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    आम बजट में खेती को भरपूर तरजीह मिलने की संभावना

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Wed, 28 Dec 2016 06:12 AM (IST)

    अगले आम बजट में जलवायु परिवर्तन से निपटने और फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए सरकार का अनुसंधान व विकास पर सबसे ज्यादा जोर होगा।

    नई दिल्ली (सुरेंद्र प्रसाद सिंह)। जलवायु परिवर्तन के जंग से खेती को लड़ने लायक बनाने की कोशिश में सरकार जुट गई है। किसानों की आय को दोगुना करने और खाद्य सुरक्षा की राह में जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा रोड़ा बनकर खड़ा हो गया है, जिसका असर साल दर साल दिखाई देने लगा है। आगामी वित्त वर्ष के आम बजट में इस चुनौती से निपटने और फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए सरकार का अनुसंधान व विकास पर सबसे ज्यादा जोर होगा। इस मद में आठ सौ करोड़ रुपये के बजट आवंटन की संभावना है।

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    कृषि की सेहत सुधारने के लिए ही सरकार ने पिछले सालों के बजट में कृषि उपकर लगाया था, जिसके नतीजे बेहद उत्साहजनक रहे हैं। खेती को लाभ का सौदा बनाने और खेतिहर की आमदनी को दोगुना करने की रणनीति तैयार करने में सरकार जुट गई है। खेती की प्रमुख चुनौती जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सरकारी खजाने में पर्याप्त धनराशि उपलब्ध है। मौसम के बदलते मिजाज को सरकार ने समय से भांप लिया है, जिससे निपटने की तैयारी का प्रस्ताव आगामी वित्त वर्ष के आम बजट में देखने को मिल सकता है।

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    खेती के विभिन्न आयामों को पुख्ता बनाने की दिशा में जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ते तापमान से सबसे अधिक खतरा है। गरमी बढ़ने से खाद्यान्न की पैदावार के प्रभावित होने की संभावना है, जिससे वैज्ञानिकों ने सरकार को पहले ही आगाह कर दिया है। इसका असर लघु व सीमांत किसानों के साथ मछुआरों और पशु पालक पर पड़ेगा। गेहूं व धान की फसल की पैदावार घटी तो महंगे आयात पर गुजारा करने मजबूरी पैदा हो सकती है। देश की अर्थव्यवस्था पर इसके नकारात्मक असर पड़ेगा।

    जलवायु परिवर्तन करने वाले प्रमुख तत्व कार्बन उत्सर्जन में खेती का योगदान 18 फीसद तक है। इसमें धान की खेती, फर्टिलाइजर का अंधाधुंध प्रयोग और फसलों की पराली जलाना प्रमुख है। केंद्र सरकार ने इसे रोकने के लिए मिट्टी की जांच से लेकर प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, जैविक खेती, कृषि वानिकी, फसल अवशेष प्रबंधन और खादों का संतुलित प्रयोग आदि उपाय शुरु किये हैं।

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    दरअसल, जलवायु परिवर्तन का विपरीत असर पैदावार और उपज की गुणवत्ता पर सीधे तौर पर पड़ेगा। लेकिन मिट्टी की उर्वरता, पशुधन व मास्ति्यकी, जल संसाधन और फसल के स्वास्थ्य पर परोक्ष प्रभाव पड़ रहा है। इनसे बचने के उपाय के रूप में सबसे ज्यादा जोर तापमान रोधी बीज, वैज्ञानिक सलाह के अनुरूप से ही खादों का प्रयोग, सिंचाई की संतुलित व्यवस्था, जैविक खेती और पशु आहार प्रबंधन पर दिया जायेगा।

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