अजय कुमार। आपरेशन सिंदूर ने भारत की उन क्षमताओं को साबित किया कि पाकिस्तान की धरती पर कदम रखे बिना भी उसके भीतरी इलाकों में स्थित आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया जा सकता है। अमेरिका और इजरायल ने भी ईरान के प्रमुख सैन्य ठिकानों पर हवाई हमलों के जरिये ऐसी ही क्षमताएं दिखाईं। तुर्किये से लेकर रूस जैसे देश अपनी वायु सैन्य शक्ति विशेषकर ड्रोन जैसी तकनीक पर भरोसा करते हैं।

वायु और अंतरिक्ष में किसी देश की क्षमताएं ही उसकी सामरिक शक्ति को निर्धारित कर रही हैं, क्योंकि इसके जरिये सुदूरवर्ती जगह से भी पूरी सटीकता एवं तत्परता से हमला कर दुश्मन को क्षति पहुंचाई जा सकती है। अतीत में युद्ध संसाधनों की दृष्टि से जमीन कब्जाने के लिए लड़े जाते थे, जिसमें जमीन पर सक्रिय सैन्य बलों के लिए वायु शक्ति सहायक की भूमिका निभाती थी। हालांकि जमीन कब्जाने के साथ और जटिलताएं जुड़ी होती हैं, जैसे उस पर काबिज होने के बाद वहां गवर्नेंस भी कई बार बोझ बन जाती है।

स्थानीय लोगों के प्रतिरोध का भी सामना करना पड़ता है जो अक्सर गुरिल्ला युद्ध का रूप ले लेता है। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है। अपने उपनिवेशों से ब्रिटेन का निकलना, वियतनाम, इराक और अफगानिस्तान से अमेरिका का पलायन और अफगानिस्तान से सोवियत संघ का पीछे हटना यही साबित करता है कि क्षेत्रीय कब्जे में गवर्नेंस का अंतर्निहित बोझ छिपा होता है। यही कारण है कि आधुनिक समर नीति में युद्धों का स्वरूप बदल गया है। इसमें परंपरा से इतर अपने उद्देश्यों की पूर्ति एवं वर्चस्व पर ध्यान केंद्रित होता है।

समय के साथ वायु सैन्य शक्ति को लेकर राजनीतिक दृष्टिकोण बदला है। एक समय इसे उकसाने वाला कदम समझा जाता है, लेकिन अब इसे सटीक प्रहार वाली नियंत्रित कार्रवाई के रूप में मान्यता मिल रही है। भारत के बालाकोट और आपरेशन सिंदूर जैसे अभियान से लेकर ईरान पर अमेरिका-इजरायल की बमबारी यही साबित करती है कि वायु सैन्य शक्ति टकराव को व्यापक रूप से बढ़ाए बिना ही दुश्मन को घर में घुसकर दंडित करने में उपयोगी साबित होती है। चूंकि ऐसे हमले मुख्य रूप से खुफिया जानकारी पर आधारित चिह्नित आतंकी या सैन्य इलाकों को निशाना बनाकर किए जाते हैं तो इसमें आम जन हानि की आशंका भी घट जाती है।

युद्ध का बुनियादी सिद्धांत ही यही है कि दुश्मन आपके हमले से चौंक जाए। वायु सैन्य शक्ति चौंकाने वाले इस पहलू को सुनिश्चित करती है। यह जितनी गति, तत्परता और सटीकता से लक्ष्य को साधती है, उसकी किसी अन्य पारंपरिक सैन्य शक्ति से तुलना संभव नहीं। इसके जरिये दुश्मन के कमांड सेंटर, आपूर्ति शृंखला और बुनियादी ढांचे को चोट पहुंचाकर उसकी कमर तोड़ना संभव है।

वायु सैन्य शक्ति भी समय के साथ बहुत उन्नत होती गई है। पूर्व में मिग-21 जैसे विमान बेस से केवल कुछ सैकड़ों किमी दूर तक ही संचालित हो सकते थे। आज लंबी दूरी तक मारक क्षमता वाले बमवर्षक, ड्रोन, क्रूज मिसाइलों के साथ ही हवा में ही ईंधन भरने की सुविधा ने हजारों किमी दूर सुदूरवर्ती इलाकों तक मार करने की क्षमता दिलाई है और वह भी दुश्मन के वायु क्षेत्र में प्रवेश किए बिना।

