जागरण संपादकीय: बांग्लादेश में कट्टरता, कट्टरपंथी संगठन लड़ेगा चुनाव
Bangladesh News बांग्लादेश में जमाते इस्लामी का पंजीकरण बहाल होना भारत के लिए चिंताजनक है। शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से कट्टरपंथी तत्वों को बढ़ावा मिल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पंजीकरण बहाल हुआ पर कोर्ट में भी ऐसे न्यायाधीश हैं जो सरकार के साथ हैं।
बांग्लादेश में कट्टरपंथी संगठन जमाते इस्लामी का पंजीकरण बहाल हो जाना और उसके चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो जाना भारत के लिए भी चिंताजनक है। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से ही एक के बाद एक जो घटनाएं हो रही हैं, वे भारत के लिए शुभ संकेत नहीं। बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार केवल पाकिस्तान और चीन से ही अपने संबंध बढ़ाने में ही नहीं लगी हुई है, बल्कि अपने यहां के कट्टरपंथी तत्वों को बढ़ावा देने में भी लगी हुई है।
ताजा उदाहरण जमाते इस्लामी का चुनाव लड़ने में सक्षम हो जाना है। यह ठीक है कि इसका पंजीकरण इसलिए बहाल हुआ, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने का आदेश दिया था, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के एक सप्ताह के अंदर ही बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के साथ दो अन्य न्यायाधीशों ने इस्तीफा दे दिया था। इन्हें छात्रों के उसी संगठन ने इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया था जिनके नेतृत्व में शेख हसीना सरकार के विरुद्ध आंदोलन चला था।
स्पष्ट है कि अब वहां के सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसे न्यायाधीश आ चुके हैं जो कार्यवाहक सरकार की हां में हां मिलाने के लिए तैयार हैं। तथ्य यह भी है कि छात्रों के आंदोलन में जमाते इस्लामी ने पूरा सहयोग दिया था। यह वही संगठन है जिस पर बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय पाकिस्तान की मदद करने और मानवता के विरुद्ध अपराध एवं नरसंहार के आरोप लगे थे। इन आरोपों के चलते ही उसके छह शीर्ष नेताओं को फांसी पर चढ़ा दिया गया था।
जमाते इस्लामी कितना कट्टरपंथी और जिहादी सोच वाला संगठन है, इसका एक प्रमाण यह भी है कि एक समय जो विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी उसके साथ मिलकर चुनाव लड़ती थी, उसने कुछ समय पहले स्वयं को उससे अलग कर लिया था। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि बांग्लादेश के सेना प्रमुख अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस पर शीघ्र चुनाव कराने का दबाव बना रहे हैं, क्योंकि बांग्लादेश में एक के बाद एक कट्टरपंथी और जिहादी सोच वाले संगठनों से प्रतिबंध हटने के साथ आतंकी गतिविधियों में जेल की सजा पाए तत्वों को रिहा किया जा रहा है।
इससे यही स्पष्ट होता है कि कट्टरपंथी तत्वों के सिर उठाने से सेना प्रमुख को कोई समस्या नहीं। कहना कठिन है कि सेना प्रमुख के दबाव बनाने के बाद बांग्लादेश में शीघ्र चुनाव हो जाएंगे, क्योंकि हाल-फिलहाल चुनाव कराने की कोई तत्परता नहीं दिख रही है। भारत को बांग्लादेश की गतिविधियों को लेकर इसलिए चिंतित होना चाहिए, क्योंकि वहां पाकिस्तान और चीन के साथ अमेरिका का भी प्रभाव बढ़ सकता है।
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