National Education Policy 2020: नई शिक्षा नीति में भारतीयता और देसी भाषाओं को महत्ता
नई शिक्षा नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें कला संस्कृति और भाषा के माध्यम से मनुष्य की सृजनात्मक क्षमता को जागृत करने पर बल दिया गया है।
डॉ. मुरार जी त्रिपाठी। भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, वरन किसी भी राष्ट्र के स्वाभिमान तथा उसकी प्राचीन संस्कृति की संवाहिका भी होती है। गुलाम देशों की अपनी कोई भाषा नहीं होती। वे अपने शासकों की बोली बोलने को मजबूर होते हैं। भाषा के बिना देश गूंगा होता है। कला, संस्कृति, विज्ञान, गणित, भूगोल, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, चिकित्सा विज्ञान, तकनीक- सबका अधिगम भाषा ही है। शब्दों की ज्योति न हो तो पूरे संसार में अंधेरा छा जाता है।
विश्व के इतिहास पर दृष्टि डालें तो गुलामी से आजादी के बाद दुनिया के प्राय: सभी देशों ने अपनी भाषा में अपनी प्रगति का मार्ग चुना। इजराइल ने तो अपनी मृतप्राय हो चुकी हिब्रू भाषा को अपनी राष्ट्रभाषा बनाया और आज वह भाषा पूरी दुनिया में तकनीक की प्रमुख भाषाओं में शामिल है। आज हिब्रू का अनुवाद अन्य भाषाओं में लोग करने को मजबूर होते हैं। रूस ने रशियन, चीन ने चीनी और जापान ने जापानी भाषा को अपनी शिक्षा-दीक्षा तथा राजकाज की भाषा बनाया। हमारे छोटे से पड़ोसी देश नेपाल ने भी अपनी भाषा नेपाली ही बनाई। भारत इसका अपवाद रहा है। औपनिवेशिक दासता से मुक्ति के बाद एक प्राचीन राष्ट्र होते हुए भी अंग्रेजी यहां राजकाज एवं संपर्क की भाषा बनी हुई है। अन्य भारतीय भाषाएं अंग्रेजी की चेरी के रूप में उसकी गुलामी करती हुई दिखाई देती हैं। शिक्षा की दशा एवं दिशा सुधारने के लिए अब तक गठित लगभग सभी आयोगों ने अंग्रेजी के वर्चस्व को समाप्त करने की संस्तुति की, किंतु परिणाम के नाम पर ढाक के वही तीन पात नजर आते रहे। अंग्रेजों के जाने के बाद भी सिक्का अंग्रेजी का ही कायम है।
सृजनात्मक क्षमता को जागृत करने पर जोर : राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बड़ी शिद्दत के साथ इस कमी को महसूस किया गया और पहली बार भाषा की ताकत की पहचान करते हुए हिंदुस्तान को अपनी वाणी दी गई है। इस शिक्षा नीति में पहली बार शिक्षा में भाषा तथा भाषा की शिक्षा पर पूरा जोर दिया गया। इतना ही नहीं, भाषा को शिक्षा में मूल्य बोध, दृष्टिकोण और सृजनात्मक कल्पना के निíमति का साधन भी माना गया है। नई शिक्षा नीति में किशोरावस्था तक मातृभाषा में शिक्षा की व्यवस्था की गई है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि मौलिक विचार अपनी मातृभाषा में ही आते हैं, इसलिए उच्च शिक्षा और अनुसंधान के लिए भी मातृभाषा का ही प्रयोग होना चाहिए। विदेशी भाषा सीखने के चक्कर में मौलिक विचार समाप्त हो जाता है। मैकाले की शिक्षा नीति में भारत के स्थान पर यूरोपीय हितों की पूíत हो रही थी। प्लेटो, अरस्तू, मैक्समूलर आदि तो पढ़ाए जा रहे थे, किंतु भारत के कपिल, कणाद, गौतम, भास्कराचार्य, चाणक्य, ब्रrागुप्त, पाणिनि, कात्यायन, पतंजलि, सुब्रमण्यम भारती, तिरुवल्लुवर और अगस्त्य जैसे दार्शनिकों, शिक्षाविदों, तत्व चिंतको की पूरी उपेक्षा हो रही थी।
भारतीय भाषाओं का संवर्धन : भारतीय भाषाओं की हिफाजत न हो पाने से विगत पांच दशकों में देश ने 220 भाषाओं को खो दिया है। यूनेस्को ने 197 भारतीय भाषाओं को लुप्तप्राय घोषित कर दिया है। आठवीं अनुसूची की 22 भाषाएं भी कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना कर रही हैं। इस शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं के शिक्षण और अधिगम को स्कूल और उच्चतर शिक्षा के प्रत्येक स्तर के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता प्रतिपादित की गई है। भाषाएं प्रासंगिक और जीवंत बनी रहें, इसके लिए इन भाषाओं में उच्चतर गुणवत्तापूर्ण अधिगम एवं प्रिंट सामग्री का सतत प्रवाह बनाए रखने की आवश्यकता प्रतिपादित की गई है।
