हृदयनारायण दीक्षित। मंदिर भारतीय आध्यात्मिकता की अप्रतिम अभिव्यक्ति हैं। हिंदू जनमानस की श्रद्धा हैं। भारत की विशिष्ट पहचान हैं, फिर भी मंदिरों को लेकर यदाकदा बहसें छिड़ जाती हैं। ताजा विवाद कर्नाटक का है। यह हिंदू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण वाले 'हिंदू धार्मिक स्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1997' के संशोधन से जुड़ा हुआ है। कानूनी संशोधन के लिए विधानसभा में विधेयक पारित हो गया, लेकिन विधानपरिषद में गिर गया। प्रस्तावित कानून में कोष के लिए एक सामान्य पूल बनाने का प्रविधान है। 10 लाख रुपये और उससे कम वार्षिक आय वाले मंदिरों को छूट का प्रस्ताव है। 10 लाख से अधिक और एक करोड़ से कम की वार्षिक आय वाले मंदिरों को पांच प्रतिशत और एक करोड़ रुपये से अधिक आय वाले मंदिरों को वार्षिक आय का 10 प्रतिशत टैक्स देना पड़ेगा। इस पहल को भाजपा और जद-एस ने हिंदू विरोधी बताया है। आरोप है कि राज्य की कांग्रेस सरकार मंदिरों पर टैक्स लगाकर अपना खजाना भरना चाहती है।

संविधान ने सभी धार्मिक समूहों को संगठन बनाने एवं तद्विषयक प्रबंधन के अधिकार दिए हैं। यहां किसी भी पंथ या रिलीजन की संस्थाओं पर टैक्स का प्रविधान नहीं, लेकिन हिंदू मंदिरों को टैक्स की परिधि में लाने की मंशा है। ईसाई चर्च अपनी पंथिक आवश्यकताओं के प्रबंधन के लिए स्वतंत्र हैं। इस्लाम अनुयायियों के लिए वक्फ बोर्ड है। चर्च और वक्फ टैक्स के दायरे में नहीं हैं। वक्फ बोर्ड स्वतंत्र शक्तिमान निकाय है। चर्च की स्वतंत्र अस्मिता है। सिर्फ हिंदू मंदिरों को ही टैक्स वसूली का निशाना बनाया जाना संविधान विरोधी है। एक देश में दो विधान विभेदकारी है। सभी पंथों के लिए समान नागरिक संहिता की तरह 'समान धार्मिक प्रबंधन संहिता' अनिवार्य है। यूरोप में चर्च और राज्य के बीच विवाद था। थामस हाब्स ने राज्य को सर्वोपरि बताया था। 1840 में ब्रिटेन में नियम बनाया गया। राज्य और चर्च स्वतंत्र हो गए।

ब्रिटिश सत्ता ने 1863 में धार्मिक बंदोबस्त अधिनियम का एलान किया। इसके बाद 'मद्रास हिंदू रिलीजियस बंदोबस्त अधिनियम, 1923" बना। उसमें दावा था कि इससे हिंदू धार्मिक बंदोबस्त मजबूत होगा, लेकिन वह दावा गलत निकला। 1950 में यह व्यवस्था समाप्त हो गई। इसकी भावना को अनुच्छेद 25 एवं 26 में सम्मिलित कर दिया गया। 1991 में 'मद्रास हिंदू धर्म बंदोबस्त अधिनियम' बना। तमिलनाडु में लगभग 400 मंदिर 1000 वर्ष से अधिक प्राचीन हैं। तमिलनाडु मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। इसमें केरल, लक्षद्वीप, तटीय आंध्र, कर्नाटक के कुछ जिले और दक्षिणी ओडिशा का भी कुछ भाग शामिल था। इसी प्रेसीडेंसी में हिंदू धार्मिक संस्थानों को नियंत्रित करने वाला 'मद्रास धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम, 1926' बना था। तमाम मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में लिया गया। 1951 में मद्रास सरकार ने 'मद्रास हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम' लागू किया। यहां हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती बोर्ड को सरकारी विभाग में बदल दिया गया। मद्रास उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने प्रथम शिरूर मठ मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया। इस निर्णय द्वारा 1951 के अधिनियम की लगभग 20 धाराओं को असंवैधानिक और हिंदुओं के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध बताकर रद कर दिया गया। अदालत ने 1951 के अधिनियम की मंदिरों के अधिग्रहण की धाराओं एवं 1926 के अधिनियम की समकक्ष धाराओं को असंवैधानिक एवं अमान्य घोषित कर दिया। परिणामस्वरूप मद्रास सरकार के लगभग 50 प्रमुख मंदिर प्रशासन से बाहर हो गए। राज्य सरकार ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। 1954 के शिरूर मठ फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने 1951 के मद्रास अधिनियम की अधिसूचित धाराओं को असंवैधानिक और अमान्य घोषित कर दिया। मद्रास सरकार 1951 में न्यायालय के आदेश के बाद भी 50 प्रमुख मंदिरों के प्रशासन से अलग नहीं हुई। उसे शिरूर मठ के फैसले के बाद इन मंदिरों को उन समुदायों को सौंप देना चाहिए था जो उनके अधिग्रहण के पहले उन्हें संचालित कर रहे थे।

हिंदुओं के साथ भेदभाव और अन्य आस्थाओं को संपूर्ण अधिकार आहतकारी हैं। हिंदुओं के लिए मंदिर सामान्य स्थापत्य न होकर देव दर्शन के द्वार हैं। प्राचीन मंदिरों में केवल उपासना ही नहीं होती थी। वे शिक्षा, चिकित्सा और लोक कल्याण की योजनाओं को संचालित करने वाले केंद्र थे। मध्यकाल में तमाम मंदिरों को ढहाने के बावजूद अखंड भारत में मंदिरों की संख्या 20 लाख से ऊपर है। इनमें से ढाई लाख से ज्यादा सिख गुरुद्वारे हैं। मंदिर और मठ असाधारण शक्ति-केंद्र हैं। एक आंकड़े के अनुसार नौ लाख मंदिरों में से पांच लाख मंदिर सनातन हिंदू परंपरा के हैं। तमाम मंदिर सरकारी नियंत्रण में हैं। आखिर हिंदू अपने ही देश में अपनी धार्मिक संस्थाओं-मंदिर व्यवस्था के संचालन का अधिकार क्यों नहीं रखते? इसी कानूनी व्यवस्था के कारण अनेक राज्य सरकारों ने हजारों मंदिरों को अधिकार में ले लिया है। इस व्यवस्था में मंदिर प्रबंधन के लिए सरकार प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त करती है, जिन्हें मंदिर प्रबंधन के कोई अनुभव नहीं होते। स्वायत्त मंदिर प्रबंधन अपना उद्देश्य आसानी से पूरा करते हैं।

कर्नाटक के एक लाख अस्सी हजार मंदिरों में लगभग 34,500 मंदिर राज्य द्वारा शासित हैं। हिंदू धार्मिक संस्थान और बंदोबस्ती अधिनियम की धारा 23 संविधान विरोधी है। यह सरकार को किसी भी मंदिर की व्यवस्था के सरकारी नियंत्रण की शक्ति देती है। आंध्र प्रदेश में लगभग 43,000 मंदिरों का अधिग्रहण हुआ था। इससे प्राप्त राजस्व आय का 18 प्रतिशत ही मंदिर प्रबंधन को दिया जाता है। ऐसा अनेक राज्यों में चल रहा है। शेष भारी धनराशि का ब्योरा पारदर्शी नहीं रहता। एक अमेरिकी विद्वान स्टीफेन नैप ने 'क्राइम्स अगेंस्ट इंडिया एंड द नीड टू प्रोटेक्ट एनसिएंट वैदिक ट्रेडिशन' में इसे भारत के विरुद्ध अपराध बताया है। उन्होंने तिरुमला तिरुपति मंदिर के लिए कहा है कि यहां प्रति वर्ष लगभग 3100 करोड़ रुपये एकत्रित होते हैं। इसका 85 प्रतिशत कोष में जमा होता है। यह मंदिर प्रबंधन पर खर्च नहीं होता। इस व्यय का हिंदू मंदिरों से कोई लेनादेना नहीं होता। हिंदू आहत हैं। सभी मंदिरों को स्वयं प्रबंधन का मौलिक अधिकार मिलना चाहिए। यही भारतीय संविधान एवं राष्ट्र की अपेक्षा है।

(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)