मुकेश चौरसिया। हर व्यक्ति के जीवन की एक कहानी होती है। बचपन, युवावस्था और अपने पैरों पर खड़ा होने के संघर्ष से लेकर जीवन में सफलता की ऊंचाइयों को छूने में आने वाले तमाम उतार-चढ़ाव की गाथा दूसरों को राह दिखा सकती है। कुछ ऐसी ही प्रेरणादायी जीवनगाथा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश प्रफुल्ल चन्द्र पंत की है। उन्होंने आत्मकथा 'संघर्ष और भाग्य' में अपनी विफलताओं से लेकर शिखर पर पहुंचने तक की कहानी बेबाक तरीके से बयां की है।

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में 1952 में जन्मे पंत की प्रारंभिक शिक्षा यहीं के प्राइमरी स्कूल से हुई। स्कूल उनके घर से तीन किलोमीटर दूर था। वह यह दूरी रोजाना पैदल जंगल के रास्ते तय कर स्कूल पहुंचते थे। पंत पढ़ाई में कमजोर रहे। वह 11वीं में एक बार घर छोड़कर भाग गए थे। इस कक्षा में वह असफल भी हुए थे। बारहवीं उत्तीर्ण करने के बाद पंत इलाहाबाद चले गए और इविंग क्रिश्चियन कालेज में दाखिला लिया, लेकिन बीएससी पार्ट-1 में फेल हो गए। नेशनल डिफेंस एकेडमी की भी कई बार परीक्षा दी, लेकिन नाकामी हाथ लगी। इसके बाद उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएलबी किया। यहीं से वह बेहतर प्रदर्शन करने लगे।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस के दौरान सेंट्रल एक्साइज निरीक्षक की परीक्षा पास की और मध्य प्रदेश के सागर में तैनाती हो गई। कुछ समय बाद ही मुंसिफ परीक्षा में चयनित हो गए। यहीं से उनके न्यायिक जीवन की शुरुआत हुई। उनकी पहली पोस्टिंग गाजियाबाद में हुई। इसके बाद उनके कदम बढ़ते गए। पंत इलाहाबाद हाई कोर्ट में संयुक्त निबंधक भी रहे। 2001 में नैनीताल के जिला जज नियुक्त हुए। इसके बाद उत्तराखंड हाई कोर्ट में न्यायाधीश बने। 2013 में मेघालय हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली। सुप्रीम कोर्ट में 2014 से तीन साल तक न्यायाधीश के तौर पर सेवाएं देकर 2017 में सेवानिवृत्त हुए। पंत ने सरल शब्दों में अपनी आत्मकथा लिखी है, जो प्रभावी प्रतीत होती है।

---------------

पुस्तक : संघर्ष और भाग्य

लेखक : न्या. प्रफुल्ल सी. पंत

प्रकाशक : माडर्न ला पब्लिकेशन्स

मूल्य : 480 रुपये