राजीव सचान। कॉमेडियन समय रैना के यूट्यूब चैनल पर इंडियाज गाट लेटेंट कार्यक्रम के दौरान एक अन्य यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया की ओर से की गई बेहद भोंडी टिप्पणी का मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट में सुना गया। सुप्रीम कोर्ट ने रणवीर इलाहाबादिया को अपना पोडकास्ट शुरू करने की अनुमति तो दे दी, लेकिन उसने समय रैना को खूब खरी-खोटी सुनाई, क्योंकि न्यायाधीशों को इससे अवगत कराया गया कि रैना ने अपने कनाडा दौरे के समय शीर्ष अदालत की कार्यवाही पर तंज कसा है।

इस मामले की जांच मुंबई और गुवाहाटी पुलिस भी कर रही है। कहना कठिन है कि वह किस नतीजे पर पहुंचेगी। यह कहना भी कठिन है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या करेगा, लेकिन फिलहाल यह दिख रहा है कि उसने सख्त रवैया अपना रखा है। उसने सरकार से फिर कहा कि वह यूट्यूब चैनलों और अन्य ऑनलाइन प्लेटफार्मों की सामग्री का नियमन करे।

वह इस मसले पर कितना गंभीर है, इसका पता इससे चलता है कि उसने सरकार से इसका मसौदा तैयार करने को कहा। यदि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार सरकार इस दिशा में कोई पहल करती है तो इसके खिलाफ यह कहते हुए शोर उठ सकता है कि इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।

वैसे तो सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि नियमन के उपाय सेंसरशिप जैसे नहीं लगने चाहिए, लेकिन इसके भरे-पूरे आसार हैं कि इस दिशा में सरकार की किसी भी पहल पर ऐसे सवाल अवश्य उठेंगे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित किया जा रहा है। सब जानते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं होती, लेकिन सीमा का उल्लंघन कब होता है, यह तय करना सदैव मुश्किल हो जाता है।

क्या आपत्तिजनक है और क्या नहीं, इसका निर्धारण करना इसलिए आसान नहीं, क्योंकि जो किसी के लिए फूहड़ होता है, वह अन्य के लिए हास्य। जो किसी के लिए आपत्तिजनक या अपमानजनक होता है, वह अन्य के लिए खरी बात। इसी तरह जो किसी के लिए अभद्र-अश्लील होता है, वह अन्य के लिए ‘कूल।’ यह किसी से छिपा नहीं कि समय रैना, रणवीर इलाहाबादिया और उनके साथियों के खिलाफ कार्रवाई का अनेक लोग विरोध भी कर रहे हैं।

उनकी दलील है कि आखिर फूहड़ता के लिए किसी को जेल में कैसे डाला जा सकता है? कुछ यह कह रहे हैं कि इस मामले में पुलिस एवं अदालत अपना समय जाया कर रही हैं और आखिर रैना और इलाहाबादिया ने लोगों को अपना शो देखने के लिए बुलाया तो था नहीं। कुछ लोग यह भी पूछ रहे हैं कि क्या रैना, इलाहाबादिया आदि को जेल भेज देने से गरीबी, बेरोजगारी जैसी समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

उनके कहने का यह आशय है कि पुलिस अथवा अदालत को इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए। क्या वाकई नहीं पड़ना चाहिए? इसका भी कोई सीधा जवाब नहीं, लेकिन इतना तो तय है कि अनेक कॉमेडियन, इन्फ्लुएंसर जैसी ऑनलाइन फूहड़ता अश्लीलता फैला रहे हैं, उसकी अनदेखी करने से भी कोई समस्या सुलझने वाली नहीं। इसका यह भी मतलब नहीं कि रैना, इलाहाबादिया आदि को जेल में डाल देना समस्या का सही समाधान है।

जो लोग यह चाह रहे हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर भोंडी-ओछी ऑनलाइन सामग्री की अनदेखी कर दी जाए, उनकी तरफदारी करना भी कठिन है, क्योंकि अनेक तथाकथित कॉमेडियन और इन्फ्लुएंसर ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर जमकर गंदगी परोस रहे हैं। ऐसा करके वे पैसा तो बना ही रहे हैं, बल्कि प्रचार और प्रसिद्धि भी पा रहे हैं। वे टीवी शो में प्रतिभागी अथवा अतिथि के तौर पर बुलाए जाने लगे हैं।

समय रैना कुछ समय पहले ही कौन बनेगा करोड़पति में प्रकट हुए थे। कोई भी समझ सकता है कि उन्हें इसीलिए बुलाया गया, ताकि कौन बनेगा करोड़पति के दर्शक बढ़ें। भले ही ऐसे लोग इन्फ्लुएंसर कहे जाते हों, लेकिन यह समझना कठिन है कि वे लोगों को प्रभावित करते हैं या दुष्प्रभावित? यूट्यूब, इंस्टाग्राम, ट्विटर (एक्स) जैसे प्लेटफार्मों पर फूहड़, अश्लील कंटेट की भरमार है।

अश्लील सामग्री को लेकर हर देश ने भले ही अपने-अपने नियम-कानून बना रखे हों, लेकिन ऑनलाइन प्लेटफार्मों ने उन्हें बेमानी साबित कर दिया है। यह निरा झूठ है कि ऑनलाइन प्लेटफार्म फूहड़ता एवं अश्लीलता को लेकर संवेदनशील हैं। वे ऐसा दावा भले करते हों, लेकिन सच यही है कि उनकी कोशिश यही रहती है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस तरह की सामग्री देखें।

यह इसीलिए है, क्योंकि इन प्लेटफार्मों ने इसकी खुली छूट दे रखी है। ये प्लेटफार्म यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि वे तो माध्यम भर हैं यानी उनका काम पोस्टमैन सरीखा है। इसी कारण इन प्लेटफार्मों का इस्तेमाल नफरती और अराजक तत्वों के साथ आतंकी भी करते रहते हैं।

यह कहना गलत नहीं होगा कि ऑनलाइन प्लेटफार्म बेलगाम हैं और वे किसी नियम-कानून की परवाह नहीं करते। इसी कारण वे फेक न्यूज का सबसे बड़ा जरिया बने हुए हैं। अब जब इसकी प्रतीक्षा की जा रही है कि फूहड़ता फैलाने के मामले में सरकार और सुप्रीम कोर्ट क्या करता है, तब यह भी देखना होगा कि समाज क्या करता है, क्योंकि ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर जैसी सामग्री ज्यादा देखी जाती है, वैसी ही अधिक प्रसारित होती है। चूंकि फूहड़ सामग्री देखी जा रही है, इसीलिए वह परोसी भी जा रही है।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)