हर्ष वी. पंत। पहले से ही अस्थिरता से जूझ रही दुनिया को इजरायल और हमास के टकराव ने नए खतरों की ओर धकेल दिया है। अगर पश्चिम एशियाई पैमाने के हिसाब से भी देखें तो यह टकराव कोई सामान्य किस्म का नहीं है। हमास का इजरायल पर हमला उसके लिए वैसा ही घटनाक्रम है, जैसी अमेरिका के लिए 9/11 की घटना थी। इजरायल पर सभी की निगाहें टिकी हैं कि वह अपने समक्ष उत्पन्न सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से कैसे निपटता है।

यह भी देखना होगा कि विभिन्न देश अपनी रणनीतियों का किस प्रकार पुनर्संयोजन करते हैं। इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद की ख्याति दुनिया भर में है। इजरायली सुरक्षा कवच को अभेद्य माना जाता है। इसके बावजूद हालिया घटना इन सभी पर सवाल उठाती है। करीब 50 साल पहले भी इजरायल पर इसी प्रकार का औचक हमला हुआ था। इस अशांत क्षेत्र में रहने वाले लोग खुद को अस्थिर परिस्थितियों के साथ ढाल चुके हैं, लेकिन हालिया हमले ने इन लोगों को बुरी तरह से हिला दिया है। इस हमले के दायरे और तीव्रता ने इजरायली चेतना पर बुरी तरह आघात किया है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एलान किया है कि हमास के आतंकी हमले ने हम पर एक ऐसा युद्ध थोप दिया है, जो काफी लंबा चलने जा रहा है।

इजरायल पर हमास का हमला गाजा से हुआ। गाजा से इजरायल के 2005 में निकलने के बाद से यह इलाका हमास के नियंत्रण में है। हमास के लड़ाके इजरायली सीमा चौकियों और सैन्य ठिकानों में सेंध लगाते हुए निर्दोष नागरिकों की हत्या और उनका सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहे थे। एक वैश्विक आतंकी संगठन का आतंक अपने चरम पर था। आतंकियों ने सैन्य वाहन कब्जा लिए और लोगों का अपहरण कर लिया। महिलाओं के कपड़े तार-तार कर उनका जुलूस निकाला गया। घंटों बाद तक इजरायली सेना हमास के नियंत्रण में आए इजरायल के इलाकों और लोगों को छुड़ाने के लिए प्रयासरत रही। इस संघर्ष में अब तक सैकड़ों लोग मारे गए हैं और हजारों घायल हैं। यह तो अभी शुरुआत ही है। यही कारण है कि लाखों लोग अपने-अपने इलाकों से पलायन कर सुरक्षित ठिकानों की ओर बढ़ रहे हैं।

इजरायल पर हमास का भीषण हमला इस देश को अपनी सैन्य रणनीति की मूल संकल्पना पर नए सिरे से विचार करने के लिए विवश करेगा। सुनियोजित हमले के बावजूद हमास इससे भलीभांति अवगत रहा होगा कि उसके जवाब में इजरायल की क्या प्रतिक्रिया होगी। जवाबी कार्रवाई के बीच हमास ने फलस्तीन की दुहाई देते हुए इजरायल के सफाये में अरब जगत से साथ जुड़ने का आह्वान किया है। दूसरी ओर इजरायली सेना ने व्यापक सैन्य तैनाती के आदेश जारी किए हैं, क्योंकि एक साथ कई मोर्चों के खुलने की आशंका बनी हुई है।

इजरायली अधिकारी यही सुझा रहे हैं कि पहले हमास से बंधकों को छुड़ाया जाए और फिर गाजा को मुक्त कराने के लिए जमीनी अभियान चलाया जाए। हालांकि इसमें यह पेच है कि इजरायली सैनिकों को शहरी रणभूमि के उस जटिल क्षेत्र में उतरना होगा, जहां हमास के लड़ाके आम नागरिकों के बीच आसानी से छुप सकते हैं। यह ऐसी दलदल है जिसमें उतरने से इजरायली सुरक्षा बल लंबे अर्से से बचते रहे हैं और हमास की मंशा बिल्कुल यही है। ऐसे में जहां नेतन्याहू पर हमास के ठिकानों को नेस्तनाबूद करने का भारी घरेलू दबाव होगा, वहीं हमास इस तनातनी को और बढ़ाने की जुगत में होगा।

