संजय लाजार। एअर इंडिया की उड़ान संख्या एआइ-171 के दुर्घटनाग्रस्त होने के महीने भर बाद आई विमान दुर्घटना जांच बोर्ड यानी एएआइबी की आरंभिक रिपोर्ट सत्य को सामने लाने से अधिक दिग्गज अमेरिकी कंपनियों के हितों को साधने की कवायद अधिक लगती है। 15 पन्नों की इस रिपोर्ट को देखकर लगता है कि ऐसी नाकारा रिपोर्ट को जारी करने का क्या तुक था? भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार और चौथी सबसे बड़ी आर्थिकी है। सरकारी नीतिगत प्रोत्साहन से कुछ वर्षों के दौरान जहां 250 नए हवाई अड्डे बनने जा रहे हैं, वहीं 2,000 नए विमान भी जुड़ेंगे। ऐसे में, एक बड़े विमान हादसे की जांच का मामला बहुत संभालकर आगे बढ़ाने की जरूरत है, जिस पर दुनिया की निगाहें लगी हुई हैं।

इस आरंभिक जांच रिपोर्ट को लेकर बहुत आपत्तियां सामने आई हैं। एक आपत्ति तो जांच समिति के गठन से ही जुड़ी है। इस समिति में 787 ड्रीमलाइनर के किसी लाइसेंसधारक पायलट या इंजीनियर को तो छोड़िए किसी सामान्य पायलट तक को शामिल नहीं किया गया। इस पर भी सवाल उठते हैं कि भारत सरकार की सर्वप्रमुख विमान दुर्घटना जांच एजेंसी की रिपोर्ट पहले ही कैसे लीक हो गई? रिपोर्ट 12 जुलाई को जारी की गई, पर उससे पहले नौ जुलाई को ही दो विमानन पत्रकारों ने सूत्रों के आधार पर आलेख लिखा कि जांचकर्ता फ्यूल कंट्रोल स्विच के इर्दगिर्द ही जांच का दायरा केंद्रित किए हुए हैं कि यह स्विच पायलटों से जाने-अनजाने में दब गया था।

उन्होंने परिस्थितियों का पूरा विवरण प्रस्तुत किया था। इसके दो दिन बाद द वाल स्ट्रीट जर्नल (डब्ल्यूएसजे) ने भी फ्यूल कंट्रोल स्विच को लेकर इसी तरह की रिपोर्ट प्रकाशित की। इस अखबार ने यह दावा भी किया कि जांच की दिशा को लेकर भारतीय एएआइबी एवं अमेरिकी एनटीएसबी में मतभेद हैं और अमेरिकी एजेंसी ने जांच से अलग होने की धमकी भी दी। अंतत: 12 जुलाई को करीब आधी रात के बाद एएआइबी ने रिपोर्ट जारी की, जिससे उस देश को निराशा ही हाथ लगी जो इस मामले में जवाब चाहता था।

रिपोर्ट में सबसे बड़ी विसंगति यही है कि 34 सेकेंड में ही क्रैश हो गए विमान के सीवीआर-काकपिट वायस रिकार्डर का पूरा ब्योरा इसमें प्रकाशित नहीं किया गया है। इससे यह समझने में आसानी होती कि आखिर क्या हुआ होगा। यहां तक कि कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम के समय का भी उल्लेख नहीं किया गया, जैसे पायलटों ने कब कथित तौर पर एक दूसरे से बातचीत की या कब रैट-रैम एयर टरबाइन चालू हुई आदि-इत्यादि। रिपोर्ट को संदिग्ध और रहस्यमयी तरीके से पेश करना भी सवाल खड़े करता है।

वाल स्ट्रीट जर्नल ने 17 जुलाई को फिर इस मामले में विमान के मुख्य पायलट पर आरोप मढ़ा। लीक सूचनाओं के आधार पर उसने लिखा कि मुख्य पायलट ने ही स्विच को खींचा था और फर्स्ट आफिसर ने इस पर घबराहट भरी प्रतिक्रिया दी। पहले यह आरोप मद्धम स्वर में लगाया जा रहा था, लेकिन अखबार ने इसे और मुखरता दी। काकपिट में कथित रूप से जो कुछ घटित हुआ, अखबार ने उसकी और बदरंग तस्वीर ही दिखाई। वाल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार एनटीएसबी की मुखिया जेनिफर होमेंडी को यह निर्देश मिला कि वह खुद पूरी रिकार्डिंग सुनें। उसने दावा किया कि अमेरिकी अधिकारी यह भी मानते हैं कि इस मामले में एफबीआइ जैसी एजेंसी भी सक्रिय होनी चाहिए कि अगर इस तरह के मामले अमेरिकी धरती पर घटित हुए तब क्या?

