धार्मिक स्वतंत्रता मानव अधिकारों का आधार है। इसके अतिक्रमण ने हमेशा युद्ध और टकराव की स्थिति को जन्म दिया है- चाहे वह इतिहास की बात हो या आधुनिक समय की। कुरान में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर लगभग 1400 साल पहले ही कह दिया गया था कि धर्म के मामले में कोई जबर्दस्ती नहीं। कुरान में एक और जगह आता है कि तुम्हारा धर्म तुम्हारे साथ और मेरा मेरे साथ। कुरान के इस सिद्धांत को आधुनिक युग की भाषा में धार्मिक स्वतंत्रता कहा जाता है। कुरान के इन सिद्धांतों को नजर में रखते हुए इस्लामिक कानून के विशेषज्ञ इस बात पर एक ही मत रखते हैं कि बलपूर्वक धर्म परिवर्तन की इस्लाम में कोई जगह नहीं है और न ही ऐसे धर्म परिवर्तन कराने वालों की। अहकाम-अल-कुरानअल-जस्सास नामक किताब में आता है कि किसी भी दूसरे धर्म के व्यक्ति को जबरन इस्लाम कुबूल करवाना महापाप है।
हजरत मुहम्मद साहब जब अपना पैतृक शहर मक्का छोड़ मदीना पहुंचे तो उस समय वहां दो धर्मों को मानने वाले लोग ज्यादा थे जिसमें बड़ी संख्या में मुसलमान और फिर यहूदी थे। आज के समय में और 1400 साल पहले की स्थितियों में बड़ा अंतर है। उस जमाने में शासक का धर्म ही सर्वश्रेष्ठ होता था और उसे न मानने वालों के जीवन को या तो समाप्त कर दिया जाता था या समाज ऐसे व्यक्ति का बहिष्कार कर देता था। ऐसे में हजरत मुहम्मद साहब के मदीना आने पर वहां रहने वाले यहूदियों में अपने धर्म को लेकर एक भय पैदा हो गया था। उन्हें दो ही रास्ते दिखने लगे थे कि या तो वे शहर छोड़ दें या मुसलमान हो जाएं, लेकिन वे तब विस्मित हो गए जब हजरत मुहम्मद साहब ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मुसलमान के साथ उसका धर्म और एक यहूदी के साथ उसका धर्म। यह एक ऐतिहासिक बात इसलिए थी, क्योंकि इससे पहले ऐसी घोषणा कभी नहीं हुई थी। इस घोषणा को चार्टर ऑफ मदीना कहा गया, जिसने मदीना के प्रत्येक व्यक्ति को उसका धर्म मानने की खुली छूट दी। चार्टर ऑफ मदीना तथा धार्मिक स्वतंत्रता और इससे जुड़ी अनेक बातों को सामने रखते हुए जनवरी 2016 में मोरक्को में एक कांफ्रेंस आयोजित हुई। इसमें लगभग सभी मुस्लिम देशों के इस्लामिक मामलों के मंत्री तथा मुस्लिम जगत के बड़े-बड़े उलमा शामिल हुए। इस कांफ्रेंस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून के संदेश से हुई, जिसमें उन्होंने मोरक्को की इस कांफ्रेंस को ऐतिहासिक बताते हुए उसका पूरा समर्थन किया। हमें भी उस इतिहास का हिस्सा बनने का मौका मिला जब हमें भारत के मुस्लिम युवाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए वहां बुलाया गया। हमारी ओर से वहां कहा गया कि भारत विश्व के लिए एक आदर्श राष्ट्र है, जहां हर धर्म को मानने वाला मिलता है और भारत के संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता को एक खास जगह दी गई है। धार्मिक स्वतंत्रता भारत के कण-कण में बसती है और यही वजह है कि भारतीय समाज आज भिन्न-भिन्न विचारों और संस्कृतियों का एक महान संगम बन चुका है।
