अमेरिका में चार देशों के संगठन क्वाड के विदेश मंत्रियों की बैठक में यह तो कहा गया कि पहलगाम में आतंकी हमले के दोषियों को न्याय के कठघरे में खड़ा किया जाए, लेकिन सीधे तौर पर पाकिस्तान का नाम लेने से बचा गया। स्पष्ट है कि अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान के विदेश मंत्रियों के रवैये से भारत संतुष्ट नहीं हो सकता। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि अमेरिका की पहल पर पाकिस्तान का नाम लेने से बचा गया।

आखिर उसकी ओर संकेत करने का क्या अर्थ? क्या पाकिस्तान क्वाड के सदस्य देशों से भी बड़ा देश है अथवा ऐसी कोई आर्थिक एवं सैन्य ताकत है, जिससे आतंकी संगठनों को पालने पोसने की उसकी नीति की आलोचना-निंदा करने में संकोच किया जाए? इस संकोच के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के स्वार्थ जान पड़ते हैं।

उन्होंने पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ आपरेशन सिंदूर के तहत की गई भारत की सैन्य कार्रवाई पर जिस तरह प्रतिकूल रवैया अपनाया, उससे भारत को तो हैरानी हुई ही, स्वयं अमेरिका की आतंकवाद के प्रति दोहरी नीति नए सिरे से उजागर हुई। यह साफ है कि अमेरिकी राष्ट्रपति पाकिस्तान के आतंकी चेहरे की अनदेखी कर रहे हैं। उन्होंने पाकिस्तान को प्रिय और महान देश बताने के साथ पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष की तारीफ भी की। इसके कारण कुछ भी हों, भारत को आतंकवाद के मामले में अमेरिका और विशेष रूप से राष्ट्रपति ट्रंप की नीति से सावधान रहना चाहिए।

भारत को इसके लिए निरंतर प्रयत्न करने होंगे कि क्वाड जिन उद्देश्यों के लिए गठित किया गया, उनके अनुरूप ही कार्य करे और ऐसा करते हुए सभी सदस्य देशों के हित की चिंता करे। भारत इस पर संतोष कर सकता है कि क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक में आतंकवाद के अतिरिक्त जिन अन्य विषयों पर चर्चा हुई, वे उसके हितों को रेखांकित करने और उसकी चिंताओं को अभिव्यक्ति देने वाले हैं। कुछ समय बाद क्वाड शिखर सम्मेलन होना है।

भारत को अभी से इस बैठक की तैयारी करनी होगी। इसी के साथ उसे अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों और विशेष रूप से चीन की भी सदस्यता वाले एससीओ और ब्रिक्स जैसे संगठनों में अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए सक्रिय रहना होगा। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में वैश्विक हितों के साथ अपने हितों की चिंता करनी ही होती है।

यह शुभ संकेत है कि पिछले कुछ समय से भारत अपने हितों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी मुखर हुआ है। यह मुखरता इसलिए कायम रहनी चाहिए, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र केवल बातें करने का मंच बनकर रह गया है। भारत को आतंकवाद के मामले में चीन, अमेरिका आदि देशों के दोहरे रवैये को बार-बार रेखांकित करना चाहिए।