिंसक प्रवृत्तियां क्यों पैदा होती हैं? इस पर विचार इसलिए जरूरी है, क्योंकि अगर कोरोना प्रकोप आरंभ होने से अब तक स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिसकर्मियों पर हमले की घटनाओं की सूची बनाएं तो वह इतनी लंबी हो जाएगी कि जो इन घटनाओं से परिचित नहीं उसके लिए उन पर सहसा विश्वास करना कठिन होगा। दुनिया में एकमात्र भारत देश ही ऐसा है जहां इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। कटु सच यह है कि ऐसे अधिकांश हमले एक ही समुदाय के लोगों द्वारा किए जा रहे हैं। अपने देश की समस्या यह है कि जैसे ही आप एक समुदाय द्वारा हिंसा और सांप्रदायिकता की सत्य घटनाओं को चिन्हित करेंगे, आपको सांप्रदायिक और आरएसएस समर्थक घोषित कर दिया जाएगा।

कई मुस्लिम बुद्धिजीवी कहते हैं कि हमला नहीं होना चाहिए

दुर्भाग्य देखिए कि कई मुस्लिम बुद्धिजीवी पूछने पर कह देते हैं कि हमला नहीं होना चाहिए, लेकिन साथ में किंतु-परंतु भी लगा देते हैं। मसलन इसकी भी जांच होनी चाहिए कि उन्होंने हमला क्यों किया? आखिर इस कुतर्क का क्या जवाब हो सकता है? हिंसा को किसी सूरत में वाजिब कैसे ठहराया जा सकता है और वह भी उनके खिलाफ जो आपकी जान बचा रहे हैं? हिंसा की एक घटना के बाद लगता है कि दूसरी जगह ऐसा नहीं होगा, लेकिन फिर कहीं पत्थरबाजी हो जाती है।

पत्थरबाजी का सिलसिला कश्मीर घाटी से होते हुए देश भर में फैल रहा

लगता है पत्थरबाजी का सिलसिला कश्मीर घाटी से होते हुए देश भर में विस्तारित हो रहा है। हमने देखा कि दिल्ली में दंगों की शुरुआत पत्थरबाजी से ही हुई। इसका मतलब हुआ कि मजहबी कट्टरपंथियों ने धीरे-धीरे देश भर में पांव पसारकर एक समूह के अंदर मजहब के नाम पर जहर भर दिया है।

स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिस टीम पर हमला

ऐसा नहीं होता तो कम से कम स्वास्थ्यकर्मियों और उनके साथ गई पुलिस टीम पर तो इस तरह हमला नहीं होता। आखिर वे सब अपनी जान जोखिम में डालकर जान बचाने का काम कर रहे हैं। काफी संख्या में डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस वाले कोरोना से संक्रमित हुए हैं, क्योंकि वे कोरोना मरीजों के संपर्क में आए। बहुत सारे लोग हमले के लिए पछता भी रहे हैं। कई जगह माफी भी मांगी जा रही है, लेकिन हमले के समय उनकी प्रतिक्रिया बिल्कुल विपरीत थी। आखिर क्यों? इसका जवाब प्रधानमंत्री मोदी को मुसलमानों के बीच खलनायक बना देने की कोशिश में छिपा है। यह कोशिश 2002 के बाद आरंभ हुई और आज तक जारी है।

सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने से मुसलमानों के विचार परिवर्तित होने लगे

2014 में मोदी की जीत के बाद ऐसा माहौल बनाया गया, मानो देश में मुसलमानों के सबसे बुरे दिन आ गए। ऐसा कुछ हुआ नहीं। इसके विपरीत जन कल्याण के कार्यक्रमों का लाभ उन्हें भी उसी तरह मिला जैसे अन्य समुदायों को। इससे आम मुसलमानों की सोच में बदलाव आना आरंभ हुआ। 2019 के चुनाव में ऐसी अनेक घटनाएं सामने आईं जहां एक ही परिवार में लोग मोदी के नाम पर विभाजित हो गए। जिनको पीएम आवास मिला, जिनके यहां शौचालय बने, बिजली पहुंची, मुद्रा योजना से कर्ज मिला, किसान सम्मान योजना की राशि मिली उनके विचार परिवर्तित होने लगे। इससे कट्टरपंथियों एवं समाज को भ्रमित कर नेता बने लोगों को अपनी जमीन खिसकने का भय पैदा होने लगा।

स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिसकर्मियों पर पत्थरबाजी, हिसंक हरकतें एक ही सोच से निकली हैं

अनेक संगठनों और मजहबी, राजनीतिक, सामाजिक नेताओं का अस्तित्व ही मोदी विरोध पर टिका हुआ है। इन सबका एक ही लक्ष्य है किसी तरह मोदी को खलनायक बनाओ। इसीलिए सीएए, एनपीआर एवं एनआरसी को आधार बनाकर पूरे देश में इन्होंने भ्रम फैलाने में अपनी ताकत लगा दी और उसका परिणाम हमने देखा। इनका दूसरा उद्देश्य है मोदी को विफल होते देखना। अगर गहराई से देखेंगे तो स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिसकर्मियों पर पत्थरबाजी, अस्पतालों एवं क्वारंटाइन केंद्रोंं में थूकने और मारपीट जैसी असभ्य और हिसंक हरकतें एक ही सोच से निकली हैं। यह ऐसी खतरनाक सोच है जिसका निदान करना ही होगा।

मुस्लिम समुदाय का उदारवादी तबका हिसंक हरकतों से चिंतित

नि:संदेह मुस्लिम समुदाय में ऐसे लोग हैं जो इन हरकतों को सही नहीं मानते। आखिर ज्यादातर मस्जिदों ने अपने दरवाजे सामूहिक नमाज के लिए बंद कर दिए हैं, किंतु मोदी के अंध विरोधियों की पूरी जमात विरोध में है। मुस्लिम समुदाय का उदारवादी तबका इससे चिंतित है, किंतु वह भी भय से इन तत्वों की निंदा करने या विरोध करने से बच रहा है। सलमान खान जैसे साहसी कम ही हैं जो बिना किंतु-परंतु के इन तत्वों को धिक्कार रहे हैं। इन तत्वों ने कोरोना संकट को तो बढ़ाया ही, कोरोना से लड़ाई को भी कठिन बना दिया। चूंकि इस संकट से निकलने के बाद भी ऐसे तत्व दूसरी तरह की हरकतें कर सकते हैं इसलिए इस विष वृक्ष को कैसे खत्म किया जाए, इसका रास्ता तलाशना ही होगा।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं )