डॉ. जयंतीलाल भंडारी। इसमें कोई संशय नहीं कि डोनाल्ड ट्रंप इस बार कहीं अधिक ताकतवर राष्ट्रपति साबित होने वाले हैं। उनकी नई आर्थिक रणनीति में जहां समृद्ध अमेरिका के सपने को साकार करने के लिए आयात शुल्कों को बढ़ाना शामिल है, वहीं अमेरिका को चुनौती दे रहे चीन के आर्थिक दबदबे को कारोबारी प्रतिबंधों और ऊंचे शुल्कों से नियंत्रित करना भी।

ट्रंप ने सबसे पहले चीन, कनाडा, मेक्सिको सहित उन शीर्ष पांच-छह देशों पर ऊंचे आयात शुल्क लगाने का संकेत दिया है, जिनके साथ अमेरिका का व्यापार घाटा सर्वाधिक है। चूंकि ट्रंप ने भारत को भी कुछ उत्पादों के लिए अधिक आयात शुल्क वाला देश कहा है, ऐसे में भारत द्वारा कुछ उत्पादों से शुल्क घटाने से उसे अमेरिका में निर्यात के अधिक मौके प्राप्त हो सकते हैं।

ट्रंप ने दूसरे कार्यकाल में वैश्वीकरण की जगह ‘मेरा अमेरिका प्रथम’ की धारणा को प्राथमिकता देते हुए परस्पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं की जगह अमेरिकी आत्मनिर्भरता और आर्थिक मजबूती की ओर बढ़ने के इरादे जताए हैं। इसका कारण यह भी है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व में जो आर्थिक-कारोबारी नियम, समझौते और सहकारी एजेंडे बनाए गए, वे सब ध्वस्त होते हुए दिखाई दे रहे हैं।

चीन ने स्वीकार्य वैश्विक कारोबारी नियमों का पालन नहीं किया है। उसने न केवल रणनीतिक रूप से पश्चिम का औद्योगीकरण समाप्त करने का काम किया है, बल्कि उसने पश्चिम की कई नई तकनीकें भी चुराई हैं। इसके चलते चीन का दबदबा बढ़ता जा रहा है। 2024 में अमेरिका का सबसे ज्यादा व्यापार घाटा चीन से रहा।

2030 तक चीन का विनिर्माण क्षेत्र समूचे पश्चिम के विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में अधिक हो जाने का अनुमान है। हाल में चीन ने ट्रंप के राष्ट्रपति बनने की चुनौती से निर्मित कुछ पहलुओं पर अमेरिका से मुकाबले की नई आर्थिक रणनीति बनाई है। इसके तहत चीन में मांग में ठहराव, बिगड़ती बाहरी आर्थिक चुनौतियों और चीनी अर्थव्यवस्था में गिरावट की बात स्वीकार करते हुए बड़े आर्थिक प्रोत्साहन का रास्ता चुना गया है।

रेटिंग एजेंसियों का अनुमान है कि ट्रंप की नीतियों से चीन को भारी नुकसान हो सकता है और भारत समेत आसियान देशों को फायदा होगा। मूडीज रेटिंग्स का कहना है कि अमेरिका-चीन के बीच बढ़ते तनाव और रणनीतिक क्षेत्रों में संभावित निवेश प्रतिबंधों के कारण भारत और अन्य एशियाई देशों को लाभ मिल सकता है।

एशिया-प्रशांत में व्यापार और निवेश प्रवाह चीन से छिटक सकता है, क्योंकि अमेरिका रणनीतिक क्षेत्रों में निवेश को सख्त कर रहा है, जिसका चीनी आर्थिकी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। भारतीय स्टेट बैंक की शोध इकाई के अनुसार ट्रंप की आर्थिक नीतियों से यद्यपि भारत भी अप्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेगा, लेकिन दीर्घावधि में उनकी नीतियों का भारत पर सकारात्मक असर होगा।

भारत के लिए आर्थिक मौके बढ़ेंगे। विदेश व्यापार विशेषज्ञों के मुताबिक ट्रंप की नीतियों से भारत के शेयर बाजार में और मजबूती आ सकती है। चीन में मैन्यूफैक्चरिंग करने वाली कई विदेशी कंपनियां भी भारत का रुख कर सकती हैं। भारत को अब तक चीन प्लस वन रणनीति अपनाने में सीमित फायदा ही मिला है। ट्रंप के कार्यकाल में यह फायदा बढ़ सकता है।

ट्रंप के कार्यकाल की शुरुआत में ही अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने से भारत-अमेरिका व्यापार बढ़ सकता है। भारत अमेरिका में निर्यात बढ़ाते हुए वैश्विक आपूर्तिकर्ता देश के रूप में भी आगे बढ़ सकता है। मोदी और ट्रंप के बीच मित्रता के बहुआयामी अध्याय भारत-अमेरिका व्यापार को बढ़ाने में मददगार होंगे।

वैश्विक अर्थविशेषज्ञों का यह भी मत है कि भारत और अमेरिका के बीच लगातार बढ़ता हुआ व्यापार ट्रंप के नए कार्यकाल में और बढ़ेगा। वित्त वर्ष 2023-24 में करीब 120 अरब डालर मूल्य की वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। 2024 में जनवरी से जून के बीच अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनने के साथ-साथ भारत के लिए अमेरिका निर्यात के सबसे बड़े बाजार के रूप में उभरा है।

पिछले वर्ष अमेरिका के साथ व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में रहा और यह अधिशेष 35.3 अरब डालर के स्तर पर है। ट्रंप के पहले शासनकाल में भारत चीन के खिलाफ सख्ती का फायदा नहीं उठा सका था। ऐसे में अब भारत को ऐसी बहुआयामी रणनीति पर आगे बढ़ना होगा, जिससे एक ओर अमेरिका में निर्यात बढ़ सके, वहीं दूसरी ओर वैश्विक निर्यात में भी बढ़त मिले।

जिन क्षेत्रों में चीन अमेरिका को प्रमुखता से निर्यात करता है, उनमें से कई क्षेत्रों में भारत अपना निर्यात सरलता से बढ़ा सकता है। इनमें इलेक्ट्रानिक्स, इलेक्ट्रिकल उपकरण, मोबाइल फोन, फुटवियर, टेक्सटाइल, फर्नीचर और घर के सजावटी सामान, वाहनों के कलपुर्जे, खिलौने और रसायन आदि शामिल हैं।

भारतीय निर्यातकों की अमेरिकी बाजार में पहुंच बढ़ाने के लिए निर्यातकों द्वारा सुझाई गई मार्केटिंग योजना को मंजूरी देना भी लाभप्रद होगा। इससे निर्यातकों को अमेरिका में निर्यात योग्य नए उभरते क्षेत्रों की संभावनाओं का दोहन करने में मदद मिलेगी। आशा है कि ट्रंप द्वारा जो नई आर्थिक इबारत लिखी जाएगी, उससे भारत-अमेरिका के आर्थिक रिश्तों को नई ऊंचाई मिलेगी। अमेरिका के साथ मजबूत आर्थिक रिश्ते भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने के लक्ष्य को पूरा करने में भी मददगार साबित हो सकते हैं।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)