साइबर धोखाधड़ी पर नियंत्रण पाने के लिए केंद्र सरकार ने सिम विक्रेताओं का पंजीयन करने और उनके सत्यापन को अनिवार्य बनाने के साथ-साथ थोक में सिम बेचने पर पाबंदी लगाने के जो कदम उठाए, वे आवश्यक हो गए थे। इन कदमों को आनलाइन ठगी में लिप्त तत्वों पर एक प्रभावी प्रहार माना जा रहा है, लेकिन केंद्र के साथ राज्य सरकारों को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि साइबर अपराधी लोगों को ठगने के लिए नित नए तरीके अपना रहे हैं। अब तो वे तकनीक का सहारा लेकर व्यक्ति विशेष की आवाज में उनके स्वजनों को ठगने का भी काम करने लगे हैं।

एक तथ्य यह भी है कि साइबर अपराधियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। कुछ समय पहले तक झारखंड का जामताड़ा इलाका ही साइबर ठगों के लिए कुख्यात था, लेकिन अब देश के अनेक हिस्सों में जामताड़ा बन गए हैं। इनमें मेवात का इलाका भी है। पिछले दिनों नूंह में जो भीषण सांप्रदायिक हिंसा हुई, उस दौरान एक साइबर थाने को निशाना बनाने के पीछे साइबर ठगों का ही हाथ माना जा रहा है।

यह ठीक है कि हाल के वर्षों में पुलिस और अन्य एजेंसियों को साइबर अपराध से निपटने के लिए सक्षम बनाया जा रहा है, लेकिन अभी उन्हें और समर्थ बनाने की आवश्यकता है, क्योंकि साइबर ठगी के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। ये ठग जितने शातिर हैं, उतने ही दुस्साहसी भी। वे फर्जी काल सेंटर तक चला रहे हैं।

साइबर ठगी के मामलों में यह देखने में आया है कि धोखाधड़ी करने वालों की मिलीभगत सिम विक्रेताओं से होती है। सरकार ने ऐसे 67 हजार सिम डीलरों को काली सूची में डाला है। अच्छा हो कि इसके साथ ही उन्हें दंड का भी भागीदार बनाया जाए, क्योंकि एक आंकड़े के अनुसार सिम डीलर करीब बीस प्रतिशत सिम साइबर ठगों को बेचते हैं। साइबर ठगी किस तेजी से बढ़ रही है, इसका पता इससे भी चलता है कि अगस्त 2019 में शुरू किए गए डिजिटल अपराध पोर्टल पर 23 लाख से अधिक साइबर ठगी के मामले दर्ज कराए जा चुके हैं।

एक संसदीय समिति ने भी हाल में प्रस्तुत की गई अपनी रिपोर्ट में यह चिंताजनक तथ्य सामने रखा है कि केवल एक साल में ऐसे अपराधों का आंकड़ा ढाई गुना से अधिक बढ़ गया है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि हाल के वर्षों में वित्तीय लेन-देन के लिए लोगों की जिस तरह डिजिटल तौर-तरीकों पर निर्भरता बढ़ी है, उससे उन पर साइबर ठगी का शिकार होने का जोखिम भी बढ़ा है। स्पष्ट है कि एक ओर जहां साइबर ठगों पर सख्ती करने की आवश्यकता है वहीं आम लोगों को जागरूक करने की भी, क्योंकि अनेक लोग लालच अथवा अज्ञानतावश या फिर जरूरी जानकारी के अभाव के चलते साइबर ठगी का शिकार बन जाते है।