तब्लीगियों की आपराधिक लापरवाही ने देश को संकट में डाल दिया, करोड़ों की जान को खतरा
तब्लीगियों की आपराधिक लापरवाही ने देश को पुन इसकी आग में धकेल दिया। उन्होंने करोड़ों लोगों की जान को खतरे में डाल दिया है।
[ ए. सूर्यप्रकाश ]: ईसाई धर्मावलंबी ईस्टर के दिन चर्च जाकर ईसा मसीह के जीवन और बलिदान को याद करते हैं, लेकिन इस बार उन्हें निराशा मिली। संभवत: यह पहला ऐसा अवसर था जब दुनिया के अधिकांश चर्च बंद रहे, क्योंकि कोरोना वायरस के संक्रमण ने विश्व को महासंकट में डाल दिया है। गोवा के आर्चबिशप फिलिप नेरी फेराओ ने सभी पादरियों से कहा कि वायरस के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए मेरी यही सलाह है कि जब तक बहुत जरूरी न हो, प्रार्थना के लिए चर्च न जाएं।
चर्चों समेत अन्य धर्म स्थलों ने भी लॉकडाउन के निर्देशों का पालन किया
जिस प्रकार भारत में चर्चों ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में शारीरिक दूरी और लॉकडाउन के निर्देशों का पालन किया उसी प्रकार से अन्य धर्म स्थलों ने भी। तिरुपति में बालाजी मंदिर, मुंबई में सिद्धिविनायक मंदिर और शिरडी में साई बाबा मंदिर श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए गए। ऐसे ही अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह और मुंबई में हाजी अली दरगाह जैसे धार्मिक स्थल भी बंद कर दिए गए। इनके अलावा भी दूसरे लाखों धार्मिक स्थल इन दिनों बंद हैं।
जब मंदिर, दरगाह, चर्च, शिक्षण संस्थान, दफ्तर बंद थे तब तब्लीगी जमात ने जारी रखीं गतिविधियां
जब मंदिरों, दरगाहों और चर्चों के अलावा तमाम शिक्षण संस्थान, सरकारी एवं निजी दफ्तर बंद थे तब एक संस्था तब्लीगी जमात ने अपनी सारी गतिविधियां जारी रखीं और रंग में भंग डालने का काम किया। दिल्ली सरकार के आदेशों को नजरअंदाज करते हुए इसने मध्य मार्च में निजामुद्दीन में सम्मेलन आयोजित किया। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का मानना है कि देश में कोविड-19 के 30 प्रतिशत मामले इसी सम्मेलन की देन हैं। दिल्ली सरकार ने 13 मार्च को ही दो सौ या इससे अधिक लोगों को एक स्थान पर जमा होने पर प्रतिबंध लगाते हुए सभी विदेशियों को क्वारंटाइन में रहने का आदेश दिया था। 19 मार्च को स्वयं मुख्यमंत्री अर्रंवद केजरीवाल ने एलान किया था कि एक जगह पर 20 से ज्यादा लोग नहीं जुट सकते, लेकिन इन सभी आदेशों का तब्लीगियों ने खुला उल्लंंघन किया।
मुस्लिमों ने उड़ाईं लॉकडाउन और शारीरिक दूरी के नियमों की धज्जियां
कुछ ऐसे वीडियो सामने आए हैं जिनमें मुस्लिमों को लॉकडाउन और शारीरिक दूरी के नियमों की धज्जियां उड़ाते देखा गया। वे लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में एक साथ नमाज पढ़ते देखे गए। ऐसा इसीलिए हुआ, क्योंकि कई मौलानाओं ने शारीरिक दूरी बनाने की उपेक्षा की और कोरोना महामारी से कराह रही दुनिया की खिल्ली उड़ाई। जब सरकार ने जमातियों की करतूत के लिए तब्लीगी जमात के प्रमुख मौलाना मुहम्मद साद के खिलाफ कार्रवाई का निर्णय किया तो उन्होंने यह कहते हुए सरकार पर ही दोषारोपण शुरू कर दिया कि वह तो 25 मार्च को ही सम्मेलन खत्म कर वापस जाने को तैयार थे, लेकिन प्रशासन ने परिवहन आदि की सुविधाएं मुहैया नहीं कराईं। यह एक झूठ है। उन्हें सबसे पहले इसका जवाब देना होगा कि दिल्ली सरकार के आदेशों का उल्लंघन कर सम्मेलन के लिए उन्होंने 13 से 25 मार्च तक लोगों को क्यों जुटाया?
