संयुक्त राष्ट्र में सुधार नहीं हुआ तो तो दुनिया के लिए होगा नुकसानदेह, देना होगा ध्यान
विश्व में शांति, सुरक्षा और विकास के लिए आवश्यक है कि संयुक्त राष्ट्र निष्पक्ष और मजबूत बना रहे तथा समस्त देशों को इसके विभिन्न अंगों में प्रतिनिधित्व का समान अवसर प्राप्त हो
सिद्धार्थ मिश्र। विश्व में विभिन्न देशों के बीच अनेक प्रकार के विवाद और संघर्ष मौजूद रहे हैं और इन पर मंथन करने के लिए वैश्विक मानव संसद की हमेशा जरूरत रही है। विवादों को सुलझाने के लिए पिछली कुछ शताब्दियों में कई प्रकार के अंतरराष्ट्रीय संघों का निर्माण हुआ, परंतु ज्यादातर संघ अस्थाई थे जो केवल विवाद होने पर ही अस्तित्व में आते और समस्या खत्म होने पर समाप्त हो जाते। लिहाजा विश्व को एक स्थाई अंतरराष्ट्रीय संगठन की निरंतर दरकार थी। 19वीं शताब्दी में सुरक्षा, संचार और यातायात सहित अन्य क्षेत्रों में सार्वजानिक तथा निजी स्तर पर हुए प्रयासों के परिणामस्वरूप सरकारों और नागरिकों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में पारस्परिक सहयोग प्रारंभ हुआ। फिर 24 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई। इसका मुख्य लक्ष्य विश्व में शांति एवं सुरक्षा, राष्ट्रों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध और वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए देशों में परस्पर सहयोग उत्पन्न करना है। राष्ट्रों के बीच समानता और सशस्त्र बल प्रयोग पर प्रतिबंध इसके प्रमुख सिद्धांत हैं।
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के तहत सुरक्षा परिषद्, महासभा, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद्, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय और सचिवालय जैसे अंग बनाए। संयुक्त राष्ट्र के जनक देशों का विश्वास था कि शांति, विकास और मानव अधिकारों की सुरक्षा एक-दूसरे के पूरक हैं और विश्व में शांति और सुरक्षा देशों के आंतरिक विकास के बिना संभव नहीं है। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र विश्व में न सिर्फ सुरक्षा, बल्कि शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान, स्वास्थ्य, आर्थिक विकास, मानव अधिकार और पर्यावरण सुरक्षा आदि क्षेत्रों में भी कार्यरत है। विश्व में शांति और सुरक्षा को बनाए रखने की जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद् को दी गई जिसके कुल 15 सदस्यों में पांच स्थाई और दस अस्थाई सदस्य हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन सुरक्षा परिषद् के स्थाई सदस्य और विशेष वीटो शक्ति के साथ विश्व के पुलिसमैन हैं। सुरक्षा परिषद् में महत्वपूर्ण प्रस्ताव समस्त स्थाई सदस्यों की सहमति से पारित होता है और यदि एक भी स्थाई सदस्य अपनी वीटो शक्ति का प्रयोग करे तो फैसला रुक सकता है।
संयुक्त राष्ट्र के दखल से राष्ट्रों के मध्य पारंपरिक युद्ध काफी हद तक रुक गए, परंतु उनके बीच विवाद खत्म नहीं हुए और देशों ने युद्ध के अप्रत्यक्ष तरीके अपना लिए। जिसमें गृहयुद्ध भड़काने, आतंकवाद फैलाने, गुरिल्ला और साइबर युद्ध आदि से युद्ध की प्रकृति बदल गई और नॉन स्टेट एक्टर्स भी गंभीर चुनौती बन कर उभरे। इन समस्याओं से निपटना संयुक्त राष्ट्र के लिए बड़ी जिम्मेदारी थी। हालांकि केवल पांच ही राष्ट्र स्थाई सदस्य होने से सुरक्षा परिषद् की संरचना को लेकर हमेशा विवाद रहा और महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा के चलते इसकी निष्पक्षता हमेशा संदेह में रही है। आज यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में सुधार मुहीम का मुख्य बिंदु है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद के दशकों में असंतुलित आर्थिक विकास और प्रतिस्पर्धा के चलते दुनिया विकसित और अविकसित तथा उत्तरी और दक्षिणी देशों में बंट गई थी और यह विभाजन संयुक्त राष्ट्र में भी परिलक्षित हुआ।
