कैलाश बिश्नोई। एक कहावत है, पहला सुख निरोगी काया। लेकिन राज्यों के एजेंडे में स्वास्थ्य कभी प्राथमिकता में नहीं दिखा। जन स्वास्थ्य कभी चुनावों में बड़ा मुद्दा बन कर नहीं उभरा जिस कारण राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्र में जन स्वास्थ्य को उतनी तरजीह कभी नहीं दी, जितनी देनी चाहिए थी। देश की आम जनता स्वास्थ्य के मसले पर ज्यादा जागरूक नहीं है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक वर्ग में यह अहसास कि स्वास्थ्य सेवा सामान्यत: मतदाताओं के लिए कोई प्राथमिकता नहीं है, इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती है। जब तक नागरिक उन मुद्दों के प्रति संजीदा नहीं होता, तब तक राजनीतिक दल उस मुद्दे को वोट बैंक का जरिया नहीं मानते हैं।

भारत में स्वास्थ्य देखभाल के खस्ताहाल ढांचे से जुड़े आंकड़े समस्या की गंभीरता की ओर इशारा करते हैं। देश में 135 करोड़ से ज्यादा आबादी के लिए सिर्फ 26 हजार हॉस्पिटल हैं यानी 47 हजार लोगों पर केवल एक सरकारी हॉस्पिटल है। करीब 30 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में डॉक्टर नहीं हैं और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में विशेषज्ञों के करीब 70 प्रतिशत पद खाली हैं। देश में 63 फीसद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक भी ऑपरेशन थिएटर नहीं है, 29 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में प्रसव कक्ष नहीं है। इससे भारत में जन स्वास्थ्य तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंच रहा है। इस समस्या से निजात पाने के लिए एमबीबीएस डॉक्टरों की अनिवार्य ग्रामीण पोस्टिंग की जाए तो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में प्रशिक्षित डॉक्टरों की कमी को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

अर्नस्ट एंड यंग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 80 फीसद शहरी और करीब 90 फीसद ग्रामीण नागरिक अपने सालाना घरेलू खर्च का आधे से अधिक हिस्सा स्वास्थ्य सुविधाओं पर व्यय कर देते हैं। इस वजह से हर साल लगभग चार प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे आ जाती है। एनएसएसओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 80 प्रतिशत से अधिक आबादी के पास न तो कोई सरकारी स्वास्थ्य स्कीम है और न ही कोई निजी बीमा। ऐसी स्थिति में आबादी के बड़े हिस्से के लिए सरकारी स्वास्थ्य एकमात्र विकल्प बचता है। ऐसे में समय की मांग है कि जन स्वास्थ्य सुविधाओं को राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में घोषित किया जाए और इसको बजट में ऊपर का स्थान दिया जाए, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं में उन्नतिशील संस्थाओं को आíथक सहायता प्रदान की जा सके।

स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया जाए तथा स्वास्थ्य के विषय को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में शामिल करने के लिए संविधान में संशोधन करने की दिशा में केंद्र सरकार को आगे बढ़ना चाहिए। स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा की तर्ज पर एक सार्वजनिक स्वास्थ्य कैडर की शुरुआत की जा सकती है। इसके माध्यम से कुछ विशिष्ट, समíपत एवं प्रशिक्षित लोगों को चुना जा सकेगा, जो स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की दिशा में काम कर सकेंगे। सार्वजनिक स्वास्थ्य कैडर के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं के मानवीकरण, वित्तीय प्रबंधन, स्वास्थ्य सामग्री प्रबंधन, तकनीकी विशेषज्ञता एवं आवश्यक सामाजिक निर्धारकों की प्राप्ति में मदद मिलेगी।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्येता हैं)