संजय गुप्त। देश में एक बार फिर भीड़-कुप्रबंधन, शासन-प्रशासन की लापरवाही के कारण भगदड़ मचने से 11 निर्दोष लोगों की जान चली गई और दर्जनों अन्य घायल हो गए। आइपीएल के फाइनल मुकाबले में आरसीबी की जीत के बाद बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में आनन-फानन जश्न मनाने का फैसला किया गया। इसकी जानकारी आरसीबी ने इंटरनेट मीडिया के जरिए दी। यह जानकारी मिलते ही क्रिकेट प्रशंसक स्टेडियम के लिए निकल पड़े। अपने देश में क्रिकेट और क्रिकेटरों के प्रति जैसी दीवानगी है, वैसी दुनिया में कहीं नहीं। फिल्मी सितारों, धर्मगुरुओं और नेताओं से भी अधिक आकर्षण क्रिकेटरों का है। अगर लोगों को बड़े क्रिकेटरों को करीब से देखने का मौका मिलता है तो वे कोई भी कष्ट उठाने के लिए तैयार रहते हैं। इसीलिए टी-20 क्रिकेट मैच सबसे अधिक देखे जाते हैं- स्टेडियम में भी और टीवी, मोबाइल पर भी।

जब 18 साल की लंबी प्रतीक्षा के बाद आरसीबी को आइपीएल में खिताबी जीत मिली तो बेंगलुरु जैसे महानगर के लोग नामी क्रिकेटरों और खासकर विराट कोहली, भुवनेश्वर कुमार, क्रुणाल पांड्या आदि को देखने के लिए उमड़ पड़े। बेंगलुरु में जल्दबाजी में आयोजित समारोह में क्रिकेट प्रशंसकों की भारी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कोई प्रबंध किए नहीं गए और जो आधे-अधूरे ढंग से किए भी गए, वे भीड़ के रेले के आगे अपर्याप्त साबित हुए।

चिन्नास्वामी स्टेडियम की क्षमता 35 हजार की है, लेकिन वहां इससे कई गुना लोग जाने को तैयार थे। इन सबने स्टेडियम के अंदर जाने की कोशिश की- उन्होंने भी, जिनके पास ‘पास’ नहीं थे। इसीलिए भगदड़ मची और खुशी का मौका मातम में बदल गया। ऐसा इसलिए और भी हुआ, क्योंकि पुलिस की ओर से भारी भीड़ को संभालने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए गए। ऐसा नहीं था कि इस भीड़ को नियंत्रित नहीं किया जा सकता था। उचित योजना और तैयारी के साथ ऐसा आसानी से किया जा सकता था। भारतीय क्रिकेट टीम के टी-20 विश्व कप जीतने पर मुंबई में आयोजित समारोह में ऐसा किया भी गया था। आखिर जो मुंबई में किया जा सका, वह बेंगलुरु में क्यों नहीं हो सका?

अपने देश में जैसा होता है, उसी के अनुरूप बेंगलुरु की टाली जा सकने वाली त्रासदी के बाद आरोप-प्रत्यारोप के साथ निलंबन, तबादले, जांच आदि का सिलसिला चल निकला है। यह आगे भी चलेगा, पर कहना कठिन है कि भगदड़ के लिए जिम्मेदार लोग जवाबदेह बनाए जा सकेंगे। जो भी हो, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि स्टेडियम में क्रिकेट प्रशंसकों का बड़ा जनसमूह एकत्रित होने के आसार देखकर नेताओं ने भी आरसीबी के जश्न में भागीदारी करना बेहतर समझा। खिलाड़ियों को तो नेताओं से मिलने की चाहत शायद ही होती हो, पर नेता उनसे मिलने, उनके संग फोटो लेने के लिए तैयार रहते हैं। यह स्वाभाविक ही है कि आरसीबी प्रबंधन भी अपनी टीम की जीत के जश्न में नेताओं की उपस्थिति चाह रहा होगा। वे उपस्थित भी हुए। जब कोई वीआइपी किसी आयोजन में जाता है तो पुलिस उसकी सुरक्षा के लिए तो सतर्क रहती है, पर आम लोगों की सुरक्षा की परवाह मुश्किल से ही करती है। इसके चलते लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है।

