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    यहां गरीब बच्चों को शिक्षा से अलंकृत कर रही अलंकृता

    By BhanuEdited By:
    Updated: Wed, 11 Jan 2017 05:01 AM (IST)

    बचपन में मां व युवावस्था में पिता का साया सिर से उठने के बावजूद अलंकृता ने हार नहीं मानी और समाज सेवा को ध्येय बनाया। अब वह गरीब बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रही है।

    ऋषिकेश, [दुर्गा नौटियाल]: बचपन में मां व युवावस्था में पिता का साया सिर से उठने के बावजूद अलंकृता ने हार नहीं मानी और समाज सेवा को ध्येय बनाया। अब वह गरीब बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रही है।

    सर्वोदय नगर कानपुर के व्यवसायी एएन चटर्जी के घर जन्मी अलंकृता बनर्जी जब महज एक साल की थी, मां का साया सिर से उठ गया। पिता ने मां की जिम्मेदारी निभाते हुए किसी तरह बच्चों को पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाया।

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    मगर, 21 साल की होते ही नियति ने उससे पिता का साथ भी छीन लिया। लेकिन, अलंकृता टूटी नहीं। उसने बड़े भाई व छोटी बहन के साथ मिलकर न सिर्फ परिवार को संभाला, बल्कि बचपन में पिता और दादा से विरासत में मिली समाज सेवा की राह पर चलते हुए ऋषिकेश पहुंच गई।

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    यहां अलंकृता ने अपने सहपाठियों व दोस्तों की मदद से दो जनवरी 2013 को 'पंख द क्रिएटिव' नाम से स्कूल की स्थापना की। वीरभद्र मार्ग स्थित इस स्कूल में आज 150 बच्चे अध्ययनरत हैं, जिन्हें निश्शुल्क शिक्षा दी जाती है। ये बच्चे उन परिवारों से हैं, जिनकी मासिक आमदनी पांच हजार रुपये से अधिक नहीं है।

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    प्ले-ग्रुप से लेकर छठी कक्षा तक के इस स्कूल में करीब 80 प्रतिशत छात्र ऐसी मलिन बस्तियों से आते हैं, जहां स्कूल के बारे में लोग सोचते तक नहीं।

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    अलंकृता के अभियान को साथियों का सहयोग मिला तो उसने मलिन बस्तियों की अनपढ़ महिलाओं को पढ़ाने के साथ उन्हें स्वावलंबी बनाने का जिम्मा भी संभाल लिया। आज अलंकृता मलिन बस्तियों की करीब 50 महिलाओं को प्रौढ़ शिक्षा के साथ वेस्ट पेपर व जूट के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दे रही है।

    इनमें से आधे से अधिक महिलाएं अपना नाम लिखना और हस्ताक्षर करना तक सीख चुकी हैं। साथ ही वेस्ट पेपर, जूट आदि उत्पाद तैयार कर घर की आर्थिकी में भी सहयोग कर रही हैं।

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    अलंकृता का कहना है कि उसके इस अभियान को सबसे बड़ा संबल बड़े भाई अमित बनर्जी और बचपन से ही उसके बेहद करीबी साथी रहे अभिनेता सर्वदमन बनर्जी दे रहे हैं।

    कामकाजी बच्चों को भी दे रही शिक्षा

    अलंकृता बनर्जी के मिशन से कई ऐसे बच्चे भी जुड़े हैं, जो परिस्थितियों के कारण कूड़ा बीनने व ठेली लगाने को मजबूर हैं। ऐसे बच्चों के लिए स्कूल में रोजाना आने की पाबंदी नहीं है।

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    अलंकृता ने बताया कि जब भी समय मिलता है, ऐसे बच्चों के लिए विशेष कक्षाएं आयोजित की जाती हैं। उसकी संस्था ने अब मनसादेवी गुमानीवाला में भी 'बर्ड' नाम से स्कूल खोला है। यहां भी संस्था इस तरह के जरूरतमंद 20 बच्चों को स्कूल पहुंचाने में कामयाब रही है।

    दादा व पिता से मिली प्रेरणा

    अलंकृता बनर्जी को समाज सेवा की प्रेरणा उसके दादा स्वामी नित्यानंद व पिता एएन बनर्जी से मिली। बकौल अलंकृता, 'मेरे दादा स्वामी नित्यानंद रामकृष्ण परमहंस के करीबी थे। कानपुर में रामकृष्ण परमहंस मिशन की स्थापना मेरे ही दादा ने की थी।

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    पिता एएन बनर्जी भी इस संस्थान के चेयरमैन रहे। बचपन से ही संस्था के कार्यों में सहयोग के कारण मेरा मन भी गरीबों की सेवा के लिए समर्पित हो गया। मैंने आठ-नौ साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद की पुस्तकें पढ़ीं। इनसे भी मुझे समाज सेवा को मिशन बनाने की प्रेरणा मिली।

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