भारत की महत्ता, अमेरिका से पाकिस्तान के साथ चीन पर भी निशाना
भारत के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय प्रभाव से चीन किस तरह खीझ रहा है इसका पता इससे भी चलता है कि उसने शर्म-संकोच त्यागकर ठीक उस समय मुंबई हमले की साजिश में शामिल लश्कर के आतंकी सरगना साजिद मीर की ढाल बनना पसंद किया जिस वक्त भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका में थे। यह चीन की हताशा और निर्लज्जता का चरम था।
अमेरिका की राजकीय यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री का व्हाइट हाउस में जैसा भव्य स्वागत हुआ और अमेरिकी संसद में उनके संबोधन को जिस तरह सराहा गया, उससे यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है तो यही कि दोनों देशों के संबंध एक नए युग में पहुंच रहे हैं।
वैसे तो दोनों देशों के संबंध एक लंबे समय से प्रगाढ़ हो रहे हैं, लेकिन इसके पहले किसी भारतीय प्रधानमंत्री को अमेरिका में शायद ही इतनी महत्ता मिली हो। इस महत्ता को रेखांकित कर रहे हैं रक्षा, तकनीक, उद्योग आदि क्षेत्र में हुए वे अनेक महत्वपूर्ण समझौते, जो भारत और अमेरिका के बीच हुए। इनमें कुछ समझौते ऐसे हैं, जिनके लिए भारत दशकों से प्रयासरत था, जैसे कि जीई एयरोस्पेस और हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड के बीच युद्धक विमानों के इंजन एफ 414 को मिलकर भारत में बनाने का समझौता। इस तरह के समझौते दोनों देशों की निकटता को भी रेखांकित कर रहे हैं और एक-दूसरे के प्रति भरोसे को भी। अमेरिका का भारत पर बढ़ता भरोसा इस बात का परिचायक है कि भारत विश्व की एक बड़ी शक्ति बनने की राह पर है।
दोनों देशों के बीच हुए समझौते यह भी दर्शाते हैं कि आज भारत को जितनी आवश्यकता अमेरिका की है, उससे कहीं अधिक उसे भारत की है। इसका एक कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका का कम होता प्रभाव और भारत का बढ़ता हुआ कद है। वास्तव में आज अमेरिका ही नहीं, विश्व का हर प्रमुख देश भारत को अपने साथ रखना आवश्यक समझ रहा है।
इस पर आश्चर्य नहीं कि भारतीय प्रधानमंत्री के अमेरिकी दौरे पर दुनिया भर के देशों की निगाहें थीं। स्वाभाविक रूप से इनमें चीन और पाकिस्तान भी थे। यह अच्छा हुआ कि भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच शिखर वार्ता के बाद जो संयुक्त बयान जारी हुआ, उसमें पाकिस्तान के साथ चीन पर भी निशाना साधा गया। ऐसा करना इसलिए आवश्यक था, क्योंकि पाकिस्तान जहां आतंकवाद को सहयोग-समर्थन और संरक्षण देने से बाज नहीं आ रहा है, वहीं चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते एशिया ही नहीं, पूरे विश्व के लिए खतरा बन गया है।
भारत के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय प्रभाव से चीन किस तरह खीझ रहा है, इसका पता इससे भी चलता है कि उसने शर्म-संकोच त्यागकर ठीक उस समय मुंबई हमले की साजिश में शामिल लश्कर के आतंकी सरगना साजिद मीर की ढाल बनना पसंद किया, जिस वक्त भारतीय प्रधानमंत्री अमेरिका में थे। यह चीन की हताशा और निर्लज्जता का चरम था। उसने अपने रवैये से यही प्रदर्शित किया कि उससे भारत ही नहीं, पूरे विश्व को सावधान रहना चाहिए।
अमेरिका यह जान रहा है कि चीन के तानाशाही भरे रवैये से निपटने के लिए भारत का साथ आवश्यक है। वास्तव में इस आवश्यकता ने भी अमेरिका में भारत की अहमियत बढ़ाने का काम किया है। यह अहमियत यही बता रही है कि भारत का समय आ गया है।
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