हमने इस कांफ्रेंस की यहां चर्चा इसलिए की, क्योंकि कुछ दिनों पहले पड़ोसी देश पाकिस्तान से यह खबर आई थी कि अब वहां के सिंध प्रदेश की विधानसभा में एक विधेयक लाया गया है, जिसमें जबरन धर्म परिवर्तन वाले मामलों में उम्र कैद की सजा देने और किसी भी नाबालिग व्यक्ति का जबरन धर्म परिवर्तन करना कानूनन वर्जित करने की बात कही गई है। हालांकि यह विधेयक अभी पारित नहीं हुआ है और वहां के गवर्नर के पास है, लेकिन कट्टरपंथियों ने इसमें संशोधन की मांग उठा दी है। बिल में लिखा गया है कि जबरन धर्म परिवर्तन को गैरकानूनी घोषित करना और उन लोगों को संरक्षित करना अनिवार्य है जो ऐसे घिनौने कार्यों के शिकार हुए हैं। मेरा मानना है कि पाकिस्तान के प्रत्येक प्रदेश में ऐसा कानून बनाने की आवश्यकता है। न सिर्फ पाकिस्तान, बल्कि आज विश्व के हर देश को इसमें पहल करने की आवश्यकता है। कई लोगों का मानना है कि धर्म परिवर्तन इस्लाम में नाम बदलने और कलमा पढ़ने भर से हो जाता है। वास्तविकता यह है कि इस्लाम में धर्म परिवर्तन एक वैचारिक क्रांति या आध्यात्मिक परिवर्तन के बाद ही संभव है। यह सिर्फ एक व्यक्ति का अपनी धार्मिक परंपराओं को छोड़ना और दूसरे धर्म की परंपराओं को अपनाने का नाम नहीं है। धर्म परिवर्तन सही अर्थ में सिर्फ तभी संभव है जब एक व्यक्ति को लगे कि उसे एक ऐसी सच्चाई मिल गई है, जिसके लिए उसने बरसों प्रतीक्षा की हो और वह अब अपने जन्म वाले धर्म को छोड़कर किसी दूसरे धर्म को अपनाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो चुका हो। जब किसी व्यक्ति के सवालों के जवाब मिलते हैं तब उसकी पूरी सोच बदल जाती है। इसके पश्चात ही वह एक नया इंसान बनकर सामने आता है। धर्म परिवर्तन का असल अर्थ प्राप्ति है, न कि किसी धर्म की जनसंख्या बढ़ाना। अक्सर लोग विवाह करने के लिए अपना धर्म परिवर्तन करा लेते हैं। ऐसा धर्म परिवर्तन सिर्फ एक मजाक है और इस पर रोक हर देश में लगाने की जरूरत है। अक्सर लोगों को डरा-धमका कर उनका धर्म परिवर्तन कराया जाता है, पर क्या ऐसा कराने वाले कभी सच में धर्म का अर्थ समझते हैं। आज पूरे विश्व में धर्म परिवर्तन एक कारोबार बन चुका है, जिसका वास्तविकता में किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। यह एक ऐसा कारोबार है जिसकी बुनियाद ही झूठ से शुरू होती है।
मानव इतिहास ने वे भी दिन देखे हैं जब जबरन धर्म परिवर्तन के नाम पर पूर्व रोमन साम्राज्य में इंसानों को जीवित मशाल की शक्ल में इस्तेमाल किया जाता था। इतिहास बुद्ध, ईसा, महावीर, मुहम्मद साहब और गुरु नानक जैसे महापुरुषों का गवाह रहा है। उनकी सहज जीवनशैली को देखकर लोग उनसे जुड़ते चले गए। हम किसी के धर्म परिवर्तन के विरुद्ध नहीं, पर किसी का दबाव में धर्म परिवर्तन कराए जाने के बिल्कुल विरुद्ध हैं। विश्व के प्रत्येक देश को ऐसे लोगों को राजनीतिक प्रोत्साहन देने के बजाय उन पर कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है। सरकार किसी को धर्म परिवर्तन करने से नहीं रोकती और न ही रोकना चाहिए, पर उसे ऐसे संगठनों और व्यक्तियों को जरूर रोकना चाहिए जो एक धर्म की पवित्रता पर प्रश्न चिह्न लगा देते हैं।
[ लेखक रामिश सिद्दीकी, इस्लामिक विषयों के जानकार और ‘द ट्रू फेस ऑफ इस्लाम’ के रचनाकार हैं ]