जागरण संपादकीय: न्याय में देरी, सुप्रीम कोर्ट ने भी जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने आरोप तय होने में देरी का संज्ञान तब लिया, जब उसके समक्ष एक ऐसा प्रकरण आया, जिसमें आरोपित के एक साल से हिरासत में होने के बाद भी उसके मामले में आरोप तय नहीं किए जा सके हैं। इस प्रकरण पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह जिला अदालतों से रिपोर्ट की प्रतीक्षा नहीं करेगा, बल्कि सीधे संपूर्ण भारत के लिए दिशानिर्देश जारी करेगा।
HighLights
सुप्रीम कोर्ट ने जताई आरोप तय करने में देरी पर चिंता
दिशानिर्देश जारी करने के दिए संकेत
न्याय में देरी से देश का विकास बाधित
आपराधिक मामलों में आरोप पत्र दाखिल होने के बाद आरोप तय होने में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताते हुए इस संदर्भ में देश भर के लिए दिशानिर्देश तय करने के संकेत दिए। इसे लेकर वह गंभीर है, इसका पता इससे चलता है कि उसने अटार्नी जनरल एवं सालिसिटर जनरल से मदद मांगी और एक वरिष्ठ वकील की न्यायमित्र के रूप में नियुक्ति भी कर दी।
बहुत संभव है कि वह आरोप तय करने के मामले में कोई दिशानिर्देश भी सुना दे, लेकिन क्या इतने मात्र से समस्या का समाधान हो जाएगा? उसे इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि आरोप तय होने में देरी भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 251(बी) के तहत दिए गए इस स्पष्ट प्रविधान के बावजूद हो रही है कि जिन मामलों की सुनवाई केवल सत्र न्यायालय द्वारा की जानी है, उनमें पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर ऐसा कर दिया जाना चाहिए।
आखिर जब आरोप तय करने की समयसीमा को लेकर पहले ही व्यवस्था बनी हुई है, तब फिर एक और व्यवस्था देने यानी सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश बनाने से समस्या का समाधान कैसे हो जाएगा? अच्छा होगा कि वह दिशानिर्देश बनाने के पहले उन कारणों का निवारण करे, जिनके चलते आरोप तय होने में देर होती है। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो इसकी आशंका है कि उसके दिशानिर्देशों के बाद आरोप तो एक समयसीमा में तय हो जाएं, पर मुकदमों के निपटारे में तब भी विलंब होता रहे।
सुप्रीम कोर्ट ने आरोप तय होने में देरी का संज्ञान तब लिया, जब उसके समक्ष एक ऐसा प्रकरण आया, जिसमें आरोपित के एक साल से हिरासत में होने के बाद भी उसके मामले में आरोप तय नहीं किए जा सके हैं। इस प्रकरण पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह जिला अदालतों से रिपोर्ट की प्रतीक्षा नहीं करेगा, बल्कि सीधे संपूर्ण भारत के लिए दिशानिर्देश जारी करेगा।
उसे ऐसा करने का अधिकार है, लेकिन क्या जिला अदालतों से यह जानना आवश्यक नहीं कि आरोप तय होने में विलंब क्यों होता है? सुप्रीम कोर्ट को उन कारणों से भी परिचित होने की आवश्यकता है, जिनके चलते पहले आरोप पत्र दाखिल होने में देरी होती है और फिर आरोप तय होने में। उसे इससे भी अवगत होना चाहिए कि ये दोनों काम हो जाने पर भी मुकदमों का निपटारा समय पर नहीं होता।
ऐसा केवल निचली अदालतों ही नहीं, बल्कि उच्चतर अदालतों में भी होता है। ऐसा जिन कारणों से होता है, उनमें से एक न्यायाधीशों और वकीलों की कार्यप्रणाली भी है। तारीख पर तारीख के सिलसिले को कायम करने वाली इसी कार्यप्रणाली के चलते समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा है और लंबित मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट को इसका आभास होना चाहिए कि न्याय में देरी से देश का विकास बाधित हो रहा है।













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