दिव्य कुमार सोती : जी-20 शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति पुतिन के न आने की आशंका पहले से थी, क्योंकि अमेरिका समेत जी-20 के कई देश यूक्रेन को ऐसे हथियार दे रहे, जिनके जरिये यूक्रेनी सेना रूस के अंदरूनी इलाकों में हमले कर रही है। रूस में आंतरिक उथल-पुथल और सुरक्षा कारणों से चलते भी पुतिन लंबी दूरी की हवाई यात्राएं नहीं कर रहे हैं, पर चीनी राष्ट्रपति के मामले में ऐसा नहीं है।

उन्होंने हाल में दक्षिण अफ्रीका में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया था। वह इंडोनेशिया के बाली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भी गए थे, जबकि उस समय चीन में कोविड को लेकर भयावह स्थितियां थीं। स्पष्ट है कि भारत में हो रहे जी-20 शिखर सम्मेलन में उनके न आने के कारण असामान्य हैं। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच चलते-चलते कुछ बात हुई थी। इसके बाद चीनी विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में शरारतपूर्ण तरीके से लिखा गया कि यह मुलाकात भारत के अनुरोध पर हुई।

भारत ने इसका खंडन करते हुए कहा कि चीनी पक्ष की ओर से लंबी औपचारिक मुलाकात का अनुरोध किया गया था, पर भारत छोटी अनौपचारिक मुलाकात के लिए ही तैयार हुआ। इसका कारण यह था कि भारत पूर्वी लद्दाख में सीमा पर अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति बहाल होने तक चीन के साथ संबंध सामान्य न होने की बात कहता चला आ रहा है। इसके विपरीत चीन चाहता है कि सीमा पर तनाव के बाद भी सब कुछ सामान्य चलता रहे। दक्षिण अफ्रीका में मोदी ने चिनफिंग से कहा था कि चीन पूर्वी लद्दाख में शांति बहाली कायम करे।

दोनों नेताओं के बीच संक्षिप्त बातचीत का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें मोदी गंभीर मुद्रा में चिनफिंग से दो कदम आगे चल रहे हैं और चीनी राष्ट्रपति पीछे चलते हुए कुछ कहने की कोशिश में हैं, जिसे मोदी सुनते तो हैं, पर अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाते। हाव-भाव का कूटनीति में बहुत महत्व होता है। इस वीडियो से चिनफिंग की मजबूत नेता की छवि को लगे धक्के से उबरने के लिए ही चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से यह झूठ बोला गया कि मुलाकात का अनुरोध भारत की ओर से आया था।

माना जाता है कि जी-20 सम्मेलन में आने के लिए चिनफिंग भारत से कुछ अटपटी मांग कर रहे थे, जिसे मोदी ने नकार दिया। इसके तुरंत बाद ही चीनी सरकार ने चीन का एक नया नक्शा जारी किया, जिसमें लद्दाख के कई भागों और अरुणाचल को चीन का हिस्सा दिखाया गया। चीन समय-समय पर ऐसे बेसिर-पैर के दावे करता रहता है, परंतु इस नए नक्शे को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, क्योंकि 1950 के दौरान चीनी सरकार द्वारा जारी ऐसे ही एक नक्शे के चलते दोनों देशों के बीच विवाद ने गंभीर रूप ले लिया था। यही विवाद 1962 के युद्ध का कारण बना।

हालांकि बाली में दोनों देशों के नेताओं की मुलाकात के बाद चीन की ओर से इसकी पुष्टि की गई थी कि दोनों नेता इस पर सहमत हैं कि सीमा पर तनाव घटाया जाए, परंतु चीनी सेना की ओर से इस दिशा में कोई गंभीर कदम नहीं उठाए गए। चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कई स्थानों से पीछे तभी हटी, जब भारतीय सेना ने कैलास पर्वत शृंखला की सामरिक महत्व की कई चोटियों पर कब्जा कर लिया।

जी-20 शिखर सम्मेलन से चीनी राष्ट्रपति का कन्नी काट लेना चीन की भारत के प्रति गहरी दुर्भावना को दिखाता है। चीन भारत को एक एशियाई महाशक्ति मानना तो दूर, एक महत्वपूर्ण देश के रूप में भी स्वीकार नहीं करना चाहता। चिनफिंग यह जताना चाहते हैं कि अगर जी-20 भारत में हो रहा है तो उनके लिए उसका महत्व ब्रिक्स सम्मेलन से कम है। चीन की दुर्भावना का एक प्रमाण हाल में नेपाल में चीनी राजदूत के इस बयान से भी मिला कि भारत की नेपाल के प्रति नीति अच्छी नहीं। यह बयान भारत का नाम लेकर दिया गया, जो कि शत्रुतापूर्ण ही कहा जाएगा।

भारत के प्रति चीन की दुर्भावना समय-समय पर सामने आती ही रहती है। उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जैश-लश्कर के आतंकियों के विरुद्ध आए प्रस्तावों को पारित नहीं होने दिया। जब भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के फलस्वरूप भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह से छूट मिलने का प्रस्ताव आया, तब भी चीन ने रोड़े अटकाए थे। चीन की इन्हीं हरकतों के कारण अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने यह कहा कि संभवतः चीन नई दिल्ली में हो रहे जी-20 सम्मेलन का माहौल खराब करना चाहता है।

भारत को जी-20 शिखर सम्मेलन के इस बड़े मंच का उपयोग रूस और अमेरिका के बीच तनाव कम करने के लिए करना चाहिए, क्योंकि चीन उसका लाभ उठा रहा है। भारत के लिए अच्छी खबर यह है कि रूस ने भी चीन द्वारा जारी नए नक्शे को नकार दिया। स्पष्ट है कि वह भी चीनी दादागीरी को लेकर सहज

नहीं, परंतु अमेरिका और उसके साथी देशों के प्रतिबंधों के चलते वह चीन पर निर्भर होता जा रहा है। पुतिन अगले महीने चीन में होने जा रहे बेल्ट एंड रोड फोरम में जा सकते हैं।

रूसी नौसेना दक्षिण चीन सागर और जापान सागर में चीनी नौसेना की पिछलग्गू बनकर गश्त कर रही है। इससे एशिया में शक्ति संतुलन चीन की ओर झुक रहा है और क्वाड के देशों और खासकर जापान एवं भारत के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं। ऐसे में भारत को अमेरिका और जी-20 में शामिल दूसरे पश्चिमी देशों से यह प्रश्न करना चाहिए कि कमजोर हो चुका रूस बड़ा खतरा है या विस्तारवादी चीन?

(लेखक काउंसिल आफ स्ट्रैटेजिक अफेयर्स से संबद्ध सामरिक विश्लेषक हैं)