आदित्य सिन्हा। इस महीने की शुरुआत में चीनी वाणिज्य मंत्रालय की एक अधिसूचना से दुनिया में हड़कंप सा मचा। इसके जरिये अस्तित्व में आने वाला नियम विश्व व्यापार और उत्पादन के तौर-तरीके बदल सकता है। यह नियम रेयर अर्थ मैटेरियल कहे जाने तत्वों, परमानेंट मैग्नेट्स और संबंधित तकनीकों के निर्यातों पर व्यापक नियंत्रण लगाता है। इस प्रविधान को समझें तो किसी भी कंपनी का उत्पाद जिसमें चीनी-प्रसंस्कृत रेयर अर्थ का 0.1 प्रतिशत हिस्सा भी शामिल है, उसे उसकी बिक्री या निर्यात से पहले बीजिंग की स्वीकृति प्राप्त करनी होगी।

सैन्य उपयोग के लिए निर्यात को तो सैद्धांतिक रूप से प्रतिबंधित ही कर दिया गया है, जबकि सेमीकंडक्टर्स और एआइ से संबंधित मामलों में कड़ी निगरानी रखी जाएगी। सतही तौर पर तो चीन की यह पहल यह एक संकीर्ण व्यापार नियम जैसी प्रतीत हो सकती है, लेकिन वास्तव में यह वैश्विक आर्थिक शक्ति के संतुलन में किसी निर्णायक पड़ाव से कम नहीं है।

रेयर अर्थ असल में 17 धातुओं का एक समूह है, जिनकी लड़ाकू विमान, पवन ऊर्जा टरबाइन, इलेक्ट्रिक वाहन, स्मार्टफोन और चिकित्सा स्कैनर जैसे तमाम आधुनिक उत्पादों के निर्माण में अहम भूमिका होती है। मूल रूप से इनकी उपलब्धता उतनी दुर्लभ नहीं, जितना जटिल और महंगा इन्हें परिष्कृत कर उपयोग में लाने की पूरी प्रक्रिया है। यह पर्यावरण को भी भारी क्षति पहुंचाती है। तीन दशकों के दौरान चीन ने इन सामग्रियों के खनन, पृथक्करण और प्रसंस्करण के लिए दुनिया का सर्वोत्तम तंत्र स्थापित कर लिया है।

रेयर अर्थ के करीब 70 प्रतिशत खनन और 90 प्रतिशत परिष्करण में चीन की हिस्सेदारी से इस मोर्चे पर उसका दबदबा समझा सकता है।
इस नए नियम के साथ चीन इस कोशिश में लगा है कि वह अपने औद्योगिक प्रभुत्व को रणनीतिक नियंत्रण के कानूनी उपकरण में बदल सके। पहली बार वह अमेरिकी नियमों के समान एक ऐसा ढांचा बना रहा है। अमेरिका भी अपने प्रभुत्व वाले उत्पादों की बिक्री एवं निर्यात के मामले में मनमाने प्रविधान करता आया है। बीजिंग ने इसे इस रूप में और विस्तार दे दिया है कि अगर उसकी आपूर्ति वाले रेयर अर्थ का किसी तैयार उत्पाद में लेशमात्र भी उपयोग होता है तो उसके बारे में निर्णय का अधिकार उसका ही होगा। यह देशों की आर्थिक संप्रभुता को चुनौती देने वाला है।

यह चीन की एक बड़ी रणनीतिक योजना है, जिसमें कानून, नियम और लाइसेंसिंग का उपयोग भू-राजनीतिक शक्ति के उपकरणों के रूप में किया जाता है। एक समय अमेरिका ने चीन के सेमीकंडक्टर उद्योग के खिलाफ अतिरिक्त क्षेत्रीय व्यापार नियंत्रणों का उपयोग किया था। बीजिंग अब उन तरीकों को दोहरा रहा है। प्रत्येक पक्ष अपने कार्यों को ‘रक्षात्मक’ के रूप में सही ठहराता है, लेकिन दोनों आर्थिक प्रतिशोध का ही प्रतीक हैं।

