विचार: बोझ के बजाय सुगमता बढ़ाएं कानून, पुराने नियम-कायदों को आसान और नए डिजिटल तरीके अपनाने होंगे
आज के सूचना प्रधान युग में उपभोक्ता खुद काफी मुखर होकर इंटरनेट मीडिया के मंचों पर अपनी आवाज उठाते हैं। इसके बावजूद कुछ लोग ठगी से बाज नहीं आते जिनसे निपटने के लिए कानूनी सख्ती आवश्यक है। इस संदर्भ में एक आसान तरीका यह हो सकता है कि ग्राहक की शिकायत पर जांच शुरू की जाए या अधिकारी बाजार से कोई सामान खरीदकर उसका वजन या माप जांचें।
लक्षिता मेहरोत्रा और सुधांशु नीमा। दिग्गज फैशन ब्रांड एचएंडएम को 2016 में एक स्वेटर का माप 1.22 मीटर के बजाय 122 सेंटीमीटर बताना महंगा पड़ गया। इस कारण उस पर आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ। इसी तरह ब्रिटानिया पर भी मैट्रोलोजी कानून यानी माप से जुड़े कानून के तहत एक थोक बाक्स पर 120 एन या 120 यू के बजाय ‘120 पैक्स’ लिखने के लिए मुकदमा चलाया गया।
लेबलिंग नियमों के उल्लंघन पर आइटीसी को मध्य प्रदेश में छह साल तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी, क्योकि उसने अरहर दाल के पैकेट पर एक साधारण वाक्यांश ‘जब पैक किया गया’ लिख दिया, जो तय नियमों में नहीं आता था। ये कुछ मिसालें हैं, जो मैट्रोलोजी कानूनों की जटिलताओं के चलते कानून व्यवस्था पर पड़ने वाले अनावश्यक बोझ को दर्शाती हैं। इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2021-22 में ही अप्रमाणित वजन और माप की वजह से 35,840 मामले दर्ज किए गए।
मैट्रोलोजी कानून यानी ‘विधिक माप-विज्ञान अधिनियम’ का मूल उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा है, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि सामान का वजन और माप सही हो। यह कानून सुनिश्चित करता है कि जब आप कुछ खरीदते हैं तो आपको उतनी ही मात्रा या माप की वस्तु मिले, जितनी पैकेट पर लिखी हुई है। प्री-पैक्ड वस्तुओं की लेबलिंग के मामले भी इसी के अंतर्गत आते हैं। जैसे प्रोडक्ट का नाम, वजन और निर्माता की जानकारी आदि। इस कानून के तहत ऐसे व्यवसाय, जो वजन और माप संबंधी उपकरण बनाते, बेचते, आयात या मरम्मत करते हैं, उन्हें लाइसेंस प्राप्त करना भी अनिवार्य है। भले ही किसी व्यवसाय का गलत इरादा न हो, पर यह कानून व्यवसायों पर बड़ा बोझ डालता है। हमने इस संदर्भ में कुछ चुनौतियों और उनके समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
पहला, हमारी मौजूदा लेबलिंग आवश्यकताएं अत्यंत जटिल हैं और मौजूदा नियमों में बहुत ही सूक्ष्म निर्देश दिए गए हैं। उदाहरण के रूप में अंकों की माप, शब्दों की ऊंचाई और चौड़ाई और लेबल का आकार आदि। हमें अंक, शब्दों की माप, पैकेजिंग कवर के प्रतिशत आदि से संबंधित निर्धारित आवश्यकताओं से हटकर व्यावहारिक मापदंडों का उपयोग करना चाहिए। जैसे लेबल स्पष्ट रूप से चिह्नित हो, प्रमुखता से दिखाई दे और आसानी से पढ़ा जा सके और यदि विस्तृत जानकारी की आवश्यकता है तो उसे क्विक-रिस्पांस यानी क्यूआर कोड से जोड़ा जा सकता है। कुछ इलेक्ट्रानिक उत्पादों और दवाओं में ऐसा किया भी जाता है, ताकि ग्राहक सही जानकारी हासिल कर सकें।
