भारत जोड़ो यात्रा के बीच गोवा के आठ कांग्रेसी विधायक जिस तरह पालाबदल कर भाजपा में चले गए, वह कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है। इस पालाबदल ने अन्य राजनीतिक दलों की ओर से की जा रही इस आलोचना को ही सही सिद्ध किया कि कांग्रेस को भारत जोड़ो अभियान से ज्यादा जरूरत पार्टी जोड़ो मुहिम शुरू करने की है। गोवा में पालाबदल कोई नई-अनोखी बात नहीं। हैरानी इस बात की है कि कांग्रेस नेतृत्व एक अर्से से इस तरह की खबरें सामने आते रहने के बाद भी नहीं चेता कि गोवा में उसके विधायक टूट सकते हैं।

ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व इस बात से कुछ ज्यादा ही संतुष्ट हो गया कि उसके विधायकों ने गोवा विधानसभा चुनाव के समय इस आशय की शपथ ली थी कि वे अन्य किसी दल में नहीं जाएंगे। राजनीति में ऐसी शपथ का कोई मूल्य नहीं होता। यह विडंबना ही है कि जिन दिगंबर कामत के नेतृत्व में पाला न बदलने की शपथ ली गई थी, वह भी कांग्रेस छोड़ने वालों में शामिल हैं। कांग्रेस अपनी खीझ मिटाने के लिए यह कह सकती है कि भाजपा छल-बल से उसके विधायकों को अपने साथ ले गई, लेकिन बेहतर यह होगा कि वह उन कारणों की तह तक जाए, जिनके चलते अन्य राज्यों में भी उसके विधायक टूटते रहते हैं या फिर इसके लिए तैयार दिखते हैं।

इसी तरह यह भी एक तथ्य है कि उसके नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला थम नहीं रहा है। बीते दिनों भारत जोड़ो यात्रा के बीच ही असम कांग्रेस के महासचिव ने यह कहते हुए पार्टी छोड़ दी कि नेतृत्व दिशाहीन और भ्रमित है। कुछ इसी तरह की बातें वे अनेक नेता भी कहते रहे, जिन्होंने कांग्रेस छोड़ी, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उन पर कभी ध्यान नहीं दिया। संभवत: वह यह समझने को तैयार नहीं कि पार्टी की रीति-नीति के चलते अधिकतर कांग्रेस नेता इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि इस दल में उनका कोई भविष्य नहीं।

कांग्रेस नेतृत्व यानी गांधी परिवार यह भी समझने को तैयार नहीं दिखता कि वह आम जनता तो दूर, अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों के समक्ष भी ऐसा कोई विमर्श नहीं खड़ा कर पा रहा है, जो उन्हें आकर्षित कर सके। जिस दल के कार्यकर्ता हताश-निराश हों अथवा नेतृत्व की विचारधारा को समझने में असमर्थ हों, उसका भविष्य उज्ज्वल हो ही नहीं सकता। आज कांग्रेस के सामान्य कार्यकर्ता के लिए यह समझना कठिन है कि पार्टी की विचारधारा क्या है?

राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा में जिस तरह वही सब बातें दोहरा रहे हैं, जो वह एक लंबे समय से कहते चले आ रहे हैं, उसे देखते हुए इसमें संदेह है कि कांग्रेस आम जनता को यह संदेश दे सकेगी कि इस यात्रा का उद्देश्य चुनावी लाभ अर्जित करना नहीं, बल्कि देश को जोड़ना है।