भारत में हमारे लिए यह और हैरानी भरा है कि हमें एएआइबी रिपोर्ट से अधिक जानकारियां अमेरिकी मीडिया में लीक से मिल रही हैं। यह रिपोर्ट की संदिग्ध प्रकृति के साथ ही उसे तैयार करने में लापरवाही या लीपापोती के रवैये को दर्शाता है। जिस दिन रिपोर्ट जारी हुई उसी दिन ऐसी अनुभूति हो गई थी कि एनटीएसबी और एएआइबी जितना कुछ जानते हैं, उससे कहीं कम जाहिर कर रहे हैं। उनकी कोशिश जानकारियों को किस्तों में बताने की लगती है।

सीवीआर संबंधी ब्योरे का नदारद रहना भी प्रारंभिक रिपोर्ट की एक बहुत बड़ी असफलता है। यह भी संभव है कि एएआइबी द्वारा ध्यान भटकाने के लिए भी यह सब किया जा रहा हो, क्योंकि इस मामले में अभी भी कई तकनीकी पहलू उलझे हुए हैं। जो भी हो इस आरंभिक जांच रिपोर्ट के बाद बोइंग के शेयर साल भर के उच्च स्तर पर पहुंच गए। डब्ल्यूएसजी लीक के बाद यह तेजी और बढ़ गई। इससे यह तो पता चलता है कि आरंभिक रिपोर्ट से किसी को तो लाभ पहुंचा है।

वाल स्ट्रीट जर्नल के आरोपों का अभी भी सच्चाई से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं दिखता। ऐसे में समूची सीवीआर ट्रांसक्रिप्ट रिलीज ही कुछ कारगर असर दिखा सकती है। इसी से पता चल सकता है कि काकपिट के भीतर क्या घटित हुआ? बोइंग ड्रीमलाइनर तमाम चेतावनी प्रणालियों से लैस एक उच्चस्तरीय इलेक्ट्रानिक विमान है जिनमें कुछ प्रणालियां अपनी अधिकता से जटिलताएं भी बढ़ाती हैं। इन सभी का सीवीआर और डीएफडीआर यानी डिजिटल फ्लाइट डाटा रिकार्डर में ब्योरा दर्जा होता है।

किसी खतरनाक पड़ाव से जुड़ी तमाम मौखिक एवं विजुअल चेतावनियों से काकपिट और दोनों पायलटों की स्क्रीन जगमगा उठी होगी, लेकिन अफसोस कि इस बिंदु पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा। इस दौरान पायलटों ने बातचीत की होगी, जिसका रिपोर्ट में भी उल्लेख है। उन्होंने प्रत्येक चेतावनी को देखते हुए उनके बारी-बारी से निदान का प्रयास भी किया होगा, जिसका परिणाम दोनों इंजन फेल होने और उन्हें रीस्टार्ट करने के रूप में निकला। इसका सेकेंड दर सेकेंड ब्योरा दर्ज हुआ होगा जिसे सीवीआर ट्रांसक्रिप्ट का हिस्सा बनाया जाना चाहिए था।

चूंकि इस मामले में जांच सही दिशा में बढ़ती नहीं दिख रही है, इसलिए हमें अपनी आवाज उठानी होगी। मेरा सभी यात्री, पायलट और विमानन संगठनों से अनुरोध है कि वे इसे लेकर कोई जनहित याचिका दायर करें या प्रधानमंत्री से अपील करें कि वे हाई कोर्ट के किसी सेवारत न्यायाधीश से इसकी न्यायिक जांच सुनिश्चित कराएं। इसमें 787 के पायलट और विशेषज्ञ भी शामिल होने चाहिए।

(लेखक कानून, विमानन और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार हैं)