विकास सारस्वत। इतिहास के राजनीतीकरण ने देश में लगातार विवादों को जन्म दिया है। तमिलनाडु के कीलड़ी पुरातात्विक स्थल के साथ इसमें एक और अध्याय जुड़ गया। राज्य की द्रमुक सरकार ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआइ पर कीलड़ी उत्खनन को रोकने और राज्य में पुरातात्विक प्रयासों की उपेक्षा के आरोप लगाए हैं। इस विवाद का जन्म एएसआइ निदेशकों द्वारा कीलड़ी के मुख्य पुरातत्वविद अमरनाथ रामाकृष्णन की रिपोर्टों पर स्पष्टीकरण और अतिरिक्त साक्ष्य मांगने के कारण हुआ है, क्योंकि पुरातात्विक सर्वेक्षण बहुविषयी समझ पर आधारित होते हैं। प्रामाणिकता बनाए रखने के लिए एएसआइ में विशेषज्ञों द्वारा ऐसे स्पष्टीकरण मांगना सामान्य प्रक्रिया है।

हालांकि मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इन सवालों को तमिल संस्कृति पर हमला बताया है। राज्य के एक अन्य मंत्री थंगम तेन्नरसु ने कहा है कि कीलड़ी रिपोर्ट को नकारना तमिलों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाए रखने का षड्यंत्र है। यह आरोप इसलिए हास्यास्पद है, क्योंकि स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने तमिल को विश्व की सबसे पुरानी भाषा बताया है। तथ्यात्मक न होने पर भी यह कथन केंद्र की मंशा व्यक्त करता है। मोदी सरकार ने ही चेन्नई के बाद तिरुचिरापल्ली में एएसआइ के दूसरे सर्किल का गठन किया है और देश के जिन पांच पुरातात्विक स्थलों को संग्रहालय बनाने का निर्णय लिया है उसमें तमिलनाडु का आदिच्चनल्लूर भी शामिल है।

द्रमुक सरकार के आरोपों के जवाब में केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा है कि उत्खनन रिपोर्ट जारी करने में किसी को आपत्ति नहीं है, परंतु तमिलनाडु की विरासत का सम्मान विभाजनकारी भावनाएं भड़काने के बजाय बौद्धिक ईमानदारी से होना चाहिए। असंतुष्ट द्रमुक अमरनाथ के नियमसम्मत तबादले को भी षड्यंत्र बता रही है। 2015 से 2017 के बीच दो चरणों के उत्खनन में अमरनाथ द्वारा कीलड़ी का काल निर्धारण 200 ईसा पूर्व किया गया, जो 400 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी की सर्वमान्य संगम काल अवधि में पहुंचता है, परंतु बाद में उन्होंने इसकी अवधि को 800 ईसा पूर्व में पहुंचा दिया। दिलचस्प बात यह है कि राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा 2018 में चौथे चरण के उत्खनन से प्राप्त छह अवशेषों की कार्बन डेटिंग में एक सैंपल की डेटिंग 580 ईसा पूर्व ही बताई गई थी।

पुरातत्व में डेटिंग का अपना महत्व है, लेकिन रेडियोकार्बन प्रयोगशाला केवल चारकोल में परिवर्तित होने वाले पेड़ की मृत्यु की तिथि बता सकती है। यह तिथि उस स्थान के बारे में तब तक कुछ अधिक नहीं बता सकती जब तक इस डेटिंग को स्थल की स्ट्रैटीग्राफी और लेयर मार्किंग से जोड़कर न देखा जाए। रामाकृष्णन की रिपोर्ट में स्ट्रैटीग्राफी स्पष्ट नहीं थी। साथ ही कुछ खंदकों से संबंधित मिट्टी एवं जैविक नमूनों आदि की जांच रिपोर्ट भी शामिल नहीं थीं। रामाकृष्णन ने यह कहते हुए अपनी रिपोर्ट में परिवर्तन-संपादन से इन्कार कर दिया कि इससे निष्कर्षों का महत्व कम हो जाएगा, लेकिन उन्होंने विवादास्पद ईसाई मिशनरी फादर जगत गैस्पर राज को उत्खनन स्थल का दौरा कराया। याद रहे कि लिट्टे को हथियार सप्लाई करने के मामले में जगत गैस्पर राज का नाम एफबीआइ की वांछित अपराधियों की लिस्ट में रहा है। गैस्पर राज के दौरे के बाद हाई कोर्ट की मदुरई बेंच में कीलड़ी की कलाकृतियों को राज्य से बाहर न ले जाने की अर्जी डाली गई।

