यह दुखद है कि बोरवेल में गिरे एक और बच्चे ने जान गंवा दी। इस बार यह हादसा मध्य प्रदेश के गुना जिले के एक गांव में हुआ। यहां खुले बोरवेल में गिरे नौ वर्ष के एक बच्चे को निकालने के तमाम प्रयासों के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका। इस तरह के हादसे देश के विभिन्न हिस्सों में रह-रहकर होते ही रहते हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि ज्यादातर मामलों में बच्चों को बचाने में नाकामी ही हाथ लगती है।

इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि बोरवेल में गिरे बच्चे की मौत पर राज्य सरकार ने गंभीरता का परिचय दिया है, क्योंकि इस तरह की त्रासद घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। यह एक तथ्य है कि पिछले दो वर्षों में मध्य प्रदेश में सात बच्चे बोरवेल में गिरकर अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं।

इस नतीजे पर पहुंचने के पर्याप्त कारण हैं कि जो बोरवेल बेकार हो जाते हैं और खुले छोड़ दिए जाते हैं, उन्हें ढकने की कहीं कोई कोशिश नहीं की जाती-न तो बोरवेल खोदने वालों की ओर से और न ही शासन-प्रशासन की ओर से।

कुछ मामलों में जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होने के बावजूद स्थितियों में सुधार नहीं हो रहा है। यह सिलसिला देश भर में देखने को मिल रहा है। चंद दिनों पहले राजस्थान के दो जिलों में इस तरह की घटनाएं घट चुकी हैं।

जब कोई बच्चा बोरवेल में गिर जाता है तो उसे बचाने के लिए शासन-प्रशासन की ओर से युद्ध स्तर पर उपाय किए जाते हैं। समझना कठिन है कि ऐसे कोई उपाय खुले छोड़ दिए गए बोरवेल को ढकने के लिए क्यों नहीं किए जाते।

दुर्भाग्य से ऐसा उन राज्यों में भी नहीं किया जाता जहां इस तरह की घटनाएं बड़े पैमाने पर होती हैं। यह ठीक नहीं कि शासन-प्रशासन की ओर से ऐसे प्रयास नहीं हो रहे जिससे खुले पड़े बोरवेल बच्चों के लिए खतरा न बनने पाएं।

ऐसे प्रयास इसके बावजूद नहीं किए जा रहे हैं कि 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे हादसों को रोकने के लिए सभी राज्यों को व्यापक निर्देश दिए थे। इन निर्देशों में कहा गया था कि बोरवेल, ट्यूबवेल अथवा बेकार कुओं को ढकने के कदम उठाए जाएं और कोई बोरवेल अथवा ट्यूबवेल खुला न पड़ा रहे, इसके लिए उन्हें खोदने वाली एजेंसियों को जवाबदेह बनाया जाए।

सुप्रीम कोर्ट की अनदेखी के लिए राज्य सरकारों और उनकी एजेंसियों को कठघरे में खड़ा किया ही जाना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही आम लोगों को भी चेतना चाहिए। आखिर ऐसा तो है नहीं कि जहां कहीं बोरवेल खुले पड़े रहते हैं, वहां के लोग उनसे अनभिज्ञ होते हों। किसी न किसी स्तर पर समाज को भी उन समस्याओं के प्रति चेतने और संवेदनशीलता दिखाने की जरूरत है जिनका समाधान कहीं अधिक आसानी से हो सकता है।