जागरण संपादकीय: हठधर्मी का नतीजा, हटाए गए किसान
Farmers Protest यह ठीक है कि पंजाब सरकार की ओर से किसान संगठनों को सड़क से हटा देने से किसान नेता नाराज हैं लेकिन उचित यह होगा कि उनके और केंद्र सरकार के बीच बातचीत का सिलसिला कायम रहे। बातचीत किसी सकारात्मक नतीजे पर तभी पहुंच सकती है जब दोनों ही पक्ष बीच का कोई रास्ता तलाशने की कोशिश करेंगे।
पंजाब-हरियाणा सीमा पर एक वर्ष से अधिक समय तक दो प्रमुख रास्तों को रोककर धरना दे रहे किसानों को जबरन हटाकर पंजाब सरकार ने वही किया, जो उसे बहुत पहले करना चाहिए था। किसानों के इस धरने के कारण न केवल आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा था, बल्कि व्यापारियों को अच्छा-खासा नुकसान भी उठाना पड़ रहा था।
चूंकि किसान नेता सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी अपना हठ छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार के पास रास्ते खाली कराने के अलावा और कोई उपाय नहीं रह गया था। यह वही आम आदमी पार्टी है, जिसने एक समय कृषि कानूनों के विरोध में जबरन दिल्ली घेर कर बैठे किसानों का हर तरह से समर्थन किया था।
यह अच्छा है कि उसने मजबूरी में ही सही, अपने राजधर्म को समझा। यह समय की मांग है कि किसान नेता भी यह समझें कि हठधर्मिता दिखाने से उनकी समस्याओं का समाधान होने वाला नहीं है।
उन्हें यह भी समझना होगा कि यदि कोई अपनी मांगें मनवाने के लिए जानबूझकर लोगों को परेशान करने वाले तौर-तरीके अपनाता है तो वह जनता की सहानुभूति खो देता है और सरकारों के लिए उनकी मांगों पर विचार करना भी कठिन हो जाता है।
किसान संगठन अपनी अन्य अनेक मांगों समेत सभी फसलों की एमएसपी पर खरीद की गारंटी वाला कानून चाहते हैं। उनका मानना है कि सरकार के लिए ऐसा कानून बनाना संभव है, लेकिन केंद्र सरकार बार-बार कह रही है कि ऐसा कानून बनाना संभव नहीं और यदि उनके दबाव में वह बना भी दिया जाए तो उसके दुष्परिणाम किसानों को ही भुगतने होंगे।
किसान नेताओं के पास ऐसे सवालों का कोई जवाब नहीं कि यदि व्यापारी एमएसपी पर खरीद से पीछे हट जाते हैं तो क्या होगा? इस पर हैरानी नहीं कि किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच सातवें दौर की वार्ता किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई।
यह ठीक है कि पंजाब सरकार की ओर से किसान संगठनों को सड़क से हटा देने से किसान नेता नाराज हैं, लेकिन उचित यह होगा कि उनके और केंद्र सरकार के बीच बातचीत का सिलसिला कायम रहे। बातचीत किसी सकारात्मक नतीजे पर तभी पहुंच सकती है, जब दोनों ही पक्ष बीच का कोई रास्ता तलाशने की कोशिश करेंगे।
जहां सरकार के लिए ऐसे उपाय करने आवश्यक हैं, जिनसे खेती की लागत कम हो और किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले, वहीं किसान नेताओं को भी अपनी मांगों को लेकर जिद पकड़ने से बचना होगा। केंद्र सरकार को यह जिम्मेदारी अपने सिर लेनी होगी कि वह किसान नेताओं के समक्ष वे तथ्य रखे, जिनसे यह स्पष्ट हो सके कि एमएसपी पर खरीद की गारंटी वाला कानून किस तरह की समस्याएं पैदा करेगा।
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