[ जगमोहन सिंह राजपूत ]: दूसरे विश्वयुद्ध के बाद वैश्विक-विचार विमर्श का निष्कर्ष था कि ‘युद्ध मनुष्य के मस्तिष्क में जन्म लेते हैं,अत: शांति और सुरक्षा की संरचना भी मनुष्य के मष्तिष्क में ही निर्मित होनी चाहिए।’ इसे संयुक्त राष्ट्र की विज्ञान, शिक्षा और संस्कृति के उन्नयन के लिए बनाई गई संस्था यूनेस्को का सूत्र-वाक्य बनाया गया। सामान्य भाषा में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का उद्देश्य मनुष्य को हिंसा और युद्ध से हटकर शांति और सद्भावना की ओर अग्रसर करना था। तब यह भी माना गया कि विश्व शांति और सद्भावना की स्थापना के लिए हर व्यक्ति तक शिक्षा को पहुंचाना आवश्यक होगा। इस लक्ष्य में सभी देश आगे बढ़े हैं, मगर धीरे-धीरे यह भी सिद्ध हो रहा कि शिक्षा सभी अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रही है।

कोरोना संकट ने मनुष्य को दी दो सीख, साथ-साथ रहना सीखना और प्रकृति को आदर तथा सम्मान देना

यदि शिक्षा वास्तव में युवाओं का दृष्टिकोण परिवर्तन कर रही होती तो विश्व में कोई पढ़ा-लिखा युवक आतंकी नहीं बनता। हिंसा, युद्ध, असुरक्षा, आतंकवाद, धर्मांधता जैसे अस्वीकार्य तत्व आज भी विश्व में करोड़ों लोगों को गरिमापूर्ण मानवीय जीवन जीने से वंचित कर रहे है। कोरोना कहर ने इस स्थिति में अप्रत्याशित आयाम जोड़ दिए हैं। अभी तक कोई ऐसा युद्ध नहीं लड़ा गया जिसमें विश्व का हर देश एक अदृश्य आक्रमणकारी के सामने खड़ा कर दिया गया हो। कोरोना युद्ध में कोई किसी से अलग नहीं रह सकता, सभी को एक ही पाले में रहना है। कोरोना संकट ने मनुष्य को दो बड़ी सीख दी हैं। एक, प्रत्येक विविधता को स्वीकार करते हुए साथ-साथ रहना सीखना। दूसरे, प्रकृति को जीवनदायिनी मानकर उसे आवश्यक और अपेक्षित आदर तथा सम्मान देना।

वैश्विक स्तर पर साक्षरता दर भले ही बढ़ी हो, जाहिलियत अभी भी जीवित है

सारे विश्व को यह भी स्वीकार करना होगा कि वैश्विक स्तर पर साक्षरता दर भले ही बढ़ी हो, जाहिलियत अभी भी जीवित है और मानव जीवन को कभी भी बड़े संकट में डाल सकती है। इसलिए और भी, क्योंकि अपने धर्म/पंथ को सर्वश्रेष्ठ मानने और केवल अपने ही धर्म में सभी को लाने के लिए सब कुछ न्योछवर करने वार्ले ंहसा का सहारा लेने को सदा तैयार रहते हैं। वे इसे ईश्वरीय आदेश मानते हैं।

तब्लीगी जमात का एक तबका मुस्लिम समाज को आगे बढ़ने से रोकने का काम कर रहा है

इस समय जब भारत कोरोना से एकजुट होकर लड़ रहा है तब तब्लीगी जमात ने जो कहर ढाया उसकी चर्चा कोरोना के चिंताजनक प्रसार के साथ जुड़ गई है। यह स्पष्ट उजागर हुआ कि तब्लीगी जमात के रूप में एक तबका ऐसा है जो इस्लाम की दकियानूसी व्याख्या कर मुस्लिम समाज को समय के साथ आगे बढ़ने से रोकने का काम कर रहा है। इस जमात के लोगों की ओर से इंदौर, मुरादाबाद समेत अन्य कई शहरों में जिस तरह डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले हुए अथवा उनसे बदसलूकी की गई या फिर उपचार से बचने की कोशिश की गई उसे हठधर्मिता और धर्मांधता की शर्मनाक मिसाल ही कहा जाएगा।