मौलानाओं ने मुस्लिमों को मस्जिदों में आने के लिए उकसाया
यह हैरानी की बात है कि कई मौलाना इसके बावजूद मुस्लिमों को मस्जिदों में आने के लिए उकसा रहे थे, जब हफ्ते भर पहले ही मक्का और मदीना में इसके लिए रोक लग गई थी और भारत में भी कई मस्जिदों को बंद कर दिए गया था। उन्हीं दिनों केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कुरान की एक आयत का हवाला दिया था जिसके अनुसार खुदा भी कहता है कि जब परिस्थितियां अनुकूल न हों तो मस्जिद न जाएं, घर पर ही नमाज पढ़ें। लगता है ये बातें भारत में उन मुस्लिम धर्मगुरुओं के लिए मायने नहीं रखतीं, जो हर वक्त इस्लाम खतरे में है, के निरर्थक डर की आड़ में शासन व्यवस्था को चुनौती देने पर तुले रहते हैं। वास्तव में तब्लीगी जमात के मुख्यालय में मौलाना साद के संबोधन का मुख्य आधार भी यही था।
कोरोना से संक्रमित तब्लीगी डॉक्टरों पर थूक रहे, पुलिस से अभद्र व्यवहार कर रहे हैं
साद की जो ऑडियो क्लिप मौजूद है उसमें वह कह रहे हैं कि मस्जिद बंद करने के आदेश को मुस्लिम नजरअंदाज करें, क्योंकि उनके लिए इससे बेहतर स्थान दूसरा नहीं है। कोरोना वायरस का डर मुस्लिमों को एक-दूसरे से अलग करने और इस्लाम को कमजोर करने की साजिश है। उन्हें इस प्रोपेगंडा में नहीं पड़ना चाहिए। आखिर में उन्होंने कहा कि मरने के लिए मस्जिद से बेहतर दूसरी जगह नहीं है। इससे तो यही जान पड़ता है कि वह भारतीय संविधान, देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और भाईचारे की परंपरा से कोसो दूर हैं। उनका हर शब्द संविधान की मूल भावना के विपरीत था। शायद उनके इस भाषण का ही असर रहा कि कोरोना से संक्रमित तब्लीगी जहां-तहां डॉक्टरों पर थूक रहे, हॉस्पिटल में गंदगी फैला रहे, डॉक्टर, नर्स और यहां तक कि पुलिस से अभद्र व्यवहार कर रहे हैं।
जेपी नड्डा ने कहा- तब्लीगियों की गलती की सजा मुस्लिम समुदाय को न भुगतनी पड़े
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह सही कहा कि पार्टी कार्यकर्ता यह सुनिश्चित करें कि तब्लीगियों की गलती की सजा मुस्लिम समुदाय को न भुगतनी पड़े। यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। ऐसे समय मुस्लिम नेताओं को भी आगे आना चाहिए। मुस्लिम नेता देश के सेक्युलर तानेबाने को तोड़ने वाले ऐसे अवांछित तत्वों के खिलाफ कुछ बोलने में संकोच करते हैं। उन्हें यह अहसास होना चाहिए कि मौलाना साद और उनके जैसे कुछ दूसरे धर्मगुरु संविधान के लिए खतरा बन गए हैं। यदि हम अपने संविधान और 130 करोड़ नागरिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा चाहते हैं तो ऐसे लोगों के साथ कड़ाई से पेश आना होगा।
तब्लीगियों की आपराधिक लापरवाही ने देश को संकट में डाल दिया
जब हमें लग रहा था कि देश कोविड-19 की गिरफ्त से बाहर आ रहा है तभी तब्लीगियों की आपराधिक लापरवाही ने देश को पुन: इसकी आग में धकेल दिया। उन्होंने करोड़ों लोगों की जान को खतरे में डाल दिया है। भारतीय दंड संहिता (धारा 168-170), एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 या राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के प्रावधान मौलाना और उनके सहयोगियों के अक्षम्य अपराध के लिए पर्याप्त नहीं हैं। ये एक अलग श्रेणी के अपराधी हैं। उन्हें क्या सजा दी जानी चाहिए, सरकार को इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है।
( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।