फेसबुक पर बने रिश्तों ने बदल दी एक युवती की तकदीर, जानिए कैसे
पौड़ी के चौंदकोट क्षेत्र में 'हलधर' के नाम से प्रसिद्ध ग्राम कुई निवासी नूतन पंत की पटकथा रोमांचित कर देने वाली है। फेसबुक पर बने माता-पिता के रिश्तों ने उसकी तकदीर ही बदल दी ।
पौड़ी गढ़वाल, [गणेश काला] : नूतन (तनु) पंत, जिसका बचपन अभावों में गुजरा और यौवन संघर्षों में। जिससे बालपन में ही पिता का वात्सल्य छिन गया। जिसे पेट की खातिर मां के साथ खेतों में हल जोतना पड़ा। लेकिन, अचानक सोशल मीडिया (फेसबुक) पर ऐसे रिश्ते बने, जिन्होंने उसकी तकदीर ही बदल दी। दुधबोली (मातृभाषा) के प्रति लगाव ने तनु को सोशल मीडिया से जोड़ा और फिर जीवन में रिश्तों की ऐसी मिठास घुली कि हर ओर खुशियां बरसने लगीं। सोशल मीडिया पर मिले नंद-यशोदा जैसे माता-पिता ने तनु का कन्यादान किया तो डोली के कहार बने विभिन्न प्रांतों से जुड़े भाई। इस अनूठी शादी के चर्चे क्षेत्र में हर किसी की जुबान पर हैं।
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पौड़ी जिले के चौंदकोट क्षेत्र (एकेश्वर प्रखंड) में 'हलधर' के नाम से प्रसिद्ध ग्राम कुई निवासी नूतन पंत यानी तनु का विवाह भले ही आम विवाह की तरह हुआ हो, लेकिन उसके कन्यादान की पटकथा रोमांचित कर देने वाली है। गुरुवार को जब तनु का विवाह हुआ तो मंडप में उसका कन्यादान करने को मौजूद थे दो वर्ष पूर्व सोशल मीडिया पर मिले पिता जनाद्र्धन बुड़ाकोटी व माता जशोदा बुड़ाकोटी। सोशल मीडिया से ही मिले विभिन्न प्रांतों के भाईयों ने उसकी डोली उठाई। नूतन का विवाह देहरादून निवासी पूर्व प्रधानाचार्य गिरीश ईष्टवाल के पुत्र के साथ संपन्न हुआ।
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यह शादी क्षेत्र ही नहीं, बल्कि परदेश में भी अपनी छाप छोड़ गई। सोशल मीडिया पर भाई बने नंबूरदार (महाराष्ट्र) के शिक्षक एवं चकबंदी समर्थक रवींद्र कुंवर को बहन के विवाह का निमंत्रण मिला तो वह हफ्तेभर के प्रवास पर गढ़भूमि पहुंच गए।
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साथ ही हिमालय बचाओ आंदोलन के समीर रतूड़ी, लुधियाना निवासी सोबन सिंह महर, गढ़वाल सभा कोटद्वार के अध्यक्ष योगंबर रावत, हिमालयी धरोहर अध्ययन केंद्र के निदेशक डॉ. पद्मेश बुड़ाकोटी, समाजसेवी कवींद्र ईष्टवाल के अलावा केशव डोबरियाल 'मैती' (नैनीताल), सावित्री उनियाल (उत्तरकाशी), विकास ध्यानी (दिल्ली), संजय बुड़ाकोटी (ऋषिकेश) सहित विभिन्न प्रांतों के सखाओं ने विवाह में शिरकत कर अपनी इस लाडली बहन को बाने दिए। साथ मांगल गीत गाकर उसके उज्जवल भविष्य की कामना की। सभी ने अपने संसाधनों से बरातियों की खातिरदारी की और तनु को अपनी बहन-बेटी की तरह ससुराल के लिए विदा किया।
टूटे पंखों से हौसलों की उड़ान
तनु की कर्मठता व जीवटता का पूरा चौंदकोट क्षेत्र कायल है। बचपन में अनायास ही उससे पिता का वात्सल्य छूट गया। दो दुधमुंहे बच्चों के साथ मायके पहुंची मां बिंदी देवी ने जहां अपनी इस बेटी को वीरबाला तीलू रौतेली सा जीवटता का पाठ पढ़ाया, खेतों में हल चलाना भी सिखाया। जीविका के लिए तनु को मां के साथ दूध भी बेचना पड़ा। उसने जीवन की राह के तमाम कांटों को चुनकर भविष्य की इबारत गढ़ी।
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गढ़बोली की उभरती कवयित्री
तनु गढ़बोली की उभरती कवयित्री है और कविताओं ने ही उसे पहचान भी दिलाई। दो साल पहले उसे सोशल मीडिया पर जशोदा व जनाद्र्धन बुडाकोटी (कोटद्वार) जैसे माता-पिता मिले। जो गढ़वाली भाषा के लिए कार्य कर रहे हैं। साथ ही मिला गढ़बोली प्रेमी कई भाईयों का साथ।
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