जागरण संपादकीय: जॉर्ज सोरोस का साया, हंगामे की भेंट चढ़ गई संसद की कार्यवाही
कांग्रेस को यह समझना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी की कारोबारी गौतम अदाणी से करीबी और सोनिया-राहुल गांधी की जार्ज सोरोस से निकटता एक जैसी बात नहीं है। जार्ज सोरोस कोई भारतीय कारोबारी नहीं हैं। वह केवल मोदी सरकार से ही बैर नहीं रखते। उन्हें अन्य कई देशों की सरकारें भी खलनायक मानती हैं। उनके भारत विरोधी रवैये के कारण विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी उन्हें खरी-खरी सुना चुके हैं।
एक और दिन संसद की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ गई। इस हंगामे का कारण वही अमेरिकी निवेशक जार्ज सोरोस रहे, जिन्हें लेकर पहले भी संसद के भीतर और बाहर पक्ष-विपक्ष के बीच तकरार हो चुकी है। पहले भाजपा ने यह आरोप लगाया था कि राहुल गांधी जार्ज सोरोस के भारत विरोधी एजेंडे को न केवल आगे बढ़ा रहे हैं, बल्कि उनके करीबियों से मेल-मुलाकात भी करते रहे हैं।
अब भाजपा का आरोप यह है कि सोनिया गांधी का संबंध उस फोरम आफ डेमोक्रेटिक लीडर्स इन एशिया पैसिफिक फाउंडेशन से है, जिसे जार्ज सोरोस से वित्तीय मदद मिलती है। भाजपा की मानें तो सोनिया गांधी उक्त फाउंडेशन की सह अध्यक्ष हैं और यह मंच इस मत का है कि कश्मीर को भारत से अलग क्षेत्र माना जाना चाहिए। यह तो वही खतरनाक विचार है, जो पाकिस्तान का है।
आखिर भारत की एकता-अखंडता के खिलाफ ऐसे विचार रखने वाले किसी संगठन से कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष को कोई लेना-देना क्यों होना चाहिए? भाजपा के आरोपों पर कांग्रेस का क्रोधित होना समझ आता है, लेकिन इससे बात बनने वाली नहीं है। आखिर उसे वस्तुस्थिति स्पष्ट करने में क्या समस्या है?
कांग्रेस के साथ सत्तापक्ष से भी यह अपेक्षित है कि वह जार्ज सोरोस को लेकर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने तक ही सीमित न रहे, बल्कि यह भी उजागर करे कि यह अमेरिकी निवेशक भारतीय हितों के खिलाफ किस तरह सक्रिय है। ऐसा केवल इसलिए नहीं किया जाना चाहिए कि जार्ज सोरोस का ओपेन सोसायटी फाउंडेशन ओसीसीआरपी नामक उस अमेरिकी मीडिया समूह को पैसा देता है, जिसने अदाणी समूह के खिलाफ अभियान छेड़ा था, बल्कि इसलिए भी है कि बांग्लादेश में उथलपुथल के पीछे भी उनका हाथ नजर आ रहा है।
जो जार्ज सोरोस बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद युनूस को अपना मित्र बताते हैं, उनके एक करीबी ने इसी रविवार को उनसे ढाका में मुलाकात की थी। यह मुलाकात भारतीय विदेश सचिव की बांग्लादेश जाने के पहले हुई। क्या यह महज एक दुर्योग है? सच जो भी हो, बांग्लादेश में तख्तापलट के पीछे अमेरिकी एजेंसियों की भूमिका किसी से छिपी नहीं।
तथ्य यह भी है कि भारत की तमाम चिंताओं के बाद भी बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों का दमन थम नहीं रहा है। इससे भी चिंताजनक यह है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार हिंदुओं की सुरक्षा का आश्वासन तो दे रही है, लेकिन उस पर अमल करने में आनाकानी कर रही है।
कांग्रेस को यह समझना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी की कारोबारी गौतम अदाणी से करीबी और सोनिया-राहुल गांधी की जार्ज सोरोस से निकटता एक जैसी बात नहीं है। जार्ज सोरोस कोई भारतीय कारोबारी नहीं हैं। वह केवल मोदी सरकार से ही बैर नहीं रखते। उन्हें अन्य कई देशों की सरकारें भी खलनायक मानती हैं। उनके भारत विरोधी रवैये के कारण विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी उन्हें खरी-खरी सुना चुके हैं।
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