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    घर छोड़कर बच्चों का जीवन संवारने में जुटीं ये संन्यासिनी

    By BhanuEdited By:
    Updated: Sat, 21 Jan 2017 07:30 AM (IST)

    समाज सेवा के जज्बे के चलते चचेरी बहनों ने पहले घर परिवार छोड़ा और संस्यास धारण किया। वे हर असहाय का सहारा बन गई। बच्चों का भी जीवन संवारने में वे जुटीं हैं।

    घर छोड़कर बच्चों का जीवन संवारने में जुटीं ये संन्यासिनी

    रुड़की, [रीना डंडरियाल]: कर्नल एनक्लेव स्थित श्री भवानी शंकर आश्रम एक ऐसा स्थान है, जहां हर व्यक्ति के लिए दरवाजे खुले हैं। फिर चाहे वे बुजुर्ग हों, युवा हों या बच्चे। भूखों को यहां पर तीनों वक्त का भोजन मिलता है। जबकि, परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण शिक्षा से वंचित रह गए बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा। गोमाता की भी यहां भरपूर सेवा की जाती है।

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    बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति की 51 वर्षीय श्रीमहंत रीमा गिरी और 52 वर्षीय श्रीमहंत त्रिवेणी गिरी दोनों चचेरी बहने हैं। उन्होंने भले ही वर्षो पहले घर-परिवार छोड़कर संन्यास ले लिया, लेकिन अपने सामाजिक दायित्वों से कभी मुंह नहीं मोड़ा।

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    समाज के जरूरतमंद लोगों के लिए उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। मूलरूप से ग्राम लिब्बरहेड़ी निवासी श्रीमहंत रीमा गिरी और श्रीमहंत त्रिवेणी गिरी की 18 वर्ष की आयु में माता-पिता ने जब शादी करानी चाही, तो उन्होंने साफ इन्कार कर दिया।

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    हालांकि, इसके बाद भी परिजन उन पर बार-बार शादी के लिए दबाव बनाते रहे, जिससे खिन्न होकर उन्होंने अन्न का त्याग कर दिया। पूरे पांच साल तक वे फलाहार पर ही रहीं और परिवार से भी दोटूक कह दिया कि आगे भी सांसारिक मोह-माया में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं।

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    इसके बाद उन्होंने घर का परित्याग कर लिब्बरहेड़ी में ही भवानी शंकर मंदिर की शरण ले ली और मंदिर में आने वाले साधु-संत, असहाय महिलाओं और जरूरतमंदों की सेवा में जुट गईं।

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    करीब 25 साल यहीं गुजारने के बाद उन्होंने वर्ष 2005 में दानदाताओं की मदद से साढ़े तीन बीघा भूमि में भवानी शंकर आश्रम की स्थापना की। यहां लगभग 25 कमरे हैं, जिनमें महिला और पुरुषों के रहने के लिए अलग-अलग व्यवस्था है।

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    आश्रम में तीनों वक्त भंडारा लगता है, जिसमें कोई भी भोजन ग्रहण कर सकता है। आश्रम के सेवादारों समेत रोजाना 150 से 200 लोग यहां पर भोजन लेते हैं।

    बेटियां बन रही स्वावलंबी

    आश्रम में हर साल गर्मियों के दौरान लड़कियों के लिए मुफ्त सिलाई प्रशिक्षण कैंप का आयोजन किया जाता है। इसमें 50 से 60 लड़कियां प्रशिक्षण लेती हैं। इसके बाद उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद मिलती है।

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    इतना ही नहीं आश्रम में निर्धन कन्याओं की शादी भी करवाई जाती है। जूना अखाड़ा के श्रीमहंत गुलाब गिरी महाराज की शिष्य श्रीमहंत रीमा गिरी व श्रीमहंत त्रिवेणी गिरी के अनुसार उनके जीवन का एकमात्र ध्येय प्रभु सेवा के साथ समाज सेवा से जुड़े कार्य करना है।

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    संवर रहा नौनिहालों का भविष्य

    आश्रम में आधा दर्जन से अधिक लड़कियों एवं लड़कों को आश्रय दिया गया है। इन बच्चों के रहने-खाने, फीस, ड्रेस, स्कूल तक जाने का खर्चा आश्रम ही वहन करता है।

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    इनमें वे बच्चे भी शामिल हैं, जिनके माता-पिता नहीं हैं या फिर जिनके परिवार आर्थिक विपन्नता के कारण उन्हें यहां छोड़ गए हैं। इस समय यहां छठवीं कक्षा से लेकर एमए तक की शिक्षा हासिल करने वाले बच्चे रह रहे हैं।

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