बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन के दौरान चुनाव आयोग के प्रतिनिधियों ऐसे संकेत मिलना गंभीर चिंता का विषय है कि राज्य में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के लोग भी मतदाता बन गए हैं। यह केवल चुनाव प्रक्रिया से ही खिलवाड़ नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरनाक बात है। चिंता की बात यह है कि ऐसे लोगों की संख्या लाखों में हो सकती है।

नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के लोगों ने आधार, राशन कार्ड जैसे दस्तावेज भी हासिल कर रखे हैं। इसके बाद तो उन्हें मतदाता के रूप में दर्ज होने से रोका ही नहीं जा सकता था। यह अच्छा हुआ कि चुनाव आयोग ने तय किया कि सघन पुनरीक्षण कर ऐसे लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए जाएंगे। यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है। इतना ही अनिवार्य यह भी है कि चुनाव आयोग ने देश भर में मतदाता सूची के सत्यापन का जो अभियान चलाने का निर्णय लिया, उस पर अडिग रहे।

यह स्पष्ट ही है कि विपक्षी दल ऐसे किसी अभियान पर हायतौबा मचाएंगे और चुनाव आयोग के मोदी सरकार के इशारे पर काम करने एवं लोकतंत्र से खिलवाड़ करने के बेतुके आरोप लगाएंगे। बिहार के मामले में चुनाव आयोग के फैसले पर आपत्ति जताकर विपक्षी दलों ने खुद को बेनकाब कर लिया है।

वे लोगों को बरगलाने के लिए कुछ भी कहें, सच यह है कि उन्होंने यह जता दिया कि वे पुरानी और खामियों से लैस मतदाता सूचियों के सहारे चुनाव कराना चाहते हैं। पता नहीं कैसे और क्यों वे इस नतीजे पर पहुंच गए कि जो वैध मतदाता नहीं हैं, वे उनके वोटर ही हैं? देश भर में मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण के क्रम में बिहार जैसे मामले अन्य राज्यों में भी देखने को मिल सकते हैं।

चुनाव आयोग पड़ोसी देशों और विशेष रूप से बांग्लादेश, म्यांमार आदि से अवैध रूप से आए और भारत में बस गए एवं मतदाता बन गए लोगों के नाम तो मतदाता सूची से हटा सकता है, लेकिन ऐसे लोगों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई केंद्रीय गृह मंत्रालय ही कर सकता है। उसे यह काम प्राथमिकता के आधार पर करना चाहिए।

भारत कोई धर्मशाला नहीं कि दूसरे देशों से लोग घुसपैठियों अथवा शरणार्थियों के रूप में आएं और फिर अनुचित तरीके से तरह-तरह के दस्तावेज हासिल कर यहां के मतदाता भी बन जाएं। ऐसे तमाम लोग पश्चिम बंगाल, असम आदि राज्यों में मतदाता अर्थात भारतीय नगरिक बन भी चुके हैं।

यह भी किसी से छिपा नहीं कि बांग्लादेश और म्यांमार से घुसपैठ हो रही है। इस घुसपैठ पर कई राज्य सरकारें न केवल आंखें मूंदे हुई हैं, बल्कि घुसपैठियों को अपना वोटर बनाने पर आमादा हैं। यदि केंद्र सरकार राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर-एनआरसी लागू नहीं करती तो भी उसे घुसपैठ के खिलाफ सख्त होना ही होगा।