रामाकृष्णन का नाम केरल के संदिग्ध पट्टनम उत्खनन से भी जुड़ा है। पट्टनम उत्खनन ईसाई लाबी के दबाव में सेंट थामस के प्रथम शताब्दी में केरल आगमन वाले मिथक को इतिहास के रूप में गढ़ने का प्रयास था। प्रो. वसंत शिंदे, आर. नागस्वामी और टी. सत्यमूर्ति जैसे वरिष्ठ पुरातत्वविदों ने पट्टनम उत्खनन की तीखी आलोचना की है। विश्वविख्यात पुरातत्वविद प्रो. दिलीप चक्रवर्ती ने तो पट्टनम को ईसाई लाबी की कारगुजारी बताया है। जब एएसआइ ने इसकी जांच का जिम्मा सौंपा तो रामाकृष्णन ने कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की। पट्टनम की तर्ज पर ही कीलड़ी उत्खनन में भी अतिशयोक्तिपूर्ण दावे किए गए, जो उत्कट तमिल राष्ट्रवाद को उभारने का प्रयास करते हैं। अमरनाथ समेत कई शोधार्थी कीलड़ी को नदी घाटी सभ्यता करार दे रहे हैं, जबकि जिस वैगई नदी पर कीलड़ी स्थित है वह मात्र 250 किमी लंबी मौसमी नदी है।

कुछ शोधार्थियों द्वारा इस स्थल को सिंधु घाटी सभ्यता से जोड़ने का प्रयास भी बेतुका है, क्योंकि छठी शताब्दी की काल गणना मान लेने पर भी कीलड़ी सिंधु घाटी सभ्यता के परिपक्व काल 2500 ईसा पूर्व से 1900 साल बाद आती है। कीलड़ी के संबंध में एक अनूठा दावा यह भी किया गया कि यह एक गैर-धार्मिक पुरातात्विक स्थल है। राज्य पुरातत्व की रिपोर्ट में कीलड़ी उत्खनन के हवाले से तमिल ब्राह्मी की तारीख को पीछे करने का प्रयास भी किया गया है। कीलड़ी में तमिल ब्राह्मी केवल दो टुकड़ों पर लिखी मिली है। यह भी नहीं पता कि ये टुकड़े कार्बन-डेटेड चारकोल से कितनी दूरी पर स्थित थे। यही रिपोर्ट कहती है कि इस स्तर पर जो कुछ भी मिला वह 600 ईसा पूर्व और 300 ईस्वी के बीच की अवधि का हो सकता है। इतने सतही आधार पर तमिल ब्राह्मी की तिथि दो शताब्दी पीछे धकेलना चौंकाने वाली बात है। ब्राह्मी लिपि के सबसे बड़े विशेषज्ञ हैरी फाक तो रेडियोमेट्रिक आधार पर तमिल ब्राह्मी के 500 ईसा पूर्व दावे को भी गलत बताते हैं। फाक ऐसी रिपोर्ट को ‘क्षेत्रीय अंधराष्ट्रवाद’ की उपज मानते हैं।

राज्य के पुरातात्विक स्थलों को सिंधु सभ्यता से जोड़कर आर्य-द्रविड़ खांचे को पुख्ता करना, अपने इतिहास को गैर-धार्मिक और शेष देश की संस्कृति से भिन्न बताना, तमिल ब्राह्मी को अशोक ब्राह्मी का जनक बताना-ये सभी बातें तमिलनाडु में पुरातात्विक उत्खनन को जबरन द्रमुक राजनीति के प्रमुख एजेंडा बिंदुओं की दिशा में धकेलती दिखती हैं। इस एजेंडे को स्वयं स्टालिन आगे बढ़ा रहे हैं। यह नितांत आवश्यक है कि इतिहास एवं पुरातत्व को विचारधाराओं से मुक्त रखा जाए। खासकर तब जब वह ईसाई विस्तारवाद और तमिल क्षेत्रवाद के जरिये द्रविड़ अलगाववाद की बौद्धिक पृष्ठभूमि बनाने पर आमादा हो।

(लेखक इंडिक अकादमी के सदस्य एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)