मार्क डी. मार्टिन। अहमदाबाद में दुर्घटनाग्रस्त एअर इंडिया के विमान की आरंभिक जांच रिपोर्ट जवाब से कहीं अधिक सवाल उठाने वाली है। अहमदाबाद से लंदन के लिए जा रही उड़ान संख्या एआइ 171 की दुर्घटना से जुड़ी यह रिपोर्ट पहली नजर में ही पूर्वाग्रह से ग्रस्त दिखती है। इसमें किसी न किसी तरह पूरा दोष उन पायलटों पर मढ़ने का प्रयास है, जो इस हादसे में मारे गए। तथ्यात्मक रूप से रिपोर्ट यही बताती है कि टेक ऑफ यानी उड़ान भरते समय इंजन बंद हो गए थे।

ऐसी स्थिति में रैट-रैम एयर टरबाइन स्वाभाविक रूप से सक्रिय हो जाता है। रैट असल में एक आपातकालीन उपकरण है, जो विमान के दोनों इंजनों के बंद होने की स्थिति में आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है। इसमें विमान की गति से चलने वाली हवा के उपयोग से ही ऊर्जा उत्पन्न होती है। रैट फ्यूल स्विच/वाल्व को कट ऑफ करने की स्थिति में सक्रिय नहीं होता। वैसे भी पायलट इतने मूर्ख नहीं होते कि दोनों इंजनों के फेल हो जाने की स्थिति में फ्यूल को कट ऑफ कर दें। फ्यूल कट ऑफ का तर्क तभी गले उतरता है, जब अंतिम उपाय के रूप में अपनी जान बचाने के लिए पायलट इंजनों को दोबारा चालू करने का प्रयास करते हैं।

प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में चालक दल की आपसी बातचीत को लेकर रहस्य बुनने की मंशा भी बहुत चौंकाने वाली है। यह असंभव सी बात है कि ऐसी आपात स्थिति के दौरान काकपिट में कोई हलचल न हुई हो। ऐसी परिस्थितियों में वहां इतनी शांति कैसे हो सकती है। जाहिर है कि कुछ पहलुओं को जानबूझकर छिपाने का प्रयास किया जा रहा है। जिस तरह रिपोर्ट लिखी गई है उसका भाव यही संकेत करता है कि यह कुछ और नहीं, बल्कि विमान दुर्घटना के लिए पायलटों को दोषी ठहराने का गुप्त प्रयास है।

इसके अलावा यह भी समझ से परे है कि जब जांच के किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने में अभी और तीन माह से लेकर एक साल तक का समय लग सकता है तो फिर बोइंग एवं इंजन बनाने वाली कंपनी जीई को क्यों संदेह के दायरे से दूर रखा जा रहा है? फिर इस जांच रिपोर्ट को रात करीब दो बजे जारी करने का क्या तुक, जब इस दुर्घटना से सर्वाधिक प्रभावित भारत और ब्रिटेन जैसे देशों में कामकाज करीब-करीब बंद हो जाता है।

पायलट, सेफ्टी मैनेजमेंट सिस्टम और उससे जुड़े पेशेवरों के अलावा आडिटर और जांचकर्ताओं के लिए किसी उड़ान के दो सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव टेक ऑफ और लैंडिंग होते हैं। इस दौरान पूरा ध्यान विमान को करीब 2000 फीट तक मैनुअली उड़ाने पर होता है, जिसके लिए हाथ से ही सभी उपकरणों को चलाना पड़ता है। उसके बाद ही विमान आटो-पायलट की अवस्था में आ सकता है। थ्रस्ट सेटिंग भी मैनुअल होती है और इस कवायद में पूरा फोकस विमान से जुड़ी अहम नियंत्रक प्रणालियों पर होता है।

चूंकि यह रिपोर्ट एक व्यापक परिचालन वाले बोइंग 787 ड्रीमलाइनर विमान से जुड़ी है तो पूरी दुनिया के लिए उसके गहरे निहितार्थ हैं। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि फ्यूल वाल्व-स्विच कट ऑफ यानी निष्क्रिय कर दिए गए थे। इसके दूर-दूर तक कोई आसार नहीं दिखते कि कोई भी पायलट विशेष रूप से टेक ऑफ के दौरान और जब उसे सबसे अधिक थ्रस्ट की जरूरत होगी, तब वह फ्यूल स्विच से कोई छेड़छाड़ करेगा। इस दौरान अमूमन काकपिट के फ्रंट पैनल में लगे लैंडिंग गीयर उठाने या फ्लैप्स उठाने पर जोर रहता है। ऐसे में अगर फ्यूल वाल्व-स्विच को कट ऑफ स्थिति में ले जाने के लिए वापस मोड़ने की वजह बताई जाए तो यह गहन जांच का विषय है।

फ्यूल वाल्व/स्विच पर संकेतक होता है कि इसमें विसंगति हो सकती है। अमेरिका के संघीय विमानन प्रशासन-एफएए ने यह माना भी है। एफएए ने 2018 में वायु परिवहन के मोर्चे पर एक चेताने वाले बुलेटिन में कहा था कि कुछ ऐसे मामले में सामने आए हैं, जिनमें फ्यूल स्विच अपने आप ही कट ऑफ स्थिति में चला गया। इनमें जापान और यूरोपीय विमानन सेवाओं से जुड़े मामलों का संदर्भ भी था।

मेरे विचार में अगर स्विच में कोई खराबी थी तो यही दुर्घटना का सबसे संभावित कारण हो सकता है। ऐसे में एनटीएसबी, एफएए, ईएएसए के अलावा एएआइबी जैसी एजेंसियों को यह जांचने-परखने की जरूरत है कि फ्यूल स्विच क्यों कट ऑफ अवस्था में चले गए, क्योंकि कोई पायलट ऐसी मूर्खता नहीं करेगा कि उड़ान के जिस पड़ाव पर उसे सबसे अधिक ऊर्जा की जरूरत हो तो वह उसके स्रोत को ही बंद कर दे।

उचित होगा कि हम समग्र एवं व्यापक जांच रिपोर्ट के सामने आने की प्रतीक्षा करें। एआइ 171 उड़ान हादसे से जुड़ी आरंभिक रिपोर्ट पर गौर करें तो यदि फ्यूल कट ऑफ स्विच अपने आप ही हरकत में आ गए तो यह उन तमाम विमानन कंपनियों के लिए सतर्कता बढ़ाने का समय है, जो ड्रीमलाइनर 787 विमानों से परिचालन कर रही हैं।

उन्हें फ्यूल स्विच प्रणालियों की सघन समीक्षा और व्यापक जांच-पड़ताल करनी होगी। बोइंग 787 ड्रीमलाइनर व्यापक डिजिटल एवं साफ्टवेयर प्रणाली पर संचालित विमान है, जिसे निरंतर रूप से सिस्टम अपडेट एवं सिक्योरिटी पैच की भी आवश्यकता होती है। अगर फ्यूल स्विच कट ऑफ हो गए तो इसके पीछे के कारण को तलाशना होगा।

स्वाभाविक तौर पर इसमें तमाम जटिलताएं आएंगी, लेकिन इस काम को पूरा करने की प्रक्रिया में सभी जांच एजेंसियों को कोई कोर-कसर शेष नहीं रखनी चाहिए। यह भी उतना ही महत्वपूर्ण होगा कि इस जांच के दायरे में उन अन्य अनेक कंपनियों और नियामकों को भी जोड़ना चाहिए, जो 787 विमानों के परिचालन से जुड़े हैं।

(लेखक विमानन विशेषज्ञ एवं मार्टिन कंसल्टिंग के सीईओ हैं)