दूसरा, जिन उत्पादों के लिए आम तौर पर मीट्रिक प्रणाली का प्रयोग नहीं किया जाता है, वहां अन्य उपयोग स्वीकार किए जाने चाहिए। ऐसा न करने से भ्रम की स्थिति पैदा होती है। जैसे लैपटाप और मोबाइल के लिए कानून के अनुसार सेंटीमीटर में माप दी जानी चाहिए, लेकिन इसके लिए चलन इंच में माप देने का है। ऐसे में यदि किसी उत्पाद को सामान्यतः गैर-मीटरिक इकाइयों में मापा जाता है, तो उनके उपयोग की अनुमति दी जानी चाहिए। वर्तमान में, लीगल मेट्रोलाजी एक्ट के तहत दर्ज किए गए कुल उल्लंघनों में लगभग 10 प्रतिशत मामले गैर-मानक इकाइयों के उपयोग से जुड़े हैं, जो कानून व्यवस्था पर बोझ डालने का काम करते हैं।
तीसरा, इस अधिनियम में कई उल्लंघनों के लिए अभी भी आपराधिक दंड का प्रविधान है। इससे अधिकारियों को अनुचित लाभ के लिए दबाव बनाने का मौका मिलता है और व्यवसायों के लिए मुश्किलें बढ़ जाती हैं। इसलिए अधिनियम के किसी भी उल्लंघन को आपराधिक श्रेणी से बाहर किया जाना चाहिए। हालांकि जन विश्वास अधिनियम ने दंड के दायरे को सीमित किया है, फिर भी मामूली अपराधों के लिए एक साल तक की सजा का प्रविधान अब भी मौजूद है। जबकि इसके बजाय केवल सुधारात्मक आदेश और आर्थिक दंड लगाया जाए।
चौथा, फिलहाल कंपनियों को वजन और माप के लिए एक अलग लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य है जो पहले से ही मौजूद जटिल प्रक्रियाओं को और बोझिल बनाते हैं। हर राज्य के अपने नियम-कानून हैं और ऐसे उपकरणों के लिए भी लाइसेंस लेना पड़ता है, जिन्हें पहले से अनिवार्य बीआइएस प्रमाण मिला हुआ है। जो निर्माता पहले से ही दुकानों और प्रतिष्ठान अधिनियम, फैक्ट्री अधिनियम, जीएसटी और अन्य कानूनों के तहत पंजीकृत हैं, उन्हें भी एक अलग ‘पैकर/निर्माता’ के रूप में पंजीकरण कराना पड़ता है। एमएसएमई और स्टार्टअप्स के लिए यह प्रक्रिया लागत और समय दोनों बढ़ाती है। यह सही नहीं है। हमें इस प्रक्रिया को सरल बनाने और इसे अन्य मौजूदा लाइसेंसों के साथ जोड़ने पर काम करना चाहिए ताकी समय और पैसे दोनों की बचत हो सके। हमारी मंशा इस कानून को रद कराने की नहीं, बल्कि उसे सरल-सहज और व्यवसायों के और अनुकूल बनाने की है। बाजार में लेन-देन और उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा जरूरी है, लेकिन हमें यह भी सोचना चाहिए कि नियम, कानून और परमिट किस हद तक सही हैं और ये व्यवसायों के लिए परेशानी न बनें।
आज के सूचना प्रधान युग में उपभोक्ता खुद काफी मुखर होकर इंटरनेट मीडिया के मंचों पर अपनी आवाज उठाते हैं। इसके बावजूद कुछ लोग ठगी से बाज नहीं आते, जिनसे निपटने के लिए कानूनी सख्ती आवश्यक है। इस संदर्भ में एक आसान तरीका यह हो सकता है कि ग्राहक की शिकायत पर जांच शुरू की जाए या अधिकारी बाजार से कोई सामान खरीदकर उसका वजन या माप जांचें।
इसे बाजार निगरानी भी कहा जाता है और अधिकांश विकसित देशों में यही चलन भी है। यदि भारत को एक ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग हब बनना है, तो पुराने नियम-कायदों को आसान बनाना और नए डिजिटल तरीके अपनाने होंगे। विधिक माप विज्ञान के नियमों को आसान बनाने से एमएसएमई को भी औपचारिक आर्थिकी से जुड़ने और कारोबार बढ़ाने में मदद मिलेगी। इससे रोजगार सृजन भी होगा और उत्पादन भी बढ़ेगा। याद रहे कि जब नियम सरल होंगे तभी उपभोक्ता हितों की सुरक्षा से लेकर आर्थिकी का विस्तार होता है।
(लेखक फाउंडेशन फॉर इकोनमिक डेवलपमेंट में एक्सपर्ट कंसलटेंट हैं)
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।