[ राजकुमार चाहर ]: तीन नए कृषि कानूनों ने हमारे अन्नदाता किसानों को अनेक बंधनों से मुक्ति दिलाई है। अब 21वीं सदी में भारत का किसान बंधनों में नहीं, खुलकर खेती करेगा। जहां मन आएगा अपनी उपज बेचेगा। किसी बिचौलिये का मोहताज नहीं रहेगा। अपनी उपज और अपनी आय भी बढ़ाएगा। हालांकि दुख की बात है कि विपक्षी राजनीतिक दल तीनों नए कृषि कानूनों के प्रति किसानों को भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं। वे उनसे झूठ बोल रहे हैं। वे विरोध की आड़ में बिचौलियों का ही साथ दे रहे हैं। जिन यंत्रों से हम किसान अपना खेत जोतते हैं, कांग्रेस इंडिया गेट पर उन्हें जलाने का काम कर रही है।

 किसान संगठनों को है न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडियों के खत्म होने का भय

यह सही है कि इन कानूनों को लेकर विभिन्न किसान संगठनों के मन में कुछ प्रश्न हैं-जैसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडियों के खत्म होने का भय। इसी तरह खेती के उद्योगपतियों के हाथों में जाने और कृषि में उनका दखल बढ़ने को लेकर भी डर है। यह भी सच है कि कांग्रेस पार्टी पहले इन कानूनों को देश के किसानों के लिए अमृत मान रही थी, परंतु आज सबसे ज्यादा विरोध कांग्रेस के बंधु ही कर रहे हैं। हालांकि विपक्ष के विरोध को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा है, ‘हम किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करेंगे। यह उसी दिशा में एक कदम है। ये कानून किसानों को सरकारी मंडियों के अतिरिक्त एक विकल्प देंगे कि वे अपनी फसलों कहीं भी बेच सकें। इसके साथ ही पूर्व की न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था भी जारी रहेगी।’

तीन नए कृषि कानूनों का निर्माण कृषि क्षेत्र के लिए एक क्रांतिकारी कदम

दरअसल 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद भी कयास लगाए जा रहे थे कि इससे सेवा क्षेत्र में भारी नुकसान होगा, लेकिन आज हम 30 वर्षों बाद देख रहे हैं कि सेवा क्षेत्र में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। देश की 20 प्रतिशत जनसंख्या सेवा क्षेत्र पर निर्भर है, लेकिन वह जीडीपी का 60 प्रतिशत निर्धारित करती है। वहीं कृषि में 50 प्रतिशत से अधिक लोग जुड़े हैं, लेकिन जीडीपी में इसका योगदान सिर्फ 16 प्रतिशत है। जिस प्रकार सेवा क्षेत्र में 1991 में सुधार हुए, वैसे ही 2020 में तीन नए कृषि कानूनों का निर्माण कृषि क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम है। हमें इस बात की बेहद खुशी है कि हर क्षेत्र के किसानों के लिए तरक्की के रास्ते खुलेंगे। नए कानूनों के बाद बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाएगी। उन्हेंं अपनी उपज का सही दाम मिल सकेगा-चाहे वह आलू हो या गेंहू अथवा सरसों जैसी उपज। कुछ राज्यों में जब फलों और सब्जियों को कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) कानून से बाहर लाया गया था तो बड़ी संख्या में किसानों को उसका फायदा मिला था। अब अनाज उत्पादक किसानों को भी उसी तरह की आजादी मिलेगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि नए कृषि कानूनों से किसान मजबूत होंगे। जब ऐसा होगा तभी आत्मनिर्भर भारत की नींव भी मजबूत होगी।

कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य एक्ट किसानों के लिए फायदेमंद और ऐतिहासिक है

जहां तक कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम 2020 का सवाल है तो यह राज्य सरकारों की ओर से संचालित मंडियों के बाहर मंडियों के निर्माण के बारे में है। भारत में 2,500 एपीएमसी मंडियां हैं जो राज्य सरकारों द्वारा संचालित होती हैं। कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020 अनुबंध खेती के बारे में है। यह भी किसानों के लिए फायदेमंद और ऐतिहासिक है, लेकिन विपक्ष भ्रम फैलाकर किसानों को बरगलाने का प्रयास कर रहा है। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि इस कानून के बाद भी राज्यों की बाजार समितियों के अधिकार बरकरार रहेंगे। इसलिए किसानों के पास सरकारी एजेंसियों का विकल्प खुला रहेगा। नए कानून किसानों को अंतरराज्यीय व्यापार के लिए प्रोत्साहित करने का काम करेंगे। इससे किसान अपने उत्पादों को दूसरे राज्य में स्वतंत्र रूप से बेच सकेंगे।

व्यापार पर कोई राज्य या केंद्रीय कर नहीं लगेगा

वर्तमान में राज्य सरकारों द्वारा संचालित मंडियों की ओर से विभिन्न वस्तुओं पर एक प्रतिशत से लेकर दस प्रतिशत तक बाजार शुल्क लगाया जाता है, लेकिन अब ऐसे बाजारों के बाहर व्यापार पर कोई राज्य या केंद्रीय कर नहीं लगाया जाएगा। इसके लिए किसी दस्तावेज की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। निजी कंपनियों और व्यापारियों की ओर से मंडी टैक्स का भुगतान होगा, किसानों की ओर से नहीं। इससे खरीदार और विक्रेता दोनों को लाभ होगा। इसके अलावा अब किसान अनुबंध खेती के लिए निजी कंपनियों के साथ भी साझेदारी कर सकते हैं। अनुबंध खेती से संबंधित कानून निजी एजेंसियों को उत्पाद खरीदने की अनुमति देता है।

अनुबंध केवल उत्पाद के लिए होगा

अनुबंध केवल उत्पाद के लिए होगा। किसी भी निजी एजेंसी को किसानों की भूमि के साथ कुछ भी करने की अनुमति नहीं होगी और न ही किसानों की जमीन पर किसी भी प्रकार का निर्माण होगा। वर्तमान में किसान सरकार की ओर से निर्धारित दरों पर निर्भर हैं, लेकिन अब किसान बड़े व्यापारियों और निर्यातकों के साथ जुड़ पाएंगे, जो खेती को लाभदायक बनाएंगे। प्रत्येक राज्य में कृषि और खरीद के लिए अलग-अलग कानून हैं। लिहाजा नए कानून के तहत लागू एक समान केंद्रीय कानून सभी हितधारकों के लिए समानता का अवसर उपलब्ध कराएंगे।

नए कानून कृषि क्षेत्र में अधिक निवेश को प्रोत्साहित करेंगे

नए कानून कृषि क्षेत्र में अधिक निवेश को भी प्रोत्साहित करेंगे, क्योंकि इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। निजी निवेश खेती के बुनियादी ढांचे को और मजबूत करेगा और रोजगार के अवसर पैदा करेगा। सरकारी मंडी प्रणाली के तहत केवल लाइसेंस प्राप्त व्यापारी जिसे आढ़तिया यानी बिचौलिया कहा जाता है, को अनाज मंडियों में व्यापार करने की अनुमति थी, लेकिन नया कानून किसी को भी पैन नंबर के साथ व्यापार करने की अनुमति देता है। इस प्रकार तीनों कानून हर प्रकार से किसानों के हित में हैं।

( लेखक लोकसभा सदस्य एवं भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं )