लड़कियों को न रखें नारी निकेतनों में : हाईकोर्ट
न्यायालय ने कहा कि बालिग लड़कियों को नारी निकेतनों में तब तक न रखा जाए, जब तक उनके पास रहने का और कोई ठौर-ठिकाना न हो।
लखनऊ (जेएनएन)। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मर्जी से शादी करने के कारण नारी निकेतन में रहने को विवश की गई एक युवती को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने यह भी कहा कि बालिग लड़कियों को नारी निकेतनों में तब तक न रखा जाए, जब तक उनके पास रहने का और कोई ठौर-ठिकाना न हो।
न्यायमूर्ति अजय लांबा व न्यायमूर्ति डॉ.विजयलक्ष्मी की खंडपीठ ने यह आदेश देते हुए कहा कि लड़की 19 साल की है और अपना भला बुरा समझने के योग्य है। मामला उन्नाव के अचलगंज थाने का है। इस मामले में लड़की ने अपने पति के जरिए नारी निकेतन में रखने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। लड़की के पिता ने उसके पति के खिलाफ अपहरण करने की एफआइआर दर्ज कराई थी।
युवती ने अपने कलमबंद बयान में कहा था कि उसका किसी ने अपहरण नहीं किया। वह अपने पति को चार-पांच माह पहले से जानती थी और अपने पिता से उससे शादी करने की बात कही, लेकिन घरवाले राजी नही हुए। इसके बाद वह लड़के के साथ चली गई और 18 जनवरी, 2016 को लड़के से विवाह कर लिया। पिता ने उसके पति के खिलाफ 28 मई को झूठी रिपोर्ट लिखा दी। विवेचना के दौरान निचली अदालत के आदेश पर उसे जून में नारी निकेतन भेज दिया गया था।
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