डा. सुरजीत सिंह: तेजी से बदलती प्रौद्योगिकी ने यह सिद्ध कर दिया है कि नवाचार और अनुसंधान ही विकास का महत्वपूर्ण विकल्प हैं। नवाचार और अनुसंधान ही यह तय करेगें कि 21वीं सदी किसकी होगी। नए भारत के निर्माण में तेजी से बदलती प्रौद्योगिकी, संचार, स्वास्थ्य, रक्षा, अंतरिक्ष, ड्रोन, टिकाऊ ऊर्जा, रोबोट, चिप निर्माण, फिनटेक, बायोटेक, नैनो तकनीक आदि के साथ-साथ फार्मा, सुपर कंप्यूटर, सेमीकंडक्टर और हाइड्रोजन मिशन विकास को एक नया आयाम दे रहे हैं।

इससे डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और सतत विकास लक्ष्यों जैसी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को बढ़ावा मिल रहा है। वर्तमान में भारत का प्रौद्योगिकी विकास इकोसिस्टम वैश्विक स्तर का हो चुका है। राष्ट्रीय क्वांटम मिशन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, लेजर और जेनेटिक इंजीनियरिंग आदि विकास में मील का पत्थर साबित हो रहे हैं। तकनीकी सफलताओं के सकारात्मक परिणाम आर्थिक संवृद्धि के रूप में दिखने लगे है।

विशेषज्ञों का मानना है कि 2050 तक भारत अमेरिका को पछाड़कर विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा और दुनिया के कुल सकल घरेलू उत्पाद में 15 प्रतिशत से अधिक का योगदान देगा। अमृतकाल की समाप्ति तक भारत के एक विकसित देश बनने की संभावना है। इसकी झलक वित्तीय सेवाएं देने वाली कंपनी मोर्गन स्टेनले की ताजा रपट भी कर रही है। वहीं, विज्ञान एवं तकनीकी विकास की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया में प्रौद्योगिकी लेनदेन के लिए सबसे आकर्षक निवेश स्थलों में तीसरे स्थान पर है। भारत बुनियादी अनुसंधान के क्षेत्र में शीर्ष रैकिंग वाले देशों में शामिल हो चुका है। विज्ञान और इंजीनियरिंग में पीएचडी की संख्या के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है।

2020-21 में भारत ने कुल पेटेंट आवेदनों के 40 प्रतिशत दायर किए, जो 2010-11 के आंकड़े के दोगुने से भी अधिक हैं। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स के अनुसार 2015 में भारत 81वें स्थान से 2022 में 40वें स्थान पर पहुंच गया है। पिछले वर्ष की रैंकिंग में भारत 46वें स्थान पर था। जिस तेजी से प्रौद्योगिकी में सुधार होगा, उतनी ही तेजी से भारतीय अर्थव्यवस्था भी बढ़ेगी। दक्षिण कोरिया और सिंगापुर के उदाहरण हमारे समक्ष हैं कि ये देश उन्नत तकनीकी के बल पर बहुत ही कम समय में विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने में सफल रहे।

नवीनतम प्रौद्योगिकी नई औद्योगिक क्रांति की आधारशिला तैयार करती है। नई सेवाओं और उद्योगों को बढ़ावा मिलने से सार्वजनिक निवेश को सर्वाधिक आर्थिक रिटर्न मिलने लगता है। कार्यबल में महिलाओं का योगदान बढ़ने से रोजगार सृजन भी बढ़ता है। यद्यपि डिजिटलीकरण के विस्तार ने अर्थव्यवस्था को गति दी है, पर भारत को औद्योगिक विश्व व्यवस्था की धुरी बनाने के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन को बढ़ावा देना होगा। रोबोटिक्स और एआइ प्रौद्योगिकी द्वारा विनिर्माण तंत्र को मजबूत किया जा सकता है। इससे विनिर्माण उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, आटोमोबाइल और फार्मा आदि उभरते बाजारों की अप्राप्य संभावनाओं का तेजी से विस्तार होगा।

भारत का बड़ा बाजार और तेजी से बदलता उपभोग पैटर्न भी नवाचार और अनुसंधान को प्रेरित करता है। घरेलू खपत के आधार पर भारत दुनिया में सातवां सबसे बड़ा अंतिम उपभोग व्यय वाला बाजार है। निजी खपत और सरकारी खपत को मिला दें तो यह जीडीपी के 70 प्रतिशत से अधिक है, जो प्रति व्यक्ति आय को तेजी से बढ़ा सकता है। विश्व बैंक के मानकों के अनुसार भारत की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 2170 डालर प्रति व्यक्ति है। अगले 25 वर्षों में 9-10 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर को हासिल करने के लिए सरकार को निजी कंपनियों के सहयोग और साझेदारी के द्वारा देश में मजबूत वैश्विक आपूर्ति शृंखला को बढ़ावा देना होगा, जिसे नवाचार और प्रौद्योगिकी के द्वारा ही हासिल किया जा सकता है।

यह एक सकारात्मक पहलू है कि भारत एक युवा देश है। इसका लाभ उठाने के लिए विनिर्माण आधारों में विविधता के साथ एक मजबूत नींव बनानी होगी। संरचनात्मक परिवर्तन के लिए दूसरी पीढ़ी के सुधारों पर ध्यान देना होगा। उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों को बल देने में राज्यों को भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होंगी। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए फाइलिंग की प्रक्रिया को आसान एवं पारदर्शी बनाना होगा। सतत और समावेशी शहरीकरण सुनिश्चित करने के लिए शहरी नियोजन प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन आवश्यक हैं।

आज देश यदि कुछ सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में पिछड़ा हुआ है तो इसका प्रमुख कारण यह है कि विकास का लाभ हर नागरिक तक समान रूप से नहीं पहुंचा है। आय असमानता कम होने के बजाय निरंतर बढ़ रही है, जिससे समावेशी विकास के लिए जगह कम हो गई है। असमानता की इस गहरी खाई को पाटने के लिए एक तो कृषि क्षेत्र की आय सृजन क्षमता को बढ़ाना होगा और दूसरे प्रत्येक गांव को डिजिटलीकरण का हिस्सा बनाना होगा। नवाचार एवं अनुसंधान केवल आर्थिक विकास में ही मदद नहीं करता, बल्कि गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसी कई सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का आसान समाधान भी उपलब्ध कराता है।

नई तकनीकी प्रणालियां न सिर्फ उत्पादकता और दक्षता में आवश्यक सुधार करती हैं, बल्कि नए मूल्य वर्धित उत्पादों और सेवाओं के विकास द्वारा आय सृजन भी करती हैं। भारत के विस्तृत वित्तीय बाजार को देखते हुए कहा जा सकता है कि आने वाला समय भारत का है। देश को विकसित बनाने के लिए सभी हितधारकों-केंद्र एवं राज्य सरकारों, सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के साथ-साथ नीति निर्माताओं और नागरिकों को बहुत समर्पित तरीके से कार्य करना होगा।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)