अपने देश में राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक आयोजनों में भगदड़ की घटनाएं होती ही रहती हैं। इनमें लोग मरते भी हैं, पर कोई जरूरी सबक सीखने से बचा जा रहा है। यदि ऐसे आयोजनों में आई भीड़ के नियंत्रण के उचित प्रबंध न किए जाएं तो नेता, अभिनेता, खिलाड़ी आदि के समीप जाने की होड़ में धक्का-मुक्की होती है। यही कई बार भगदड़ में बदल जाती है।

भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है। हमारे बड़े शहरों में सार्वजनिक स्थलों पर भीड़ देखने को मिलती है, पर समस्या यह है कि भारत में बढ़ती आबादी के हिसाब से न तो आधारभूत ढांचे का निर्माण किया जाता है, न भीड़ प्रबंधन के उपायों पर अमल। रही-सही कसर औसत लोगों की ओर से संयम एवं अनुशासन का परिचय न देने से पूरी हो जाती है। देश में जब भी कहीं भगदड़ की घटना होती है और उसमें बड़ी संख्या में लोग मारे जाते हैं तो हर कोई शोक जताता है और शासन-प्रशासन शीघ्र जांच कर जिम्मेदार लोगों को दंड देने का वादा करता है, पर ऐसा कुछ मुश्किल से ही होता है और यदि यदा-कदा होता भी है तो वर्षों बाद। इस कारण भी देश में भगदड़ की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। ऐसी घटनाओं से विश्व में भारत की छवि भी खराब होती है।

भारत की तरह कई देश अधिक आबादी वाले हैं, लेकिन ऐसे कई देशों में सार्वजनिक स्थानों पर लोग धैर्य और अनुशासन का परिचय देते हैं। वे सुरक्षा संबंधी दिशानिर्देशों का पालन भी अच्छी तरह करते हैं। उदाहरण के तौर पर जापान के लोग अपने संयम, अनुशासन और सार्वजनिक स्थलों पर शिष्ट व्यवहार के लिए जाने जाते हैं। यही कारण है कि जापान और इस जैसे देशों में भगदड़ की घटनाएं न के बराबर होती हैं। अपने देश में सभी लोगों को सार्वजनिक स्थलों में अनुशासन का परिचय देना होगा। लोग ऐसा करें, इसके लिए शासन-प्रशासन और राजनीतिक दलों को भी सक्रियता दिखानी होगी, ताकि भीड़ भरे किसी स्थान पर आपाधापी की स्थिति में लोग स्वयं को नियंत्रित रखें और कोई अप्रिय घटना न होने पाए।

सार्वजनिक स्थलों पर अनुशासित व्यवहार करने और अव्यवस्था न फैलने देने की चिंता करने के लिए देश के धनी, विकसित अथवा पूर्णतः शिक्षित होने की जरूरत नहीं है। अनुशासन का पाठ तो सबको सीखना चाहिए और लोगों को सिखाया भी जाना चाहिए। भीड़ वाले स्थलों पर विपरीत हालात पैदा हो जाने पर लोगों को संयम का परिचय देना आना ही चाहिए। कतार में लगना, उसे तोड़कर आगे न निकलना और धक्का-मुक्की न करना, यह सब हम भारतीयों के दैनिक जीवन का अंग बनना चाहिए। इसके लिए समाज के साथ शासन-प्रशासन को भी अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी का निर्वाह करना होगा। यदि किसी सार्वजनिक स्थल पर पुलिस सतर्क रहे, लेकिन वहां एकत्रित लोग अनुशासित व्यवहार का परिचय न दें, तो भी अव्यवस्था फैल सकती है और वह भगदड़ का कारण बन सकती है।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]