एम्स साइबर हमले से मिला सबक, डिजिटल इंडिया की तर्ज पर बनानी होगी विशेष रणनीति
विशेषज्ञों के अनुसार चीन के हैकर्स के पास भारत के खिलाफ साइबर हमला करने की बड़ी क्षमता है। जब भी उन्हें मौका मिलता है वे देश की व्यवस्था में बड़ी गड़बड़ी पैदा कर देते हैं। साइबर जगत के विशेषज्ञों के अनुसार यह डाटा-युद्ध का जमाना है।
डा. शशांक द्विवेदी : पिछले दिनों दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सर्वर पर बड़ा साइबर हमला हुआ। हमला इतना गंभीर था कि उसका सर्वर लगातार नौ दिन तक डाउन रहा। इस दौरान एम्स का कामकाज बड़े पैमाने पर ठप रहा। अधिकांश काम को मैनुअल तरीके से निपटाए गए। इस बीच यह भी खबर आई कि हैकिंग करने वालों ने लाखों मरीजों के चुराए हुए डाटा को वापस करने और सर्वर को बहाल करने के लिए क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से 200 करोड़ रुपये की फिरौती भी मांगी। फिलहाल इस हमले की जांच चल रही है, लेकिन इससे यह साफ हो गया है कि देश का कोई भी संस्थान साइबर हमलों से सुरक्षित नहीं है।
दरअसल एम्स के बाद इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) की वेबसाइट पर भी बड़ा साइबर हमला हुआ। हैकर्स ने एक दिन में ही करीब छह हजार बार हमले के प्रयास किए। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के सर्वर पर भी नवंबर के मध्य में एक बड़ा साइबर हमला हुआ था। वह हमला हांगकांग से किया गया था। हालांकि आइसीएमआर के सर्वर की सुरक्षा में कोई खामी नहीं थी, जिससे हैकर्स जानकारी चुराने में विफल रहे।
फिलहाल आइसीएमआर की वेबसाइट सुरक्षित है। इस तरह के साइबर हमलों की जांच-पड़ताल करने वाली दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की शाखा इंटेलीजेंस फ्यूजन स्ट्रैटेजिक आपरेशन के अनुसार हांगकांग की दो ई-मेल आइडी से एम्स के सर्वर पर हमला किया गया। दोनों ई-मेल का आइपी एड्रेस पता कर लिया गया है। आरंभिक जांच के अनुसार इसमें चीन की भूमिका भी सामने आ रही है। इसके पहले भी देश में कई बड़े साइबर हमलों में चीन की भूमिका सामने आई है।
जाहिर है भारत सहित दुनियाभर में इस तरह के साइबर हमलों का खतरा मंडरा रहा है। पिछले तीन साल में चीन से भारत पर कई साइबर हमले किए हैं। पिछले वर्ष एक बड़े साइबर हमले में एयर इंडिया के 45 लाख यात्रियों का डाटा लीक हुआ था। याद कीजिए जब अक्तूबर 2020 में पावर ग्रिड पर साइबर हमले के चलते मुंबई में किस तरह ब्लैकआउट हो गया था और हाल में नेशनल स्टाक एक्सचेंज यानी एनएसई का कामकाज भी कई घंटे प्रभावित रहा।
विशेषज्ञों के अनुसार चीन के हैकर्स के पास भारत के खिलाफ साइबर हमला करने की बड़ी क्षमता है। जब भी उन्हें मौका मिलता है वे देश की व्यवस्था में बड़ी गड़बड़ी पैदा कर देते हैं। साइबर जगत के विशेषज्ञों के अनुसार यह डाटा-युद्ध का जमाना है। हम जब डाटा को टुकड़ों में देखते हैं तो नहीं समझ पाते हैं कि आखिर इसे चुराकर कोई क्या हासिल कर सकता है? लेकिन इन्हीं छोटी-छोटी जानकारियों को एकसाथ जुटाकर और उनका किसी खास मकसद से हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यानी कि देश के आंतरिक मुद्दों, राष्ट्रीय नीति, सुरक्षा, राजनीति, अर्थव्यवस्था सबमें सेंधमारी के प्रयास किए जा सकते हैं।
