ट्रंप का इम्तिहान
डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से यह बहस जारी है कि उनकी नीतियां क्या होंगी? अमेरिका के लिए इस बार के राष्ट्रपति चुनाव कई मायनों में उल्लेखनीय रहे।
डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से यह बहस जारी है कि उनकी नीतियां क्या होंगी? अमेरिका के लिए इस बार के राष्ट्रपति चुनाव कई मायनों में उल्लेखनीय रहे-प्रचार अभियान के दृष्टिकोण से भी और नतीजों के लिहाज से भी। यह बात सभी जानते हैं कि अमेरिका की एक छोटी सी नीति का असर भी पूरे विश्व पर पड़ता है। रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के एक मशहूर उद्योगपति हैं। बीते एक साल में वह बहुत जल्द ही अपने उत्तेजक भाषणों के चलते लोगों की नजरों में चढ़ते चले गए। उन्होंने प्रचार अभियान के दौरान हर मुद्दे को छुआ। पिछले साल दिसंबर के महीने में उन्होंने एक ऐसी बात कही जिसने विश्वभर में एक हलचल पैदा कर दी थी। उन्होंने कहा था कि अगर वह अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो वह सभी मुसलमानों के अमेरिका में आने पर प्रतिबंध लगा देंगे। इस बात का विश्वभर के मुस्लिम संगठनों और मानवाधिकार के लिए लड़ने वाली संस्थाओं ने कड़ा विरोध किया था, लेकिन ट्रंप अपनी बात से पीछे हटते न दिखे।
आठ नवंबर को जब अमेरिका वोटिंग करने सड़कों पर उतरा तब शायद ही किसी को यह आभास था कि नतीजा अनेक चुनावी पंडितों के ज्ञान पर सवालिया निशान खड़ा कर देगा। अगले दिन दोपहर के बाद जब चुनावी नतीजे सामने आने शुरू हुए तो उसने कई लोगों को चौंका दिया, क्योंकि अमेरिका ने ट्रंप को अपने अगले राष्ट्रपति के रूप में चुन लिया था। उसके बाद अनेक लोगों के दिल में एक खौफ बैठ गया, विशेष तौर से अल्पसंख्यकों और अफ्रीकी-अमेरिकियों के मन में यह डर बैठ गया है कि अब उनका क्या होगा? लेकिन जीत के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने जो प्रेस कांफ्रेंस की उसमें वह उत्तेजना नहीं थी जो उनके चुनावी भाषणों में होती थी। उन्होंने कहा कि मैं अमेरिकी धरती के प्रत्येक नागरिक को भरोसा दिलाता हूं कि मैं सब अमेरिकियों का राष्ट्रपति हूं। वाकई किसी भी देश के विकास के लिए जरूरी है कि सबको साथ लेकर चला जाए, तभी उस देश का विकास संभव है। विकास का रास्ता शांति के पथ से गुजरता है। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं कि जब देश को विकास के पथ पर जब ले जाने की बात आई तब उग्रता का रास्ता छोड़ नम्रता का रास्ता चुनना पड़ा। इस तरह का एक उदाहरण ग्रेट ब्रिटेन के इतिहास में भी मिलता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन के नेताओं के बीच यह वैचारिक मंथन होने लगा कि ब्रिटेन अब भारत और उसके जैसे अन्य देशों पर शासन नहीं कर सकता और उसे अब इन देशों को स्वतंत्र कर देना चाहिए। यह सब जानते हैं कि विंस्टन चर्चिल द्वितीय विश्वयुद्ध के हीरो के रूप में उभरकर सामने आए थे, पर वह 1945 में ब्रिटेन में चुनाव हार गए थे। इसकी वजह थी कि ब्रिटेन की जनता में यह आम सोच पैदा हो गई थी कि उन्हें अब युद्ध के बाद सुधार की जरूरत है और जिस व्यक्ति ने ब्रिटेन का युद्ध में नेतृत्व किया हो वह उनके देश का नेतृत्व शांति के पथ पर नहीं कर सकता।
