[ रामिश सिद्दीकी ]: सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले से सदियों पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को सुलझा कर देश में सांप्रदायिक सौहार्द की एक मजबूत नींव रख दी है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट स्थापित करने और मस्जिद के लिए वैकल्पिक भूमि आवंटित करने का आदेश दिया है। देखा जाए तो यह विवाद हमारे समय के सबसे तल्ख मुद्दों में से एक था जिसका अब अंत हो गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मुस्लिम समुदाय इससे सबक लेगा और सामाजिक सद्भाव कायम करने में आगे बढ़कर अपनी भूमिका निभाएगा।

धर्म के आधार पर विभाजन तमाम गहरे जख्म छोड़ गया

दरअसल 1947 में धर्म के आधार पर भारतीय उपमहाद्वीप का विभाजन तमाम गहरे जख्म छोड़ गया था। हमारे स्वतंत्रता संग्र्राम के दौरान हिंदू और मुस्लिम, दो ऐसे समुदाय थे जो एक-दूसरे के बहुत करीब थे और कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे, लेकिन विभाजन के बाद प्रेम, सद्भाव और भाईचारे जैसी भावनाएं नाराजगी, अविश्वास और संदेह में बदल गई थीं। विभाजन के लगभग चार दशक बाद राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद ने तो जैसे दोनों समाजों के बीच विभाजन की खाई को और चौड़ा कर दिया। हालांकि मुस्लिम नेता इसे सद्भाव बहाल करने के लिए दूसरे ऐतिहासिक अवसर के रूप में ले सकते थे। मगर ऐसा नहीं हुआ। बेहतर होता कि उन्हें शुरू में ही मंदिर निर्माण के प्रस्ताव को पूरी ईमानदारी से स्वीकार कर मस्जिद को स्वयं स्थानांतरित करने का सुझाव देना चाहिए था, लेकिन ऐसा सोच पाना जैसे उनकी बुद्धिमता के परे था।

धर्म को हमेशा विभाजनकारी शक्ति के रूप में देखा गया

इस्लामिक देशों में ऐसे पर्याप्त उदाहरण हैं जहां मस्जिदों को स्थानांतरित कर दिया गया है। मुस्लिम देश इस फॉर्मूले को पहले ही अपना चुके थे जो अपनी अर्थव्यवस्था की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने यहां स्थित मस्जिदों को स्थानांतरित कर रहे थे। धर्म एक ऐसा अनुशासन है जो अपने अनुयायियों को समाज का एक शांतिपूर्ण सदस्य बनने का संदेश देता है, लेकिन इसके विपरीत धर्म को हमेशा एक विभाजनकारी शक्ति के रूप में देखा गया।

मुस्लिम नेतृत्व मुस्लिम समुदाय के विचारों को सकारात्मक ढांचा नहीं दे पाया

मैने यह बात कुछ वर्ष पहले भी कही थी कि भारतीय मुस्लिम नेतृत्व समूचे अयोध्या प्रकरण में मुस्लिम समुदाय के विचारों को एक सकारात्मक ढांचा नहीं दे पाया। समुदाय के नेताओं को अतीत से बाहर आकर देश को विकास की दिशा में आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए थी। इसके बजाय वे नकारात्मक भावनाओं में जकड़े रहे और अपने दिलों में नाराजगी को रखते हुए अपनी संपूर्ण शक्ति को नकारात्मक दिशा में लगाते रहे। एक राष्ट्र अपनी संस्कृति, समाज, आस्था और इतिहास का एक सम्मिश्रण होता है। संस्कृति और इतिहास का संरक्षण और किसी धर्म या आस्था में विश्वास किसी भी समाज के अस्तित्व के दो अलग-अलग पहलू हैं।