नई शिक्षा नीति में सभी भारतीय भाषाओं के संवर्धन को ध्यान में रखते हुए सुझाव दिया गया है कि भाषाओं के शब्द भंडार लगातार अपडेट होते रहें। कविता, उपन्यास, पत्र-पत्रिकाओं का प्रवाह बना रहे। उनका व्यापक प्रसार, समसामयिक मुद्दों और अवधारणाओं पर भाषाओं में चर्चा हो, तभी भाषाओं का संरक्षण हो सकता है। विदेशी भाषा अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, हिब्रू, कोरियाई में यह क्रम चल रहा है, किंतु भारतीय भाषाओं को जीवंत और प्रासंगिक बनाए रखने के मामले में अभी तक भारत की गति काफी धीमी रही है। इसके लिए भाषा शिक्षकों की कमी दूर करने के साथ ही भाषाओं को अधिक व्यापक रूप में बातचीत और शिक्षण अधिगम के लिए प्रयोग में लाए जाने की आवश्यकता प्रतिपादित की गई है।
अनुभव आधारित भाषा शिक्षण : स्कूली बच्चों के भीतर भाषा, कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए उपाय सुझाए गए हैं। बहुभाषिकता को प्रोत्साहित करने के लिए त्रिभाषा फार्मूला के क्रियान्वयन, मातृभाषा, स्थानीय भाषा में शिक्षण, अधिक अनुभव आधारित भाषा शिक्षण, कलाकारों व लेखकों को स्थानीय विशेषज्ञता के विभिन्न विषयों में विशिष्ट प्रशिक्षक के रूप में स्कूलों से जोड़ने पर बल दिया गया है। उच्चतर शिक्षा संस्थानों में भाषाविदों को अतिथि शिक्षक के रूप में नियुक्त करने, भाषाओं की मजबूती, उपयोग एवं जीवंतता को प्रोत्साहन देने का सुझाव दिया गया है। विभिन्न भारतीय भाषाओं में उच्चतर गुणवत्ता वाली सामग्री विकसित करने का संकल्प लिया गया है। भारतीय भाषाओं में उच्चतर गुणवत्ता की अधिगम सामग्री उपलब्ध कराने के लिए अनुवाद को बढ़ावा देने पर भी बल दिया गया है। इसके लिए एक इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन की स्थापना का भी प्रस्ताव है।
संस्कृत को मुख्यधारा में लाने का प्रयास : देश की प्राचीन संस्कृत भाषा की प्रगति के लिए इसे मुख्यधारा में लाने, इस भाषा के महत्वपूर्ण योगदान तथा विभिन्न विधाओं एवं विषयों के साहित्यिक, सांस्कृतिक महत्व और वैज्ञानिक प्रगति के चलते इस भाषा को उच्च शिक्षा संस्थानों में ज्ञान-विज्ञान की भाषा के रूप में प्रयोग करने का सुझाव दिया गया है। संस्कृत विश्व की सबसे समृद्ध भाषा है। उसमें शब्द संख्या 10 करोड़ है। अंग्रेजी के मूल शब्द केवल 35 हजार हैं। हिंदी के मूल शब्द नौ लाख हैं। विश्व में हिंदी करीब 85 करोड़ लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है, जबकि अंग्रेजी मात्र 32 करोड़ लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है। संस्कृत के इस महत्व को ध्यान में रखते हुए इस भाषा को पाठशाला एवं विश्वविद्यालयों तक सीमित न रख कर इसे मुख्यधारा में लाने का संकल्प किया गया है। संस्कृत केवल एक विषय के रूप में ही नहीं, बल्कि उच्चतर शिक्षा में इसे माध्यम भाषा के रूप में प्रमुख स्थान देने की भी आवश्यकता प्रतिपादित की गई है।
भाषाओं के लिए एक नया संस्थान स्थापित करने और संस्कृत शिक्षकों को बड़ी संख्या में व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने की योजना प्रस्तावित की गई है। इसके अतिरिक्त सभी शास्त्रीय भाषाओं के संस्थानों और विश्वविद्यालयों का विस्तार करने, पांडुलिपि संरक्षण, अनुवाद एवं अध्ययन को मजबूत बनाने के प्रयास की जरूरत पर भी बल दिया गया है। सभी भाषाओं के लिए अकादमी स्थापित करने तथा उसके माध्यम से नवीन अवधारणाओं के शब्द भंडार तय किए जाने की योजना बनाई गई है। भारतीय भाषाओं, कला एवं संस्कृति के अध्ययन के लिए सभी आयु वर्ग के लोगों को छात्रवृत्ति की व्यवस्था पुरस्कार तथा भारतीय भाषाओं में प्रवीणता को रोजगार अर्हता के मानदंडों के एक हिस्से के तौर पर शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है।
नई शिक्षा नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें कला, संस्कृति और भाषा के माध्यम से मनुष्य की सृजनात्मक क्षमता को जागृत करने पर बल दिया गया है। पहले ज्ञान और कौशल को अलग करके देखा जाता था। उसका यह शिक्षा नीति विरोध करती है। शिक्षा नीति के मसौदे के 22वें स्तंभ में भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृति के संवर्धन के संबंध में पूरा खाका पेश किया गया है। इसके अध्ययन से यह साफ हो जाता है कि भारतीयता को आगे रखकर यह शिक्षा नीति बनी है, जिसमें भाषा की शिक्षा पर बल दिया गया है।
[प्रधानाचार्य, सर्वार्य इंटर कॉलेज, प्रयागराज]
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