यह सच है कि आज मुस्लिम समाज का एक हिस्सा दुनिया भर में कट्टर मानसिकता का शिकार हो चुका है। यही वह कारण है जिसने ट्रंप को मुस्लिमों को अमेरिका में आने पर प्रतिबंधित करने जैसी बात कहने पर मजबूर किया, लेकिन मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा आज भी इस कट्टर मानसिकता से दूर है। खासकर नई पीढ़ी को अगर आप एकदम अछूत मान लेंगे तो वे भी कल को कट्टर सोच के शिकार हो सकते हैं। आज मुस्लिम समाज में यह जरूरी है कि लोकतंत्र के सही भाव को जगाया जाए। दुनिया में लगभग 50 मुस्लिम देश हैं, जिनमें से गिनती के कुछ देशों में प्रजातंत्र है। उनमें भी कुछ में प्रजातंत्र की अवस्था गड़बड़ है। इसकी वजह 19वीं और 20वीं सदी का मुस्लिम साहित्य है, जो राजतंत्र केंद्रित रहा। इसके चलते वह मुस्लिम समाज को राजतंत्र से प्रजातंत्र तक लाने में कोई खास योगदान नहीं दे पाया। वह यह बताने में भी विफल रहा कि प्रजातंत्र में एडमिनिस्ट्रेटर होता है, न की शासक। जब हम एक राज्य के एडमिनिस्ट्रेटर को एक शासक की शक्ल में देखते हैं तो एक बिल्कुल विपरीत छवि सामने निकलकर आती है, जहां आप अपने को दबा हुआ महसूस करते हैं। आपको महसूस होता है कि अगर आप दोनों में वैचारिक सहमति न हुई तो कहीं आपका अस्तित्व खतरे में न पड़ जाए। प्रजातंत्र में आपको किसी एक प्रत्याशी को चुनना होता है, लेकिन अगर वह न जीते और दूसरे प्रत्याशी जीत जाएं तो चुनाव के बाद आपको उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने राष्ट्र के विकास में योगदान देना है, न कि चुनाव के बाद तक उसके विरोध में लगे रहना है।
एक बार हजरत मुहम्मद साहब की अपार सफलता का राज उनकी पत्नी हजरत आयेशा से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि जब कभी पैगंबर साहब को किन्हीं दो रास्तों में से कोई एक चुनना होता तो वह हमेशा आसान रास्ता चुनते। यहां हजरत मुहम्मद साहब का हवाला इसलिए दिया गया, क्योंकि हमेशा एक व्यक्ति और समाज के पास चुनने के लिए दो रास्ते होते हैं, लेकिन उनमें आसान और मुश्किल का फर्क व्यक्ति का विवेक तय करता है। लोकतंत्र में कोई शत्रु नहीं होता, लेकिन फिर भी अगर कोई दूसरा व्यक्ति आपको शत्रु प्रतीत हो तो कुरान में इसका भी उत्तर है। कुरान में कहा गया है कि अच्छे और बुरे कर्म, दोनों एक समान नहीं, बुराई को पीछे हटाओ और फिर तुम देखोगे कि तुममें और जिसमें शत्रुता थी, वह ऐसा हो गया जैसे कोई मित्र संबंध वाला। आज लोकतंत्र में चुनाव जीतने का मतलब है देश के विकास के लिए काम करना, न कि किसी विशेष समुदाय का। समाज को अपना विकास स्वयं करना पड़ता है और उसकी जिम्मेदारी समाज के बुद्धिजीवियों के ऊपर होती है। उन्हें अपने लोगों में यह अहसास दिलाना जरूरी है कि विश्व पटल पर उनके लिए भी स्थान है, बशर्ते वे शिक्षा में मेहनत करें और शांति के पथ पर आगे चलें। आज अगर राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने समाज के प्रत्येक व्यक्ति को साथ लेकर चलने की बात कही है तो हम समझते हैं कि मुस्लिम समाज को भी अब एक वैचारिक यू-टर्न लेने की आवश्यकता है। वे निरंतर विरोध की नीति को त्याग कर शांति और विकास के आसान रास्ते को अपनाएं और विश्व विकास में अपना योगदान दें। इसके लिए मुस्लिम समाज को खुद ही आगे आना होगा।
[ लेखक रामिश सिद्दीकी, इस्लामिक विषयों के जानकार और द ट्रू फेस ऑफ इस्लाम पुस्तक के रचनाकार हैं ]
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