जागरण संपादकीय: शैक्षणिक छवि की चिंता का समय, भारत अपने संस्थानों में छात्रों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे
नेपाली छात्रा की दुखद मृत्यु एक चेतावनी है कि भारत अपने शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों की सुरक्षा प्रशासनिक संवेदनशीलता और आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं को प्राथमिकता दे। एक समावेशी और सुरक्षित शैक्षणिक वातावरण न केवल भारतीय छात्रों बल्कि अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए भी आवश्यक है जो भारत को अपनी शिक्षा और भविष्य के निर्माण के लिए चुनते हैं ।
ऋषि गुप्ता। ओडिशा स्थित कलिंगा इंस्टीट्यूट आफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलाजी (केआईआईटी) में नेपाली छात्रा की असामयिक मृत्यु न केवल दुखद और संवेदनशील मामला है, बल्कि यह भारत की शैक्षणिक व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय छात्रों की सुरक्षा पर भी गंभीर प्रश्न खड़ा करती है। केंद्र सरकार ने इसकी जांच के लिए उच्च स्तरीय समिति गठित की है और पीड़ित परिवार को त्वरित न्याय का भरोसा दिलाया है।
इसके बाद करीब 1000 नेपाली छात्र केआईआईटी वापस लौटे हैं, लेकिन यह मामला केवल न्यायिक जांच तक सीमित नहीं रह सकता। इसके दो पहलू हैं, जिन पर भारत के नीति-निर्माताओं को विचार करने की आवश्यकता है। पहला, नेपाल बीते वर्षों में राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से बदल चुका है।
भारत को इन बदलावों का संवेदनशीलता से आकलन करना होगा। दूसरा, यदि भारत को दक्षिण एशिया में शिक्षा का प्रमुख केंद्र बनाना है तो अंतरराष्ट्रीय छात्रों, विशेषकर अपने पड़ोसी और मित्र देशों के विद्यार्थियों के लिए एक सुरक्षित, संवेदनशील और समावेशी शैक्षणिक माहौल सुनिश्चित करना होगा। इस तरह की घटनाएं इन देशों के साथ हमारे रिश्तों में दरार पैदा कर सकती हैं।
चीन जैसे देश जो लंबे समय से नेपाली युवाओं को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे अवसरों का उपयोग भारत की छवि को कमजोर करने और अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कर सकते हैं। इसलिए आवश्यक है कि भारत अपने शैक्षणिक संस्थानों में सुरक्षा और समावेशिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दे। साथ ही नस्ली, लैंगिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता को संस्थागत ढांचे का अभिन्न अंग बनाए, ताकि सभी छात्र भयमुक्त माहौल में शिक्षा प्राप्त कर सकें।
नेपाल भारत का एक खास पड़ोसी देश है। वह चाहे एक साझा संस्कृति की बात हो या सामाजिक और धार्मिक समानता, भाषा की या फिर लोगों के बीच आपसी संबंध की। भारत और नेपाल के बीच सामरिक ही नहीं, बल्कि एक मजबूत साझा सांस्कृतिक विरासत, आर्थिक, सैन्य, शिक्षा, खुली सीमा और लोगों के बीच पारस्परिक संबंध हैं।
शायद यही कारण रहा है कि संबंधों में यदा-कदा मन मुटाव के बावजूद बातचीत का माहौल हमेशा से बना रहा है। पिछले दो दशकों में नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य में बड़े बदलाव आए हैं। इसके चलते नेपाल एक संवेदनशील देश बन चुका है। इसका असर भारत-नेपाल संबंधों पर भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। हम इस प्रयास में हैं कि चीन जैसी ताकत नेपाल के रास्ते भारत के राष्ट्रीय हितों को नुकसान न कर सके।
एक समय था जब नेपाली छात्रों और कामगारों के लिए भारत ही प्रमुख गंतव्य हुआ करता था। खुली सीमा के कारण भारत आना-जाना न केवल आसान, बल्कि किफायती भी था। भारत सरकार की छात्रवृत्तियां नेपाली विद्यार्थियों के लिए उच्च शिक्षा के अवसर खोलती थीं, लेकिन बीते दो-तीन दशकों में यह स्थिति काफी बदल गई है।
विशेष रूप से 1996 से 2006 तक चले माओवादी आंदोलन ने नेपाल के राजनीतिक सोच और विदेश नीति को नया स्वरूप दिया है। इसके साथ नेपाल में विदेश में रोजगार और शिक्षा के अवसर प्रदान करने वाली एजेंसियों का उदय हुआ है। एक समय जेएनयू, बीएचयू, इलाहाबाद विश्वविद्यालय या पूर्वांचल विश्वविद्यालय नेपाली छात्रों के गढ़ माने जाते थे, जिसने भारत के प्रति नेपाल में एक सकारात्मक दृष्टिकोण बनाने में मदद की, लेकिन अब वह बदल चुका है।
यह बदलाव केवल शिक्षा ही नहीं, बल्कि रोजगार के क्षेत्र में भी दिखता है। आज अधिकांश नेपाली विकसित देशों को लक्ष्य बनाते हैं। ऐसे में भारत के प्रति जनता की राय में बदलाव आया है। इसका बड़ा फायदा चीन उठा रहा है, जो नेपाली छात्रों को लुभाने में लगा है। इसके परिणामस्वरूप भारत और नेपाल के बीच कोई भी राजनीतिक विवाद अब तुरंत इंटरनेट मीडिया पर छा जाता है।
भारत के शैक्षणिक संस्थान न केवल दक्षिण एशिया और अफ्रीका, बल्कि विश्व भर के छात्रों के लिए आकर्षक केंद्र हैं। ये छात्र यहां शिक्षा प्राप्त कर अपने देशों के उच्च पदों पर पहुंचते हैं और दीर्घकालिक रूप से भारत के साथ मजबूत राजनयिक एवं सांस्कृतिक संबंधों के वाहक बनते हैं। भारत की ‘साफ्ट पावर’ को भी सुदृढ़ करते हैं, लेकिन ऐसी त्रासद घटनाएं भारत की वैश्विक शैक्षणिक छवि को गंभीर नुकसान पहुंचाती हैं और इसके भू-राजनीतिक प्रभाव भी होते हैं।
नेपाली छात्रा की दुखद मृत्यु एक चेतावनी है कि भारत अपने शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों की सुरक्षा, प्रशासनिक संवेदनशीलता और आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं को प्राथमिकता दे। एक समावेशी और सुरक्षित शैक्षणिक वातावरण न केवल भारतीय छात्रों, बल्कि अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए भी आवश्यक है, जो भारत को अपनी शिक्षा और भविष्य के निर्माण के लिए चुनते हैं।
इस दिशा में दो महत्वपूर्ण सुधार अनिवार्य हैं-पहला, एक उत्तरदायी और संवेदनशील प्रशासनिक तंत्र, जो छात्रों की शिकायतों को गंभीरता से सुने और उनका समाधान करे। दूसरा, चिकित्सा आपात स्थितियों के लिए त्वरित प्रतिक्रिया दलों की स्थापना, ताकि किसी भी अप्रत्याशित संकट का समय रहते सामना किया जा सके। केवल इसी तरह हम भारत को एक वैश्विक शैक्षणिक केंद्र के रूप में मजबूत कर सकते हैं और उसकी प्रतिष्ठा को बनाए रख सकते हैं। अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को और अधिक प्रगाढ़ बना सकते हैं।
(लेखक एशिया सोसायटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट, दिल्ली के असिस्टेंट डायरेक्टर हैं)
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