विकसित देशों ने अपनी उन्नत तकनीक के बल पर विश्व के प्राकृतिक स्नोतों, जो कि अधिकतर विकासशील देशो में थे, पर कब्जा करने की साजिश रची। जब तक विकासशील देश इसे समझ पाते उनकी काफी हानि हो चुकी थी, परंतु बाद विकासशील देशों ने कई अंतरराष्ट्रीय संधियों और महासभा के प्रस्तावों में अपने पक्ष में प्रावधान डलवाए। 193 सदस्यों वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। विश्व में तेजी से बदलते भूराजनीतिक परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र की विशेष भूमिका है। देशों के मध्य बन रहे नए समीकरण और नई शक्तियों के उभार से संयुक्त राष्ट्र के समक्ष अनेक चुनौतियां मौजूद हैं। सीरिया में फैली अराजकता, शरणार्थी समस्या, यमन जैसे हमले, उत्तर कोरियाई परमाणु परीक्षण, अफ्रीकी देशों की समस्या, सऊदी अरब और इजरायल द्वारा मानव अधिकारों का उल्लंघन सहित अनेक समस्याओं का विश्व साक्षी बना है।
पूर्व में अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा सुरक्षा परिषद् की सहमती बिना अफगानिस्तान और इराक पर हमले, चीन का दक्षिणी चीन सागर मामले पर अड़ियल रुख और आतंकवाद पर पाकिस्तान के पक्ष में वीटो, देशों का आतंकवाद पर दोहरा रवैया तथा आतंकवाद की परिभाषा पर असहमति जैसे मामले संयुक्त राष्ट्र की प्रतिष्ठा पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद् की कश्मीर मसले पर भारत के खिलाफ आई रिपोर्ट और इजरायल के पक्ष में अमेरिका का इस परिषद् से निकलना दर्शाता है कि देशों का अंतरराष्ट्रीय संघों में हस्तक्षेप निरंतर जारी है। इस परिवेश में प्रासंगिक बने रहने के लिए संयुक्त राष्ट्र को राजनीतिकरण से बचने, अपनी संरचना में सुधार करने और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों को सुरक्षा परिषद् में स्थान देने की जरूरत है। आज कई राष्ट्र पहले से अधिक शक्तिशाली बन गए हैं और वे सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्यता के दावेदार हैं। इनमें भारत, ब्राजील, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका और जापान प्रमुख हैं।
सुरक्षा परिषद् के कुछ स्थाई सदस्य जैसे कि ब्रिटेन और फ्रांस अब पहले जैसे ताकतवर नहीं रहे और उनका सुरक्षा परिषद् में बने रहना न्यायोचित नहीं लगता। संयुक्त राष्ट्र में सुधार के अभाव में अन्य शक्तियों के आपस में मिल कर इसके समकक्ष नए समूह बनाने की संभावना है जिससे इन समूहों के बीच खींचतान बढ़ेगी और देशों के मध्य तनाव बना रहेगा। क्षेत्रीय या अन्य अनौपचारिक संगठनों का उभार इसी घटनाक्रम की परिणति है। संयुक्त राष्ट्र अनेक मामलों में बेहद सफल रहा है और तृतीय विश्व युद्ध का न होना नि:संदेह इसकी महत्वपूर्ण उपलब्धि है। विश्व में शांति, सुरक्षा और विकास के लिए आवश्यक है कि संयुक्त राष्ट्र निष्पक्ष और मजबूत बना रहे तथा समस्त देशों को इसके विभिन्न अंगों में समुचित प्रतिनिधित्व का समान अवसर प्राप्त हो। इसके लिए देशों को निजी स्वार्थ छोड़ कर विश्व के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा।
(लेखक विधि संकाय, दिल्ली विवि. में सहायक प्रोफेसर हैं)












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