जागरण संपादकीय: एक और पुल गिरा, लोगों की जान से खिलवाड़ और सरकारी संसाधनों की बर्बादी
यह धारणा है कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त है लेकिन यह सख्ती नजर क्यों नहीं आती? यदि भारत को विकसित बनना है तो निर्माण कार्यों की गुणवत्ता हर हाल में सुनिश्चित करनी होगी। इसके लिए भ्रष्ट तत्वों को दंडित करना होगा। अपने यहां भ्रष्ट अधिकारी तो बड़ी कठिनाई से दंडित होते हैं।
यह बड़े दुख, शर्म और देश को बदनाम करने वाली बात है कि गुजरात में फिर एक पुल गिर गया। उस पर से गुजर रहे कुछ वाहन नदी में समा गए और कई लोग मारे गए। इस पुल को करीब 40 साल पुराना बताया जा रहा है, पर 40 वर्ष पुराना बड़ी बात नहीं। दुर्भाग्य से अपने देश में तो चार वर्ष पुराने पुल भी ढह जाते हैं। कभी-कभी तो नए बने अथवा निर्माणाधीन पुल गिर जाते हैं।
कुछ समय पहले बिहार में पुलों के गिरने का तांता लगा था। बात केवल पुलों की ही नहीं है, बुनियादी ढांचे संबंधी अन्य निर्माण की भी है। जब कोई पुल, हाईवे आदि बनता है तो कहा जाता है कि यह इंजीनियरिंग का कमाल है, लेकिन कुछ ही समय बाद या तो वे धंस जाते हैं या उनमें जल भराव होने लगता है।
ऐसा खराब इंजीनियरिंग और डिजाइन के कारण होता है। पुलों, सड़कों आदि का खराब निर्माण जारी है। उनकी मजबूती पर कोई ध्यान नहीं देता-न तो सीपीडब्ल्यूडी, पीडब्ल्यूडी जैसी सरकारी एजेंसियां और न ही केंद्र एवं राज्य सरकारें।
चूंकि गुजरात प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का गृह प्रदेश है, इसलिए विपक्षी दलों को यह कहने का मौका मिला है कि गुजरात माडल की पोल खुल गई, लेकिन बाकी राज्यों में भी तो सरकारी निर्माण की यही स्थिति है। सरकारी निर्माण में लापरवाही के पीछे मूल कारण नेताओं, नौकरशाहों, इंजीनियरों, ठेकेदारों आदि का भ्रष्टाचार है।
इस भ्रष्टाचार से सरकारें अवगत हैं, लेकिन कोई निर्माण कार्यों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए गंभीर नहीं। जब कोई घटना घट जाती है और लोग मारे जाते हैं तो मुआवजे की घोषणा के साथ जांच-कठोर जांच का वादा किया जाता है, पर होता कुछ नहीं है। यदि यही सिलसिला कायम रहा तो भारत को विकसित बनाने का दावा थोथा साबित होगा।
आखिर जिस देश का बुनियादी ढांचा ढहता रहे, वह विकसित कैसे बन सकता है? विकसित देशों में तो ऐसा घटिया निर्माण नहीं होता। अपने यहां अंग्रेजों के बनाए पुल तो कायम हैं, लेकिन भारतीयों की ओर से बनाए गए निर्माण गिरते रहते हैं। हाईवे, पुल आदि के निर्माण में खामी की बात कई बार केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी मान चुके हैं, लेकिन गलती मानने का तब कोई मतलब नहीं, जब उसमें सुधार न हो। आखिर यह सुधार कौन करेगा?
यह धारणा है कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त है, लेकिन यह सख्ती नजर क्यों नहीं आती? यदि भारत को विकसित बनना है तो निर्माण कार्यों की गुणवत्ता हर हाल में सुनिश्चित करनी होगी। इसके लिए भ्रष्ट तत्वों को दंडित करना होगा। अपने यहां भ्रष्ट अधिकारी तो बड़ी कठिनाई से दंडित होते हैं। आखिर कितने हादसों के बाद आंखें खुलेंगी? किसी भी निर्माण कार्य की गुणवत्ता से समझौता लोगों की जान से खिलवाड़ और सरकारी संसाधनों की बर्बादी ही है।
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