जागरण संपादकीय: जातिवार जनगणना, प्रतीक्षा के बाद अधिसूचना जारी
निःसंदेह जातिगत जनगणना से करीब एक सदी बाद भारतीय समाज के तमाम जाने-अनजाने पहलुओं की सच्चाई सामने आएगी कुछ मिथक टूटेंगे-बनेंगे और सामाजिक एवं आर्थिक विकास की नीतियों को ठोस दिशा देने में मदद मिलेगी लेकिन वह समस्त समस्याओं के हल की कुंजी नहीं। वैसे ही जैसे आरक्षण सभी समस्याओं का निदान नहीं करता।
जनगणना के लिए अधिसूचना जारी होने की प्रतीक्षा ही की जा रही थी। इसलिए और भी अधिक, क्योंकि एक तो कोविड महामारी एवं अन्य कारणों से इसे समय पर नहीं शुरू किया जा सका और फिर कुछ समय पहले सरकार ने अचानक जातिगत जनगणना कराने का फैसला ले लिया। स्वतंत्रता के बाद पहली बार जातिगत जनगणना होने जा रही है।
मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लेकर केवल विपक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस से एक मुद्दा ही नहीं छीना, बल्कि भारतीय समाज की वास्तविक तस्वीर लाने का भी निर्णय किया। चूंकि कई नीतियों का आधार ही यह होता है कि किस वर्ग की सामाजिक, आर्थिक स्थिति क्या है, इसलिए सैद्धांतिक रूप से जातिगत जनगणना कराना उचित और आवश्यक था। आखिर एससी-एसटी समुदाय की हो ही रही थी।
अब अन्य वर्गों के साथ ओबीसी की भी होगी। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि अभी 1931 के जातिगत जनगणना के आंकड़ों से या फिर अनुमान से काम चलाया जा रहा था। आजादी के बाद किन्हीं कारणों से और शायद जातिवादी राजनीति को बल मिलने की आशंका से जातिवार जनगणना से बचा गया। इस आशंका को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। आज भी कुछ लोग यह अंदेशा प्रकट रहे हैं कि जातिगत जनगणना के आंकड़े कहीं उन राजनीतिक दलों का काम आसान न कर दें, जो जाति विशेष की ही राजनीति करते हैं।
सामाजिक न्याय के नाम पर समाज को बांटने वाली जाति की राजनीति नहीं होने दी जानी चाहिए। जहां सरकार को विश्व की सबसे बड़ी आबादी की गणना कराते हुए इस अंदेशे को दूर करने के जतन करने चाहिए, वहीं जनगणना की अधिसूचना पर किंतु-परंतु कर रही कांग्रेस को बताना चाहिए कि आखिर उसने अपने लंबे शासनकाल में ऐसी जनगणना क्यों नहीं कराई?
कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार जनगणना की अधिसूचना जारी कर कोई नया-अनोखा काम नहीं करने जा रही है। यदि ऐसा है तो वह बताए कि आखिर उसने जनगणना के जरिये कौन से अनोखे काम किए? अपने कार्यकाल में जातिगत जनगणना कराने की जरूरत को खारिज करने और फिर यकायक उसकी सबसे बड़ी पक्षधर बनी कांग्रेस ऐसा जता रही है कि जातिवार जनगणना देश की समस्त समस्याओं का एकमात्र समाधान है।
निःसंदेह जातिगत जनगणना से करीब एक सदी बाद भारतीय समाज के तमाम जाने-अनजाने पहलुओं की सच्चाई सामने आएगी, कुछ मिथक टूटेंगे-बनेंगे और सामाजिक एवं आर्थिक विकास की नीतियों को ठोस दिशा देने में मदद मिलेगी, लेकिन वह समस्त समस्याओं के हल की कुंजी नहीं।
वैसे ही जैसे आरक्षण सभी समस्याओं का निदान नहीं करता। चूंकि 2021 में होने वाली जनगणना अब होने जा रही है, इसलिए अगली जनगणना 2031 में शायद ही हो। जो भी हो, जनगणना के आंकड़े परिसीमन के साथ महिला आरक्षण लागू करने का आधार भी बनेंगे।
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