चीन के इस कदम से कंपनियों को अब जटिल कागजी कार्रवाई, स्थानीय मध्यस्थों और स्वीकृति से जुड़ी शृंखलाओं के माध्यम से कोई तोड़ निकालना होगा। इसमें कई महीनों का समय भी लग सकता है। औपचारिक स्वीकृति के बिना आर्डर प्रभावित हो सकते हैं।

मानो इतना ही पर्याप्त नहीं। चीन ने अपने पेशेवरों की रेयर अर्थ से जुड़ी विदेशी परियोजनाओं में सहभागिता पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। इससे तकनीकी ज्ञान का हस्तांतरण सीमित हो गया है। इसने डाटा, बैटरियों और औद्योगिक मानकों पर निगरानी भी बढ़ा दी है। स्वाभाविक है कि कीमतों का परिदृश्य भी इस परिवर्तन से प्रभावित होगा। इलेक्ट्रिक मोटर्स में उपयोग होने वाले प्रमुख रेयर अर्थ नियोडिमियम और डाइसप्रोसियम की कीमतें बढ़ गई हैं। निर्माता गैर-चीनी आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अमेरिकी और आस्ट्रेलियाई विकल्पों की निर्बाध आपूर्ति में अभी कई साल लग सकते हैं। परिणामस्वरूप स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं से लेकर इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण की प्रक्रिया धीमी पड़ सकती है। इसके पीछे मांग में कमी नहीं, बल्कि कच्चे माल की बाधाएं अधिक जिम्मेदार होंगी। ऐसा नहीं कि इसमें चीन के लिए कोई जोखिम नहीं हैं। उसके ऐसे कड़े नियंत्रण से वैश्विक खरीदार अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और भारत में विकल्प खोजने में जुटेंगे। याद रहे कि कड़ी लाइसेंसिंग खुद अपने उद्योगों में नवाचार को हतोत्साहित करती है।

वर्तमान परिस्थितियां दुनिया को दो अलग प्रणालियों में विभाजित कर रही है। एक के केंद्र में चीन है, जो खनन, परिष्करण और उत्पादन को एक ही राज्य-नियंत्रित ढांचे में एकीकृत करता है। दूसरी प्रणाली के केंद्र में अमेरिका है, जहां सब्सिडी और औद्योगिक नीति के माध्यम से क्षमताओं को फिर से मजबूत बनाने का प्रयास किया जा रहा है। यह दोहराव लचीलापन तो बढ़ा सकता है, लेकिन इसमें लागत बढ़ोतरी का पहलू भी शामिल है। इतना ही नहीं, इससे स्वच्छ ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और आपूर्ति शृंखला विविधीकरण की दिशा में हो रही प्रगति भी धीमी पड़ सकती है। अन्य देशों के लिए इसमें जोखिम और अवसर दोनों ही विद्यमान हैं। ये देश वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता के रूप में नए निवेश को आकर्षित तो कर सकते हैं, लेकिन उन्हें प्रतिस्पर्धी कानूनी प्रणालियों और राजनीतिक दबावों के मोर्चे पर कोई कारगर युक्ति निकालनी होगी।


चीन का दृष्टिकोण सुनियोजित प्रतीत होने के बावजूद अस्पष्ट है। वहीं, अमेरिकी कार्रवाइयों में पारदर्शिता की झलक के साथ ही उनकी प्रकृति अस्थिर एवं अनियमित है। दोनों ही देश अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आर्थिक विकल्पों को हथियार बनाने में लगे हैं, लेकिन शायद ही किसी को उनके दीर्घकालिक परिणामों की कोई परवाह है। बीजिंग और वाशिंगटन दोनों को यह समझना होगा कि बेलगाम प्रभुत्व की स्थिति बहुत नाजुक होती है। यह अपने ही साझेदारों को दूर करके अंतत: स्वयं को ही कमजोर करती है। स्मरण रहे कि शक्ति केवल संसाधनों के स्वामित्व में नहीं, बल्कि उन्हें विवेकपूर्ण ढंग से संचालित करने की क्षमता में निहित है। कानून और प्रभाव के इस नए युग में वही राष्ट्र इस सदी की नियति निर्धारित करेंगे, जो संयम, पारदर्शिता और समन्वय का परिचय देंगे।

(लेखक लोक-नीति विश्लेषक हैं)