एक तरफ जहां देश के संवेदनशील संस्थानों पर साइबर हमले के मामले बढ़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ महत्वपूर्ण संस्थान साइबर हमलों से बचने के लिए पर्याप्त कदम तक नहीं उठा रहे हैं। एम्स के मामले में भी बड़ी लापरवाही सामने आई है। मसलन संस्थान में सर्वर के रखरखाव के लिए पिछले करीब साढ़े चार साल से कोई एजेंसी नियुक्त नहीं थी। सर्वर की सुरक्षा के लिए दक्ष कर्मचारियों का भी अभाव था। सर्वर और हार्डवेयर के रखरखाव की जिम्मेदारी पहले एक निजी एजेंसी के पास थी, जिसके अनुबंध का नवीनीकरण 2018 से नहीं हुआ था। उसके बाद से किसी एजेंसी के पास सर्वर के रखरखाव की अधिकृत जिम्मेदारी नहीं थी। इस वजह से सर्वर का ठीक से रखरखाव सुनिश्चित नहीं हो रहा था। साफ है एम्स के सर्वर की सुरक्षा भगवान भरोसे ही थी। ऐसे में साइबर हमले की घटना के बाद एम्स की व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। यह स्थिति तब है जब चिकित्सा व्यवस्था को पूरी तरह डिजिटल करने और डाक्टरों द्वारा मरीजों को लिखी जाने वाली दवा की पर्ची भी आनलाइन जारी करने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। एम्स जैसी ही स्थिति देश के अधिकांश संस्थानों की है, जिन्होंने साइबर हमलों से निपटने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किया है।
देखा जाए तो भारत में कोरोना काल से ही साइबर हमलों का खतरा बढ़ गया है। कोरोना काल तो हैकर्स के लिए बहुत अनुकूल रहा। साल 2020-2021 में भारतीय संस्थानों और यूजर्स पर सबसे ज्यादा साइबर हमले किए गए। साइबर सुरक्षा कंपनी सोनिकवाल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस दौरान लाखों की संख्या में साइबर हमले हुए। महामारी के दौरान सबसे ज्यादा साइबर हमले वर्क फ्राम होम करने वाले यूजर्स पर किए गए। हालांकि इन हमलों से बचने के लिए कई संस्थानों ने पावरफुल क्लाउड-बेस्ड टूल और क्लाउड स्टोरेज तकनीक का इस्तेमाल किया।
वास्तव में साइबर जगत की सुरक्षा इस दौर की बड़ी जरूरत बन गई है। सवाल है कि साइबर हमलों से निपटने के लिए हमारा देश कितना तैयार है? क्योंकि हम सबकी इंटरनेट पर बहुत अधिक निर्भरता बढ़ने की वजह से आज के इस आधुनिक समय में साइबर सुरक्षा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा हो चला है। साइबर विशेषज्ञों के अनुसार भारत में जितने बड़े सर्वर मौजूद हैं, उनमें अधिकांश हैकिंग प्रूफ नहीं हैं। हमारे यहां सरकार भी तभी जागती है, जब कोई बड़ा साइबर हमला हो। हैकर्स के नए तरीकों का हल ढूंढ़ने में महीनों लग जाते हैं। अब भारत को इस तरह के साइबर हमलों के लिए पहले से सतर्क होना होगा। केंद्र सरकार को डिजिटल इंडिया की तर्ज पर साइबर सुरक्षा के लिए विशेष रणनीति और असाधारण प्रयास करने होंगे, क्योकि जब सब कुछ इंटरनेट के भरोसे हो रहा है तो उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना भी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
(लेखक विज्ञान के जानकार हैं)
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