हर्ष वर्धन त्रिपाठी। वक्फ कानून में संशोधन एक ऐसा पैमाना था, जिस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दोनों राजनीतिक मददगारों चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को परखा जाना था। चूंकि आंध्र प्रदेश में लोकसभा चुनावों के साथ ही विधानसभा चुनाव हो गए थे, इसलिए नायडू के लिए तुरंत कोई बड़ा संकट नहीं था, लेकिन बिहार में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना है।

इसके बावजूद जिस तरह से जदयू वक्फ संशोधन कानून बनाने के लिए मोदी के साथ मजबूती से खड़ी हुई, उसे इतिहास में याद किया जाएगा। बिहार चुनावों के बाद ही जदयू के इस जोखिम का सही परिणाम पता चल सकेगा, लेकिन इससे इतना तो तय हो गया है कि देश में मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति का दबाव समाप्त सा हो गया है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के लोग लगातार धमकियां देते रहे, लेकिन मुसलमानों का डर चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को उनका मतपरिवर्तित करने के लिए तैयार नहीं कर पाया। जिस दौरान देश में गाजा से लेकर वक्फ के मुद्दे पर कथित सेक्युलर राजनीति करने वाले नेता मुसलमानों का डर बढ़ा रहे थे, उसी दौरान मोदी को इस्लामिक देश कुवैत अपने सबसे बड़े सम्मान से नवाज रहा था।

मोदी की शुरुआती राजनीति ही वोट बैंक की राजनीति के दबाव से बाहर निकलने की रही है। गुजरात में उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया तो सबसे बड़ा संकट राज्य के सबसे शक्तिशाली पटेल वोट बैंक के दबाव से बाहर निकलने का था। मोदी ने बड़े सलीके से हिंदूहृदय सम्राट वाली छवि में पटेल नेताओं को इतना सीमित कर दिया कि उनके गुजरात से निकले एक दशक होने के बाद भी गुजरात का मतलब मोदी ही है।

उन्होंने अन्य जातीय समूहों का दबाव समाप्त कर दिया है और हिंदू पहचान के साथ सभी जातीय समूहों का बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ जुड़ चुका है। मोदी अब यही कोशिश मुस्लिम वोट बैंक के मामले में भी कर रहे हैं। वह मुस्लिमों को भारतीय पहचान सबसे पहले रखने के लिए तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। मोदी हिंदू एकता से आगे ‘हम भारत के लोग’ की अवधारणा को मजबूत करके दिखाने का प्रयास कर रहे हैं।

मोदी देश के दूसरे नागरिकों की ही तरह मुसलमानों के मन से भी यह आकांक्षा समाप्त कर देना चाहते हैं कि हमारी जाति, हमारे क्षेत्र, हमारे मजहब के लिए सरकार क्या कर रही है। मोदी यह स्थापित कर देना चाहते हैं कि देश की बेहतरी तभी हो सकती है, जब सबके लिए बेहतरी के एकसमान अवसर सरकारी नीतियों से मिलें। यही वजह है कि मोदी सरकार की योजनाओं में किसी भी वर्ग के लिए भेदभाव का छटांक भर का भी आरोप नहीं है। भाजपा शासित राज्यों में दंगे न्यूनतम होते हैं, यह बात भी आंकड़ों से स्थापित हो चुकी है।

विपक्षी पार्टियां एक समय में पिछड़ों और अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों को भी भाजपा के विरुद्ध खड़ा करती थीं, लेकिन उनसे संवाद के लिए भाजपा के पास हिंदू पहचान वाला बड़ा आधार था। मुस्लिमों को भाजपा का स्वाभाविक दुश्मन बताने में विपक्षी पार्टियों को इसलिए आसानी होती है, क्योंकि राष्ट्रवाद से लेकर देश और देश की संस्कृति के मुद्दों पर भाजपा की मुखरता मुसलमानों को अपनी पहचान को लेकर सतर्क करने लगती है।

विपक्षी पार्टियां जानबूझकर मुगल आक्रांताओं से जुड़ी मुस्लिम पहचान को उभारकर उनके भीतर एक डर बैठाना चाहती हैं, लेकिन मोदी ने मुसलमानों के बीच पैठ बनाने का रास्ता सीख लिया है। दरअसल मोदी ने शिया, सुन्नी, दाऊदी बोहरा, खोजा, गुजराती शेख, मेनन, पठान आदि के विभाजन को ही उनके बीच पहुंचने का आधार बनाया है। अभी भाजपा पूरे देश में पसमांदा मुसलमानों के हितों की बात कहकर मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति के बेजा दबाव को खत्म करने में लगी है।

मोदी और उनकी पार्टी ने यह स्थापित कर दिया है कि वक्फ संपत्तियों पर अमीर, प्रभावशाली मुस्लिम जातियों का कब्जा है और गरीब, पसमांदा मुसलमान और गरीब, प्रभावहीन होता जा रहा है। कई मुस्लिम संगठन इसका समर्थन कर रहे हैं। भाजपा विरोधी दलों के नेताओं की आक्रामकता की असली वजह यही है कि मुसलमान सिर्फ भाजपा विरोध के लिए उनके साथ खड़ा होना बंद कर देगा तो उनकी राजनीति बंद हो जाएगी। मुस्लिम वोट बैंक समाप्त होने के बाद उनकी राजनीति और कठिन हो जाएगी। मोदी की कोशिश इसी अंधविरोध की राजनीति को समाप्त करने की है।

मोदी को यह भी भ्रम नहीं है कि मुसलमानों के हित में कानून बनाने से वे उन्हें वोट देने लगेंगे। तीन तलाक समाप्त करने के बावजूद मुसलमानों का बड़ा मतदाता समूह भाजपा के साथ आया हो, इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता है, पर मुस्लिमों के एक बड़े वर्ग में यह चर्चा होने लगी है कि भाजपा का अंधा विरोध करके हमें क्या मिल रहा है? गुजरात स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा के मुस्लिम प्रत्याशी भी संख्या में जीते हैं।

अब वक्फ के नए कानून के रूप में जनजागरण के बहाने भाजपा मुस्लिम समाज में सुधार की बात को और मजबूती से आगे बढ़ाने का अभियान चला रही है। भाजपा अपने तर्कों में तीन तलाक, वक्फ और समान नागरिक संहिता के लिए मुस्लिम देशों के ही तथ्यों को सामने रखती है। मुस्लिम देशों के तथ्यों पर भाजपा विरोधी मुसलमानों को जवाब देते नहीं बनता। नए वक्फ कानून पर भाजपा का जनजागरण समान नागरिक संहित या मोदी की भाषा में सेक्युलर सिविल कोड को आगे बढ़ाने की तैयारी दिखती है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)