[प्रो. लल्लन प्रसाद]। India a 5 trillion economy by 2025 भारतीय अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना भले ही चुनौतियां भरा हो, फिर भी इसे साकार करने के लिए देश में मांग में आई गिरावट को रोकना होगा और उत्पादकता व रोजगार के अवसर तेजी से बढ़ाने होंगे। अर्थव्यवस्था में आधारभूत सुधारों के लिए भी यह अच्छा समय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि जब उन्होने सत्ता संभाली भारतीय आर्थव्यव्स्था का आकार 1.85 ट्रिलियन डॉलर था जो बढकर 2.7 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गया। अगले पांच वर्षों में पांच ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य प्राप्ति के लिए देश सक्षम है।

भारत की अर्थव्यवस्था 2014 से 2018 के मध्य तक लगभग आठ प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ी है, जिसके बाद गिरावट का सिलसिला शुरू हुआ। इसके मुख्य कारण हैं विश्वव्यापी मंदी, देश के अंदर मांग की कमी, निर्यात में गिरावट, कारखानों में घटता उत्पादन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था का धीमा विकास आदि। नवंबर 2016 में नोटबंदी एवं जुलाई 2017 में जीएसटी के निर्णय सैद्धांतिक रूप से सही थे, किंतु कार्यान्वयन की कमियों के कारण उतना लाभ नहीं हुआ, जितना अपेक्षित था।

अर्थव्यवस्था पर ये निर्णय भारी पडे़। इनका दूरगामी लाभ संभव है, किंतु तात्कालिक असर प्रतिकूल होने से आर्थिक सुस्ती के हालात बने। जुलाई-सितंबर 2019 की तिमाही में विकास दर 4.5 प्रतिशत पर आ गया जिसे लेकर सभी रेटिंग एजेंसियों ने वित्त वर्ष 2017-20 के लिए किए गए सात प्रतिशत के विकास के अनुमान को घटाकर 5.8 प्रतिशत के करीब ला दिया। मूडी इनवेस्टर सर्विस के अनुसार वर्तमान वित्त वर्ष में विकास दर 5.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है, अगले दो वर्षों में यह 6.6 प्रतिशत एवं 6.7 प्रतिशत संभावित है।

मांग में कमी से उत्पादन पर असर

मांग में कमी के कारण कारखानों में उत्पादन घटा है। इस वर्ष सितंबर अक्टूबर में क्रमश: 4.3 एवं 3.8 प्रतिशत की गिरावट हुई, जबकि पिछले वर्ष अक्टूबर में कारखानों का उत्पादन 8.4 प्रतिशत बढ़ा था। पूंजीगत उद्योगों जैसे ऊर्जा, माइनिंग, कच्चा तेल आदि में कम निवेश हुआ। मंदी का सबसे अधिक प्रभाव ऑटोमोटिव उद्योग पर पड़ा। सितंबर 2018 की तुलना में सितंबर 2019 में सवारी गाड़ियों की बिक्री में 18 प्रतिशत एवं वाणिज्यिक गाड़ियों की बिक्री में 75 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। सरकार द्वारा पर्यावरण सुरक्षा के लिए बीएस 4 से बीएस 6 के ‘एमिशन नार्म’ अप्रैल 2020 तक अपनाने के आदेश से कारों की बिक्री में कमी हुई।

सरकार इलेक्ट्रिक कारों के उत्पादन पर भी जोर दे रही है। कारों की मांग में कमी उबर और ओला जैसी कंपनियों के कारण भी हुई। सड़कों पर जाम लगने, पार्किंग महंगा होने एवं पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार बढ़त होने से बहुत से संभावित खरीदार किराए के कार में जाना पसंद करने लगे। इधर दो पहिया वाहनों की बिक्री में भी गिरावट आई। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कमजोरी एवं निम्न मध्यम वर्गीय शहरियों के पास नकदी की कमी इसके मुख्य कारण बताए जा रहे हैं। ऑटो उद्योग की कठिनाइयों को दूर करने के लिए सरकार ने अपने विभागों पर नई गाड़ियां खरीदने पर जो प्रतिबंध लगाए थे उन्हें हटा दिया है। मार्च 2020 तक कारों के डिप्रिसिएशन की छूट दर 15 प्रतिशत कर दी गई है।

