[ कमल किशोर सक्सेना ]: जो लोग आज तक निलंबित नहीं हुए हैं, वे अब भी प्रयास कर लें तो देर नहीं कहलाएगी, क्योंकि निलंबन रूपी रत्न के बिना नौकरी रूपी ताज की आभा अधूरी रहती है। सुबह दस से शाम पांच बजे तक कलम या कंप्यूटर का माउस घसीटकर अपना फंड, ग्रेच्युटी और बीमा तो बहुत से लोग पा जाते हैं, पर बिना काम किए आधी तनख्वाह का सुख तो नसीब वाले ही उठा पाते हैं। निलंबन के लिए भ्रष्टाचार बहुत जरूरी है। यह माना जाता है कि जो निलंबित हुआ है, वह भ्रष्ट होगा। कभी-कभी ईमानदार लोग भी निलंबित हो जाते हैं। ऐसे मामलों में निलंबित करने वाला भ्रष्ट होता है।

निलंबित होना भी एक कला है 

हालांकि निलंबित होना भी एक कला है। जो लोग इसे जानते हैं, सुखी रहते हैं। जानकार लोग जब तक नौकरी करते हैं, कमाते हैं। फिर निलंबित होकर बाकायदा उसका सुख भोगते हैं। हमारे एक मित्र हैं, जो कोई न कोई हथकंडा अपनाकर हर साल मई-जून में सस्पेंड हो जाते थे और बीवी-बच्चों को किसी हिल स्टेशन पर घुमा लाते थे। पिछले महीने लाकडाउन खुलने पर हमें मिले। बताया कि दफ्तर जा रहे हैं तो और आश्चर्य हुआ। काफी कुरेदने पर उन्होंने बताया, ‘यार नया बास बहुत घाघ है। सोचा था कि अबकी गर्मियों में गांव वाला मकान बनवा लूंगा। मगर साहब ने सस्पेंड ही नहीं किया।’ मुझे आश्चर्य हुआ कि मित्र जैसा अनुभवी व्यक्ति सस्पेंड होने में मात खा जाए तो नए लोगों का क्या होगा?

सस्पेंड होने का अधिकार मिलना चाहिए

मित्रवर ने अपनी व्यथा सुनाते हुए बताया, ‘निलंबित होने के लिए मैंने क्या-क्या नहीं किया। अफसर को हिस्सा दिए बिना टेंडर पास करवाया। मगर उसने सस्पेंड करने के बजाय अगले टेंडर से मेरा कमीशन हड़प लिया। फिर मैंने सरेआम उसे गालियां दीं, लेकिन उसने कोई कार्रवाई करने के बजाय अपने कानों में रुई ठूंस ली।’ ‘तुमने उसे झापड़ क्यों नहीं मारा?’ मैंने अदनी-सी राय दी। ‘वह भी मारकर देख लिया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। उसने भी पलटकर मुझे जड़ दिया।’ मित्र ने खिसियाकर आगे बताया, ‘कहता है कि लोकतंत्र में सबको सस्पेंड होने का समान अधिकार है। यह क्या बात हुई कि हमेशा आप ही मौज करें। खूबचंद को लड़की की शादी करनी है। बटोही को आंख का आपरेशन करवाना है। पल्हड़ जी को अपने मां-बाप को माता वैष्णो देवी के दर्शन करवाने हैं। क्या इन लोगों को सस्पेंड होने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए।’

नौकरी रूपी पुस्तक का एक दुखद अध्याय

मित्र की यह करुण कथा नौकरी रूपी पुस्तक का एक दुखद अध्याय है, जो कभी न कभी अनचाहे पढ़ना पड़ ही जाता है, पर इसका यह अर्थ नहीं कि कोशिश करनी छोड़ दी जाए। गीता में भी कहा गया है कि मनुष्य को कर्म अवश्य करना चाहिए। निलंबन रूपी फल अफसर के हाथ में है। हां, यह जरूर है कि जिन लोगों की अपने अफसर के साथ अच्छी ट्यूनिंग होती है, उन्हेंं बिना नंबर के भी निलंबन सुख अप्रत्याशित रूप से मिलता रहता है। अर्थात निलंबित होने के लिए अफसर की गुड बुक में रहना जरूरी है।

निलंबित कर्मचारी की दिनचर्या कुछ अलग हो जाती

निलंबित कर्मचारी की दिनचर्या कुछ अलग हो जाती है। पहले तो दस बजे तक दफ्तर पहुंचने की हड़बड़ी होती थी, किंतु निलंबनोपरांत बड़ा इत्मीनान रहता है। जब बाकी दुनिया मशीन बनी ऑफिस भाग रही होती है तो निलंबित कर्मचारी चैन से अखबार पढ़ता मिलता है और मूंछों पर ताव देकर मन ही मन कहता है, ‘नौकरी करोगे तो ऐसे ही कोल्हू के बैल बने रहोगे।’ निलंबित कर्मचारी की पत्नी भी प्राय: उससे खुश रहती है, क्योंकि पति महोदय घर के कामों में भी उसका हाथ बटा लेते हैं। इस अवधि में घर के नौकरों को छुट्टी दे दी जाती है। बच्चों को पढ़ाने के लिए काफी समय होता है, नतीजा ट्यूटर की भी छुट्टी। इस प्रकार निलंबन अवधि में अच्छी-खासी र्आिथक बचत भी हो जाती है। जो लोग पहले मुलाकात न होने का उलाहना देते थे, उनकी शिकायत इस हद तक दूर हो जाती है कि वे मनाने लगते हैं, ‘हे ईश्वर! अब तो इन्हेंं बहाल कर दो।’

निलंबित होना न केवल फायदेमंद है, बल्कि जीवन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि भी है

कुल मिलाकर निलंबित होना न केवल हर पहलू से फायदेमंद है, बल्कि जीवन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि भी है। इसलिए हे कर्मचारियों! अपनी नौकरी में मिले निलंबन रूपी विशेषाधिकार को पहचानो और उसे प्राप्त करो।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]