मिस्न इस्लाम पूर्व की संस्कृति को अपना अभिन्न अंग मानता

उदाहरण के लिए अरब देशों ने अपने इतिहास को पुनर्स्थापित करने के लिए पिछले कुछ वर्षों से भारी निवेश करना शुरू कर दिया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने अपना धर्म त्याग दिया है। मैैं एक बार संयुक्त अरब अमीरात के शहर दुबई में एक बहु-सांस्कृतिक कार्यक्रम में गया था जहां मैैंने मिस्न के हॉल का दौरा किया था। मुझे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ था कि एक मुस्लिम देश होने के बावजूद मिस्न अपनी इस्लाम से पूर्व की संस्कृति को विश्व के सामने लाने में बिल्कुल पीछे नहीं था, बल्कि वह इस्लाम पूर्व की संस्कृति को अपना अभिन्न अंग मानता है। यह हमारे लिए भी एक सीख थी। मिस्न का इतिहास किसी से छिपा नहीं है। ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ जैसा कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन मिस्न की जमीन पर ही पनपा है, लेकिन ऐसा हिंसक संगठन भी मिस्न को अपने इतिहास एवं संस्कृति का सम्मान करने से नहीं रोक पाया।

भारतीय मुसलमान सकारात्मक भूमिका निभाएं

भारतीय मुसलमानों के लिए भी यह जरूरी है कि वे इस देश का नागरिक होने के कारण यहां के विकास और भारत की प्राचीन संस्कृति के संरक्षण में सकारात्मक भूमिका निभाएं। भारत हमेशा से आध्यात्मिकता और आत्मज्ञान का जन्मस्थान रहा है। एक भारतीय के रूप में हमारे लिए आवश्यक है कि हम स्वयं को बेहतर बनाते हुए एक-दूसरे की आस्थाओं का सम्मान भी करें।

मुस्लिम नेताओं ने सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाया

मुस्लिम समुदाय के चंद नेताओं ने न सिर्फ सामाजिक ताने-बाने को, बल्कि इस भावनात्मक मुद्दे पर आम आदमी की भावनाओं को भी काफी नुकसान पहुंचाया है। वर्तमान समय में भारत के मुस्लिम युवाओं के लिए अब बहुत आवश्यक हो गया है कि वे समुदाय के इन नेताओं का अंधानुकरण बिल्कुल न करें। उनके लिए जरूरी है कि वे अपनी सोच और ताकत को देश निर्माण के सकारात्मक कार्यों में लगाएं। मध्यकालीन यूरोप में जब धार्मिक व्यक्तियों द्वारा बौद्धिक उत्पीड़न अपने चरम पर था और इतिहास को धीरे-धीरे मिटाया जा रहा था तब वहां चंद लोगों ने एक शांतिपूर्ण आंदोलन छेड़ा जिसे विश्व ‘पुनर्जागरण’ के नाम से जानता है। यह एक ऐसा आंदोलन था जिसने न सिर्फ उनके जीवन को, बल्कि पूरे विश्व को एक नई दिशा दी।

भारतीय मुस्लिम समुदाय को बौद्धिक पुनर्जागरण की जरूरत

पुनर्जागरण ने मानवता को आधुनिक सभ्यता के मार्ग पर आगे बढ़ाया। उसका परिणाम आज हम देख रहे हैं, जो केवल एक समाज या एक देश तक सीमित नहीं है, बल्कि समस्त मानवजाति तक पहुंचा है। पुनर्जागरण ने यूरोपीय लोगों की सोच को हमेशा के लिए बदल दिया। जो लोग स्वयं अंधकार के दलदल में धंस चुके थे, उन्होंने अपनी इच्छाशक्ति से पूरी दुनिया की खोज कर डाली। भारतीय मुस्लिम समुदाय को आज एक ऐसे ही बौद्धिक पुनर्जागरण की जरूरत है, ताकि वे दशकों से फंसे पूर्वाग्रहों की गहराइयों से बाहर निकल सकें, लेकिन इस तरह के आंदोलन की शुरुआत तब होती है जब हम जानते और मानते हैं कि अतीत में हमसे क्या गलतियां हुई हैं।

बेहतर भविष्य के निर्माण में कामयाबी के लिए हम इतिहास से सबक लें

कोई भी व्यक्ति या समाज इतिहास में वापस जाकर उसे दोबारा नहीं लिख सकता है, लेकिन एक कार्य हम सब निश्चित रूप से कर सकते हैं। और वह है कि हम इतिहास से सबक लें, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण करने में कामयाब हो सकें। एक राष्ट्र का सबसे बड़ा संसाधन उसके लोग होते हैं। यह स्वाभाविक है कि किसी भी राष्ट्र को विकास की राह पर आगे बढ़ाने के लिए वहां के नागरिक अपने राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखें।

( लेखक इस्लामिक विषयों के जानकार हैैं )