इजरायल-फलस्तीन का मुद्दा व्यापक क्षेत्रीय विभाजक रेखाओं में उलझा हुआ है। हमास के ऊपर ईरान और लेबनानी आतंकी समूह हिजबुल्ला का हाथ है। हिजबुल्ला तो इस लड़ाई में पहले ही कूद गया है। उसने कहा भी कहा है कि माउंट डोव हमले के पीछे उसका हाथ है। इस हिस्से पर इजरायल, लेबनान और सीरिया दावा करते रहे हैं। हिजबुल्ला ने फलस्तीन की मुहिम को अपना समर्थन भी दोहराया है।

इजरायल ने भी जबलरुस इलाके में हिजबुल्ला पर जवाबी हमला किया है। वहीं मिस्र और कतर में इजरायली पर्यटकों की हत्या की आ रही खबरें भी यही रेखांकित करती हैं कि इजरायल के खिलाफ इस इलाके में फलस्तीन समर्थक ताकतें लगातार लाबमंद हो रही हैं? इस घटनाक्रम की छाप वैश्विक समीकरणों पर भी दिखाई देगी। इस हमले के साथ हमास ने खुद को फलस्तीन मुद्दे के सबसे मजबूत पक्ष के रूप में स्थापित करने के प्रयास के साथ ही इस क्षेत्र में उभरती अमेरिकी रणनीति को भी पटरी से उतारने की कोशिश की है।

जब बाइडन प्रशासन ने रियाद को सुरक्षा गारंटी और परमाणु तकनीक देने के साथ सऊदी अरब और इजरायल में मेल-मिलाप की कवायद की तो पश्चिम एशिया में नई सामरिक रूपरेखा बनती दिखी। इस समझौते के अमल में आने से ईरान और हमास हाशिये पर चले जाते। इसीलिए हमास ने इजरायल पर यह हमला कर उस गठजोड़ को अनिश्चितता में धकेल दिया है। अब इजरायल जिस प्रकार हमास और अन्य आतंकी समूहों पर प्रहार करेगा तो उससे सऊदी अरब के लिए उस दिशा में फिलहाल आगे बढ़ना मुश्किल होगा, क्योंकि इजरायल के साथ खड़े होने से जनता में आक्रोश एवं असंतोष का खतरा होगा।

आतंक से जूझ रहे भारत जैसे देशों के लिए भी इस घटनाक्रम में गहरे सबक छिपे हुए हैं। दुनिया का पूरा ध्यान बड़ी शक्तियों के बीच सत्ता संघर्ष पर ही टिका हुआ है, लेकिन इससे हमारे लिए खतरा बने घातक गैर-सरकारी तत्वों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। उनकी ओर से यह खतरा और बढ़ा ही है। यहां तकनीक की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई है, जो इन तत्वों के लिए अवसर बढ़ा रही है। विशेषकर ऐसे तत्वों के लिए, जिन्हें पाकिस्तान जैसे देशों का समर्थन प्राप्त है। ऐसे में सुरक्षा प्रतिष्ठान को किसी भी अकल्पनीय स्थिति के लिए स्वयं को तैयार रखना होगा कि आतंक का फन कहीं से भी किसी भी प्रकार सिर उठा सकता है।

सुरक्षा एजेंसियों को आतंकियों से एक कदम आगे ही रहना होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इजरायली सेना और खुफिया एजेंसी विश्व में सबसे समर्थ मानी जाती हैं। इसके बावजूद हमास के चौतरफा हमलों ने उनकी कमजोरी को उजागर कर गिया। इससे उन देशों की नाजुक स्थिति भी जाहिर होती है, जो हमेशा युद्ध का सामना करने के हालात में होते हैं। इजरायल को इस चुनौती का इस प्रकार जवाब देना चाहिए, जो दुनिया में एक मिसाल बने।

(लेखक आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में उपाध्यक्ष हैं)