[ डॉ. विजय अग्रवाल ]: संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा के लिए आधिकारिक सूचना जारी कर दी गई है। इस परीक्षा के माध्यम से भारतीय प्रशासनिक सेवा, विदेश सेवा और पुलिस सेवा समेत अन्य अखिल भारतीय सेवाओं के लिए अफसरों का चयन किया जाता है। इस वर्ष इस परीक्षा के माध्यम से करीब आठ सौ भर्तियां होंगी। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इनमें कितने अभ्यर्थी हिंदी और भारतीय भाषाओं वाले होंगे, क्योंकि बीते कुछ समय से इस परीक्षा में चयनित अभ्यर्थियों में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के छात्रों की संख्या लगातार कम होती जा रही है।

यूपीएससी में हिंदी भाषी छात्रों की संख्या में लगातार गिरावट

एक आंकड़े के अनुसार पहले जहां 35 फीसद हिंदी भाषी छात्र मुख्य परीक्षा के लिए चयनित होते थे वहीं अब उनका प्रतिशत दो-तीन रह गया है। इस परीक्षा में प्रश्न पत्र केवल हिंदी और अंग्रेजी में ही आते हैं, लेकिन परीक्षार्थियों को अपने उत्तर संविधान में उल्लिखित 22 भाषाओं में देने की छूट होती है। साफ है कि परीक्षार्थियों को ऐसी अंग्रेजी या हिंदी आनी चाहिए जिससे वे पूछे जाने वाले प्रश्नों को समझ सकें।

यूपीएससी परीक्षा में अंग्रेजी माध्यम से नहीं पढ़ सकने वाले छात्रों के सामने भाषा बनी समस्या

अब आप ओडिशा के कोरापुट जिले के एक परीक्षार्थी सुमंतो राउत के दर्द को समझिए। उसका कहना है कि यदि मुझे अंग्रेजी आ रही होती तो मैं अपना माध्यम उसी को रखता। हिंदी मुझे उतनी अच्छी नहीं आती कि मैं उसे लूं। इस कारण मैंने उड़िया लिया, लेकिन जब मुझे पेपर मिला तो मैं उसकी हिंदी को समझ ही नहीं पाया। जो समस्या सुमंतो की है वही हर उस भारतीय युवा की है जो दुर्भाग्यवश अंग्रेजी माध्यम से नहीं पढ़ सका।

यूपीएससी की न समझ आने वाली जटिल और अबूझ हिंदी को लेकर उठते सवाल

हिंदी वालों के सामने संकट यह है कि उन्होंने यूपीएससी सरीखी जटिल हिंदी न तो पढ़ी है और न ही सुनी है। बीते साल दो जून को जब सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा हुई थी तो उसके प्रश्नपत्रों की हिंदी ने बड़े-बड़े विद्वानों को चकरा दिया था। हालांकि यूपीएससी की न समझ आने वाली जटिल और अबूझ हिंदी को लेकर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन उनका समाधान नहीं हो रहा है।

बेहतर हो कि मूल प्रश्नपत्र हिंदी में बने फिर उसका अनुवाद अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में हो

हजारों परीक्षार्थियों ने यूपीएससी और प्रधानमंत्री कार्यालय को भी अपने शिकायती पत्र भेजे, लेकिन इन दोनों कार्यालयों से जो उत्तर मिले वे निराशाजनक ही रहे। उनमें कहा गया था कि आपका दावा आपके स्वयं के अनुमानों पर आधारित है, अत: उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। क्या यह आवश्यक नहीं होता कि कम से कम एक समिति बनाकर भाषा से संबंधित शिकायतों की जांच करा ली जाती? बेहतर हो कि मूल प्रश्नपत्र हिंदी में बने और फिर उसका अनुवाद अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में हो।

हिंदी भाषा का संकट मूलत: अंग्रेजी से हिंदी में किए जाने वाले अनुवाद से है

अभी हिंदी भाषा का जो संकट है वह मूलत: अंग्रेजी से हिंदी में किए जाने वाले अनुवाद का संकट है। इस अनुवाद पर एक निगाह डालना आवश्यक है। संघ लोक सेवा आयोग के अनुसार यह अनुवाद विषय के विशेषज्ञों के द्वारा किए गए हैं। उनकी ओर से र्लिंवग स्टैंडर्ड के लिए जीवन मानक लिखा गया, इंसर्जेंट्स के लिए उपप्लवियों, बोनाफाइड मिस्टेक के लिए सद्भाविकभूल, सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए दीर्घोपयोगी विकास, फार्मास्युटिकल कंपनी के लिए भैषजिक कंपनी। ये चंद उदाहरण मात्र हैं।

क्या अंग्रेजी के इन शब्दों के लिए हिंदी में प्रचलित एवं लोकप्रिय शब्द नहीं हैं?

आप हिंदी के इन शब्दों के उपयोग के औचित्य के बारे में विचार करें। क्या अंग्रेजी के इन शब्दों के लिए हिंदी में प्रचलित एवं लोकप्रिय शब्द नहीं हैं? क्या इन शब्दों को आपने अखबार, समाचार या विषय से संबंधित पुस्तकों में पढ़ा या पढ़ाया है? आखिर ये शब्द आए कहां से? आप गूगल से अंग्रेजी के इन शब्दों के हिंदी शब्द मांगिए। वह आपको तीन-चार शब्दों की लिस्ट दे देगा। उनमें से किसी भी एक पर आप आंख बंदकर उंगली रखकर छांट लीजिए और वाक्यों में जड़ दीजिए। यही हो रहा है और इसीलिए सुमंतो राउत को समझ में नहीं आता कि क्या पूछा जा रहा है?

यूपीएससी के विशेषज्ञों का अनुवाद बदसूरत ही नहीं, बल्कि खीझ पैदा करने वाला है

सच पूछिए तो संघ लोक सेवा आयोग के कथित विशेषज्ञों का अनुवाद बदसूरत ही नहीं, बल्कि बेहद खीझ पैदा करने वाला है। फिर भी आयोग कहता है कि यह आपकी अपनी धारणा है।

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