मिसाइलें तो 1,000 किमी से भी दूर तक निशाना लगा सकती हैं। हाइपरसोनिक मिसाइलें तो कम समय में ही काम निपटा सकती हैं। बी-52 और राफेल जैसे विमान हवा में ही ईंधन भरकर घंटों तक उड़ते हुए महाद्वीपों की सीमा को पार कर सकते हैं। एमक्यू-9 रीपर जैसे ड्रोन दिन भर से अधिक तक अपने लक्ष्य के ऊपर मंडरा सकते हैं।

नि:संदेह भारत ने अपनी वायु सैन्य शक्ति में बढ़ोतरी की है और यह क्रम निरंतर तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन हमें चीन को लेकर अपनी सतर्कता भी बढ़ानी होगी, जिसने अपनी सामरिक शक्ति को बड़े पैमाने पर बढ़ाया है। चीनी वायु सेना के पास 200 से अधिक जे-20 स्टील्थ फाइटर्स हैं और पिछले 15 वर्षों में उसने आधुनिक लड़ाकू विमानों के अपने बेड़े को तीन गुना तक बढ़ाया है। एच-6के बमवर्षक के साथ लंबी दूरी की उसकी मारक क्षमताएं बढ़ी हैं तो वाई-20 ट्रांसपोर्ट एयक्राफ्ट के जरिये सैनिकों और रसद सामग्री को तेजी से कहीं भी पहुंचाने की उसकी क्षमता में इजाफा हुआ है।

चीन ने लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली पीएल-15 जैसी मिसाइल विकसित की है और उसके उन्नत संस्करणों को तैयार करने में भी लगा हुआ है। हाइपरसोनिक मिसाइलों पर भी वह भारी दांव लगा रहा है। चीन के मिसाइल लांचर भी 2000 के बाद दोगुने से अधिक हो गए हैं। उसका बायडू सैटेलाइट सिस्टम सामरिक मोर्चे को लक्षित करने और नेविगेशन से लेकर संचार सुविधाओं में सहयोग करता है। पाकिस्तान के साथ चीन की नजदीकियों को देखते हुए भारत की चुनौतियां और बढ़ जाती हैं।

इसलिए भारत को न केवल अपनी मौजूदा रक्षा प्रणालियों, बल्कि आधुनिक क्षमताओं के विकास को लेकर भी तत्परता का परिचय देना होगा। इसमें एएमसीए, एलसीए, एमके-टू, लंबी दूरी तक सटीक निशाना लगाने वाली मिसाइलें, हाइपरसोनिक हथियार, एमएएलई और एचएएलई ड्रोन और हवा में ईंधन भरने की अत्याधुनिक तकनीकों को प्राथमिकता में रखना होगा। एडवांस रडार और सेंसर सुइट्स, इलेक्ट्रानिक वारफेयर सिस्टम्स के साथ ही पूर्णतया सुरक्षित एवं एआइ-संचालित कमांड एवं कंट्रोल नेटवर्क विकसित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

अंतरिक्ष मोर्चे पर भारत को सैटेलाइट निगरानी, नाविक, संचार, अर्ली-वार्निंग और एंटी-सैटेलाइट क्षमताएं विकसित करनी होंगी। वायु रक्षा प्रणालियों का एकीकरण और विभिन्न सैन्य बलों में उनके उपयोग को सुगम एवं लचीला बनाना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके लिए स्वदेशी शोध एवं विकास में निरंतर निवेश बढ़ाना होगा। सार्वजनिक-निजी भागीदारी भी मजबूत बनाई जाए। खरीद प्रक्रिया को गति देनी होगी।

वायु और अंतरिक्ष क्षमताएं ही अब संहारक एवं निवारक क्षमताओं को निर्धारित कर रही हैं तो भारत प्राथमिकता के आधार पर अपने औद्योगिक आधार को सक्रिय एवं सशक्त करते हुए ऐसी क्षमताओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करे।

(लेखक संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं पूर्व रक्षा सचिव हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)