हिंदू अच्छा हिंदू बने, मुसलमान अच्छा मुसलमान बने

गांधी जी ने अपना सारा जीवन देश को यही समझाने में लगा दिया कि ‘मेरा धर्म मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ है, मेरे पड़ोसी का उसके लिए है, हिंदू अच्छा हिंदू बने, मुसलमान अच्छा मुसलमान बने।’ हम इसे व्यवहार में नहीं ला पाए हैं। सामाजिक समरसता को ध्वस्त करने के जो प्रयास लगातार चलते रहते हैं उससे कितने बड़े अनर्थ होते हैं, तब्लीगी जमात का आचरण उसी का एक उदाहरण है।

ज्ञानी तत्व मजहब के आधार पर मनुष्य को मनुष्य से अलग करके विषमता का जहर बांटते हैं

जैसे-जैसे इस जमात के आचरण की परतें खुल रही हैं, वैसे-वैसे पता चल रहा है कि कैसे स्वार्थी और अज्ञानी तत्व मजहब के आधार पर मनुष्य को मनुष्य से अलग करने को ही जीवन लक्ष्य बनाकर विषमता का जहर बांटने में जीवन खपा देते हैं। जो जमात से परिचित नहीं हैं उनका भी ध्यान निजामुद्दीन मरकज और उसमें भाग लेने वालों की ओर गया है। मरकज के दौरान उसके आयोजकों का कोरोना को हंसी में उड़ा देना, जमातियों का मस्जिदों में छिपना, पकड़े जाने पर क्वारंटाइन केंद्रों पर असभ्य व्यवहार लोगों के मानस पटल पर अंकित हो रहा है।

हिंदू और मुस्लिम के बीच अविश्वास बढ़ रहा

मेरी चिंता उन बच्चों और युवाओं लेकर है जो लॉकडाउन के समय अपने परिवार के साथ घरों में हैं, टीवी देख रहे हैं और प्रश्न पूछ रहे हैं। इन सब चर्चाओं में ‘अमुक समुदाय’ जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं होता। चर्चा में भारत विभाजन भी आता है, कश्मीर भी आता है और भविष्य की शंकाएं भी आती हैं। तब्लीगी जमात के असामाजिक व्यवहार से जो दुर्भावना पैदा हो रही है, क्या वह देश के लिए और अपनी नफासत एवं तहजीब के लिए जाने वाले मुस्लिम समुदाय के लिए चिंता का विषय नहीं है? यह पीड़ादायक है कि मुस्लिम समुदाय का एक मुखर वर्ग जमात की अज्ञानता और असामाजिकता की निंदा करने के स्थान पर प्रशासन और मीडिया पर अनर्गल आरोप लगाकर रूढ़िवादिता को और भी बढ़ावा दे रहा है। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र की समरसता को क्षीण होते देख रहे हैं, मगर या तो समझ नहीं रहे या फिर जानबूझकर खाई को और भी बढाने में किसी कारण से संलिप्त हैं। इससे हिंदू और मुस्लिम के बीच जो अविश्वास बढ़ रहा है वह भावी पीढ़ियों और देश के भविष्य के लिए घातक है।

ब सारा देश कोरोना के विरुद्ध पीएम के साथ है ऐसे में जमातियों ने देश में संकट पैदा कर दिया

जब सारा देश कोरोना के विरुद्ध प्रधानमंत्री के साथ तन-मन-धन से एकजुट हो गया तब जमातियों ने इस प्रयास की सफलता को अनिश्चितता में डालकर संकट की स्थिति पैदा की। अभी भी उन्होंने अपनी हठधर्मिता छोड़ी नहीं है। मुस्लिम समुदाय के प्रबुद्ध लोगों को समझना होगा कि किसी भी समुदाय में पिछड़ापन तभी आता है जब वहां आंतरिक प्रेरणा, शिक्षा, कौशल प्राप्त करने की इच्छाशक्ति कुंठित कर दी जाती है। यह समझ सभी के लिए हितकारी होगी। समस्या का समाधान प्रारंभिक शिक्षा के स्वरूप में बदलाव कर संभव है। राष्ट्रहित में हर बच्चे को सभी धर्मों के मूल तत्व बताए जाएं। सभी का सम्मान करने की आवश्यकता को अंतर्निहित कराया जाए। वे यह भी जानें कि कोई धर्म किसी से श्रेष्ठ नहीं है, सभी बराबर हैं।

( लेखक शिक्षा और सामजिक सद्भाव के क्षेत्र में कार्यरत हैं )