जागरण संपादकीय: मुर्शिदाबाद के शरणार्थी, ममता सरकार को बदलना होगा रवैया
ममता सरकार ने न तो तब पीड़ितों के प्रति हमदर्दी दिखाई थी और न ही अब दिखा रही है। इसी कारण इसमें संदेह है कि मुर्शिदाबाद के जो लोग मालदा में शरणार्थी जीवन बिताने को विवश हैं उन्हें न्याय मिलेगा। भले ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग ने मुर्शिदाबाद हिंसा का संज्ञान लिया हो लेकिन जब तक ममता सरकार का रवैया नहीं बदलता कुछ होने की उम्मीद नहीं।
यह अच्छा हुआ कि बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून विरोधियों की भीषण हिंसा के शिकार लोगों से मिलने मालदा पहुंचे। उन्होंने मालदा जाने का निर्णय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस आग्रह के बाद भी किया कि वह कुछ समय तक रुक जाएं, क्योंकि विश्वास बहाली के उपाय किए जा रहे हैं।
क्या विश्वास बहाली के लिए सबसे उपयुक्त यह नहीं होता कि स्वयं ममता मुर्शिदाबाद से जान बचाकर मालदा भागे लोगों से मिलने और उन्हें दिलासा देने के लिए वहां जातीं? समझना कठिन है कि उन्होंने या फिर उनके किसी मंत्री ने भी इसकी जरूरत क्यों नहीं समझीं? कहीं इसलिए तो नहीं कि मुस्लिम वोट बैंक नाराज न हो जाए?
यह ममता सरकार के माथे पर एक कलंक है कि उसके कुछ नागरिक आतंक और भय के चलते अपना घर-बार छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। क्या इससे शर्मनाक और कुछ हो सकता है कि लोग अपने ही देश में शरणार्थी बन गए और इसका कोई ठिकाना नहीं कि वे अपने घरों को लौट सकेंगे या नहीं?
इस अनिश्चितता का कारण यह है कि ममता सरकार वक्फ विरोध के नाम पर उत्पात मचाने वालों के दुस्साहस का दमन करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं दिखी। मुर्शिदाबाद से जो लोग मालदा भागे, उनका दोष इतना था कि वे हिंदू थे। उनका वक्फ कानून से कोई लेना-देना नहीं था। वे न तो इस कानून से परिचित थे और न ही उन्होंने उसके बारे में अपनी राय व्यक्त की थी।
इसके बाद भी वक्फ कानून का विरोध करने निकली भीड़ उन पर टूट पड़ी। उसने उनके घरों में आग लगाई और तोड़फोड़ के साथ लूटपाट भी की। इसी दौरान इस हिंसक भीड़ ने दो लोगों की घर से खींचकर हत्या कर दी। ये पिता-पुत्र देवी-देवताओं की प्रतिमा बनाते थे। लगता है कि हत्यारी भीड़ ने इसे ही इनका अपराध मान लिया।
इसकी भी अनदेखी न की जाए कि इस दौरान मंदिरों में तोड़फोड़ की गई। साफ है कि वक्फ कानून के विरोध के बहाने हिंदू घृणा का वीभत्स प्रदर्शन किया गया। इसके लिए ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति भी जिम्मेदार है। यह पहली बार नहीं, जब बंगाल में जंगलराज जैसे हालात के चलते लोग पलायन के लिए मजबूर हुए हों।
इसके पहले 2021 में विधानसभा चुनाव बाद की हिंसा में कुछ लोगों को भागकर असम जाना पड़ा था। ममता सरकार ने न तो तब पीड़ितों के प्रति हमदर्दी दिखाई थी और न ही अब दिखा रही है। इसी कारण इसमें संदेह है कि मुर्शिदाबाद के जो लोग मालदा में शरणार्थी जीवन बिताने को विवश हैं, उन्हें न्याय मिलेगा। भले ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग ने मुर्शिदाबाद हिंसा का संज्ञान लिया हो, लेकिन जब तक ममता सरकार का रवैया नहीं बदलता, कुछ होने की उम्मीद नहीं।










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