बुनियादी ढांचा मजबूत करने पर सरकार जोर दे रही है। राष्ट्रीय राजमार्गों, ग्रामीण सड़कों, बंदरगाहों, टेलीकॉम, रेलवे, पावर जेनरेशन आदि के विकास में तेजी आई है, किंतु इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जितना निवेश आवश्यक है, उतना हो नहीं रहा है। इस क्षेत्र में 6.8 से 7.5 लाख करोड़ रुपये प्रतिवर्ष लगाया जा रहा है, जबकि आवश्यकता 13.6 लाख करोड़ के लगभग की है। इस क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआइ लगाने की अनुमति सरकार ने पहले ही दे दी है। क्षेत्र का वार्षिक विकास दर 10.5 प्रतिशत के करीब है जिसे बढ़ाने की जरूरत है। वर्ष 2018 में 167 देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर में भारत का 44वां स्थान था। वर्ष 2000 से 2019 के बीच इस क्षेत्र में 25 बिलियन डॉलर का सीधा निवेश हुआ।

रीयल इस्टेट में बूम और गड़बड़ी

भवन निर्माण (रीयल इस्टेट) सेक्टर जीडीपी के विकास एवं रोजगार की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। विगत कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में भारी निवेश हुआ है। वर्ष 2005 में यह क्षेत्र विदेशी निवेश के लिए खोला गया। तब से शहरों में बहुमंजिले इमारतों के निर्माण में तेजी आई, बिल्डर्स को पूंजी की कमी नहीं रही। लोग सिर्फ रहने के लिए ही नहीं, निवेश करके पूंजी और आय बढ़ाने के लिए भी इस क्षेत्र में धन लगाने लगे। यह क्षेत्र कालेधन का भी बड़ा सोख्ता बन गया। सरकार की विमुद्रीकरण नीति, जीएसटी रीयल इस्टेट रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट एवं इनसॉल्वैंसी एंड बैंक्रप्सी कोड ने इस क्षेत्र पर कुछ लगाम लगाई। इसकी आवश्यकता इसलिए हो गई थी, क्योंकि बहुत से बिल्डर्स ने लोगों से एडवांस पेमेंट लेने और बैंकों से भी कर्ज लेने के बावजूद निर्माण कार्य समय पर पूरा नहीं किया। वर्षों तक इंतजार के बाद भी लोगों को मकान नहीं मिला, जबकि वे भुगतान कर चुके थे, बैंकों का कर्ज उनके सिर पर था।

एक अनुमान के अनुसार देश के सात बडे़ शहरों में 5.6 लाख मकान अधूरे बने पडे़ है, जिनमें 65 बिलियन डॉलर का निवेश फसा है। नॉन बैंकिंग कंपनी- इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाईनांस कंपनी जिसने इस क्षेत्र में भारी लोन दिए थे, दिवालिया हो गई, क्योंकि लोन का बड़ा अंश वापस नहीं आया। सरकारी और निजी बैंकों को भी दिए हुए कर्ज की उगाही में कठिनाई हो गई। बहुत सारी बिल्डर्स कंपनियों का मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल को रेफर किया जा चुका है, किंतु निर्णय बहुत कम मामलों में आया है। इस क्षेत्र को मुश्किलों से उबारने के लिए सरकार ने 25 हजार करोड़ रुपये का विशेष फंड बनाया है, जिससे रुके हुए प्रोजेक्ट्स को पूरा किया जा सके।

संसाधनों के विकास के साथ-साथ मानव विकास भी जीडीपी की वृद्धि के लिए आवश्यक है। आबादी की दृष्टि से भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। लगभग 135 करोड़ की आबादी में 65 करोड़ लोग 35 वर्ष से कम उम्र के हैं। पिछले कुछ वर्षों से भारत में गरीबी उन्मूलन की दिशा में अच्छा प्रयास हुआ जिसे विश्व बैंक ने सराहा है। प्रति व्यक्ति आमदनी की दृष्टि से विश्व के देशों में भारत अब निम्न मध्यम आय ग्रुप में आ गया है, बहुत वर्षों तक निम्न ग्रुप में रहने के बाद।

शिक्षा के अवसर देश में तेजी से बढे़ है, किंतु गुणवत्ता में वृद्धि की आवश्यकता है। विश्व स्तर की शिक्षा, अनुसंधान एवं कौशल विकास के संसाधन बहुत कम हैं, सरकार नई शिक्षा नीति का प्रारूप लेकर आई है जिसमें सभी स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता पर जोर है, समन्वित सोच के पाठयक्रम विकसित किए जाएंगे। शोध अनुसंधान पर खास जोर दिया जाएगा, शिक्षा पर होने वाला खर्च जीडीपी के 3.5 प्रतिशत से बढ़ा कर छह प्रतिशत किया जाएगा। स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के लिए सरकार आयुष्मान योजना लेकर आई है।

वर्तमान अवस्था में जो सुस्ती आई है इससे अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सरकार ने जो तत्काल उपाय किए हैं, उनमें प्रमुख हैं- लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए बैंकों द्वारा लोन मेलों का आयोजन जिसके तहत अक्टूबर एवं नवंबर 2019 में 4.91 लाख करोड़ रुपये आम उपभोक्ताओं, छोटे कारोबारियों, नॉन बैंकिंग संस्थानों और किसानों को दिए गए एवं कॉरपोरेट टैक्स की दर 400 करोड़ रुपये के आकार तक की कंपनियों के लिए 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत एवं नई मैन्यूफैक्र्चंरग कंपनियों के लिए 25 प्रतिशत से घटा कर 15 प्रतिशत कर दी गई है। बैंकों को कम ब्याज पर कर्ज मिल सके, ताकि उद्योग-धंधों व कंपनियों और होम लोन लेने वालों को बैंक कम ब्याज पर लोन दे सकें इसके लिए रिजर्व बैंक ने रेपोरेट में इस वर्ष छह बार कमी की है। वर्तमान रेपोरेट 5.15 प्रतिशत है जो वर्ष के आरंभ में 6.5 प्रतिशत था। मंदी के कारण अर्थव्यवस्था को जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है वे कुछ महीनों में दूर हो जाएंगी और पांच ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य की ओर देश तेजी से बढ़ सकेगा।

एमएसएमई पर देना होगा जोर

लघु, छोटे एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) का देश की अर्थव्यवस्था में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार देने वाला यह क्षेत्र भारत की जीडीपी में लगभग 38 प्रतिशत का योगदान करता है। कारखानों के कुल उत्पादन का 45 प्रतिशत एवं निर्यात का 40 प्रतिशत इस क्षेत्र द्वारा होता है। चीन की डंपिंग नीति से इस क्षेत्र को भारी नुकसान हुआ है। चीन से आयातित चीजों की कीमत इतनी कम होती है, जिन पर भारतीय उद्योग उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। छोटे उद्योगों को जीएसटी फॉर्म भरने और रिफंड में देर होने से जो कठिनाइयां आई हैं, उन पर भी सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना में इस क्षेत्र के लिए कर्ज की सुविधा प्रदान की गई है। बिना किसी जमानत के कर्ज की सुविधा सरकार ने क्रेडिट गारंटी फंड के अंतर्गत की है।

कृषि क्षेत्र को दिया जाए बढ़ावा

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। जीडीपी में उसका योगदान 15 प्रतिशत के लगभग ही है, किंतु देश की आधी से अधिक आबादी उस पर निर्भर है। सरकार किसानों की आमदनी को 2022 तक दोगुना करने के लिए कृत संकल्प है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में जो कठिनाइयां हैं, उनके मूल में छोटे किसानों के पास दो एकड़ से कम भूमि होना, मानसून पर अत्यधिक निर्भरता, गरीबी और कर्ज, उत्पादकता में कमी एवं कृषि उपज का उचित मूल्य न मिलना आदि हैं। इस वर्ष देश के 12 राज्यों में बाढ़ से भारी नुकसान हुआ है। किसानों की माली हालत सुधारने के लिए सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उनमें कृषि पदार्थों की सरकारी खरीद की कीमतों में वृद्धि, किसान सम्मान निधि, किसान पेंशन योजना, नीम कोटेड यूरिया, फसल बीमा योजना, पशु बीमा योजना आदि शामिल हैं जिनका लाभ गांव के लोगों को मिलेगा।

सेवा क्षेत्र को मिले प्रोत्साहन

सेवा क्षेत्र देश में सबसे तेज बढ़ने वाला क्षेत्र है। जीडीपी में इसका योगदान वर्ष 1950 के 15 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2019 में 60 प्रतिशत हो गया है। बैंकिंग, फाइनांस, बीमा, होटल, टूरिज्म, यातायात, मीडिया एवं मनोरंजन, आइटी, व्यापार एवं व्यक्तिगत सेवाएं इस क्षेत्र में आती हैं। वर्ष 2000 से 2018 के बीच इस क्षेत्र में 70 बिलियन डॉलर का सीधा निवेश हुआ। सॉफ्टवेयर सेवाओं में भारत की भागीदारी 55 प्रतिशत के लगभग है। मोबाइल फोन धारकों की संख्या 80 करोड़ से भी अधिक हो गई है। बैंकिंग सेक्टर में अदेय ऋणों (एनपीए) के कारण जो शिथिलता आई उसे दूर करने के लिए सरकार ने वर्तमान वित्त वर्ष में 70 हजार करोड़ रुपये का प्राविधान किया है। सेवाओं के निर्यात के लिए जो प्रोत्साहन दिया जाता रहा है उसमें दो प्रतिशत की वृ़िद्ध कर दी गई है।

[पूर्व विभागाध्यक्ष, बिजनेस इकोनॉमिक्स विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय]